MAHARSHI MEHI PADAVALI
HOME
INDEX
PRAYER
MAHARSHI
best free css templates
Article Title with Solid Background
Shape your future web project with sharp design and refine coded functions.
VERSE-INDEX
( NUMERICAL ORDER )
001
002
003
004
005
006
007
008
009
010
011
012
013
014
015
016
017
018
019
020
021
022
023
024
025
026
027
028
029
030
031
032
033
034
035
036
037
038
039
040
041
042
043
044
045
046
047
048
049
050
051
052
053
054
055
056
057
058
059
060
061
062
063
064
065
066
067
068
069
070
071
072
073
074
075
076
077
078
079
080
081
082
083
084
085
086
087
088
089
090
091
092
093
094
095
096
097
098
099
100
101
102
103
104
105
106
107
108
109
110
111
112
113
114
115
116
117
118
119
120
121
122
123
124
125
126
127
128
129
130
131
132
133
134
135
136
137
138
139
140
141
142
143
144
145
सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर (ईश-स्तुति)
सब सन्तन्ह की बड़ि बलिहारी (प्रातःसायंकालीन सन्त-स्तुति)
मंगल मूरति सतगुरू (प्रातःकालीन गुरु-स्तुति) ॥ दोहा॥
जय जय परम प्रचण्ड तेज तम (छप्पय)
अव्यक्त अनादि अनन्त अजय (प्रातःकालीन नाम-संकीर्त्तन)
सन्तमत-सिद्धान्त
श्री सद्गुरु की सार शिक्षा
सन्तमत की परिभाषा
प्रेम-भक्ति गुरु दीजिये (अपराह्ण एवं सायंकालीन विनती)
सत्यपुरुष की आरति कीजै (आरती)
तुम साहब रहमान हो रहम करो (विनती) || दोहा ||
प्रभु अटल अकाम अनाम
सर्वेश्वरं सत्य शान्ति स्वरूपं
नमामी अमित ज्ञान रूपं कृपालं (सद्गुरु-स्तुति)
सद्गुरु नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं
जय जयति सद्गुरु जयति जय जय (छन्द)
सतगुरु सुख के सागर (कजली)
गुरू गुरू मैं करौं पुकारा (चौपाई)
गुरुदेव दानि तारण
गुरु मम सुरत को गगन पर चढ़ाना
गुरु खोलिये वज्र कपाट
गुरु कीजै भव-निधि पार
मोहि दे दो भगती दान
दया प्रेम सरूप सतगुरु (छन्द)
हे प्रेमरूपी सतगुरु
बार-बार करुँ वीनती
अपनी भगतिया सतगुरु साहब (बरसाती)
सतगुरु दाता सतगुरु दाता (पुकार)
सतगुरु दरस देन हित आए (बरसाती)
भजु मन सतगुरु सतगुरु
सतगुरु जी से अरज हमारी
सतगुरु साहब की बलिहारी
ध्यानाभ्यास करो सद सदही (कहरा)
नैनों के तारे चश्म रोशन
प्रभु अकथ अनामी सब पर स्वामी (ईश्वर-स्वरूप-निरूपण)
प्रभु वरणन में आवैं नाहीं
प्रभु अकथ अनाम अनामय (कजली)
है जिसका नहीं रंग नहिं रूप (पीव प्यारा)
प्रभु तोहि कैसे देखन पाऊँ
नैन सों नैनहिं देखिय जैसे
मेध मन संग जेते
नहीं थल नहीं जल (आत्मा)
क्षेत्र क्षर अक्षर के पार में
सन्तमते की बात, कहूँ साधक हित लागी (अरिल-कुण्डलिया-अरिल)
पाँच नौबत बिरतन्त कहौं (मंगल)
सृष्टि के पाँच हैं केन्द्रन
सुनिये सकल जगत के वासी (उपदेश - चौपाई)
अधर डगर को सतगुरु भेद (चैत)
आहो भाई होऊ गुरु आश्रित हो
गुरु के शरण गहु, धन धन गुरु कहु (शब्द)
(क) खोजो पन्थी पन्थ तेरे घट (मंगल)
(ख) खोजो पन्थी पन्थ तेरे घट
योग हृदय केन्द्र बिन्दु में
निज तन में खोज सज्जन
घट-पट तिहू के पार में
घट बिच अजब तमाशा (चैत)
घट बीच अजब तमाशा
प्रथमहिं धरो गुरु को ध्यान
सुखमन झल झल बिन्दु
अधः ऊर्ध्व अरु दायें बायें
खोज करो अंतर उजियारी
सुषमनियाँ में मोरी नजर लागी
सुषमनियाँ में नजरिया थिर
सुखमन के झीना नाल से
गंग जमुन जुग धार मधहि
गंग जमुन सरस्वती संगम पर
नोकते सफेद सन्मुख
यहि विधि जैबै भव पार
सूरति दरस करन को जाती (कजली)
भाई योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु (कजली)
ऐन महल पट बन्द कै
आओ वीरो मर्द बनो अब
साँझ भये गुरु सुमिरो भाई
मन तुम बसो तीसरो नैना (कजली )
जहाँ सूक्ष्म नाद ध्वनि आज्ञा
योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु सुख (भैरवी)
भजो सत्तनाम, सत्तनाम (संकीर्त्तन)
सतनाम सतनाम सतनाम भज
जय जय राम जय जय राम
जय जय राम जय जय राम कहु राम
राम नाम अमर नाम भजो भाई सोई
सब भव भय भंजन
भजो हो गुरु चरण कमल
भजु मन सतगुरु दयाल
भजु मन सतगुरु दयाल गुरु दयाल
भजो हो मन गुरु उदार
भजो भजो गुरु नाम हो
भजु गुरु नामा, लहु विश्रामा
भजो साध गुरु साध गुरु
भजो सत्यगुरु सत्यगुरु
गुरु गुरु त्राहि गुरु
भजो भजो गुरुदेव हो भाई
त्राहि गुरु त्राहि गुरु
गुरु नाम गुरु नाम गुरु नाम
गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं
गुरु दीन दयाला नजर निहाला
अति पावन गुरु मन्त्र
सतगुरू गुरुदेव गुरु
सत्य ज्ञान दायक गुरु पूरा (चौपाई)
सतगुरु सत परमारथ रूपा (चौपाई)
खोजत खोजत सतगुरु भेटि गेला (समदन)
सन्तन मत भेद प्रचार किया
जीव उद्धार का द्वार पुकार कहा
सतगुरु सतगुरु नितहिं पुकारत
सतगुरु चरण टहल नित करिये
गुरु सतगुरु सम हित नहिं कोऊ
चलु चलु चलू भाई
गुरु को सुमिरो मीत क्यों अवसर
सतगुरु सेवत गुरु को सेवत
सतगुरु पद बिनु गुरु भेटत नाहीं
बिना गुरु की कृपा पाये
करिये भाई सतगुरू गुरू पद
आगे माई सतगुरु खोज करहु
सम दम और नियम यम (चौपाई)
योग हृदय में वास ना
एकबिन्दुता दुर्बीन हो दुर्बीन क्या करे
अन्तर के अन्तिम तह में गुरु हैं
सुरत सम्हारो अधर चढ़ाओ
घटवा घोर रे अंधरी (कजली)
क्या सोवत गफलत के मारे
जनि लिपटो रे प्यारे जग परदेसवा
नाहिंन करिये जगत सों प्रीती
समय गया फिरता नहीं
यहि मानुष देह समैया में
दिन बीतत जावे, आयु खुटावे
छन छन पल पल समय सिरावे
आहो भक्त सार भगति करु हो
आहो प्रेमी करु प्रेम प्रभु सए हो
आहो ज्ञानी ज्ञान गुनी प्रभु भजु हो
ध्यान भजन हीन, लहिहौ न प्रभु धन
प्रभु मिलने जो पथ धरि जाते (कजली)
जौं निज घट-रस चाहो
अद्भुत अन्तर की डगरिया
नित प्रति सत्संग कर ले प्यारा
जीवो! परम पिता निज चीन्हो
गुरु हरि चरण में प्रीति हो
मास आसिन जगत बासिन (बारहमासा)
जेठ मन को हेठ करिये (चौमासा)
आरति तन मन्दिर में कीजै
आरति परम पुरुष की कीजै
आरति अगम अपार पुरुष की
अज अद्वैत पूरन ब्रह्म पर की
प्रेम-प्रीति चित चौक लगाये
गुरु जुगती लय घट पट टारौं (॥ समाप्त॥)
आरति संग सतगुरु के कीजै (नित्य प्रार्थना के अंत में गायी जानेवाली तुलसी साहब कृत आरती)
| HOME |
|
MEHI
|
|
SANTMAT
|
|
PRINCIPLE
|
|
INDEX
|
|
PRAYER
|
|
PREFACE
|
|
INTRODUCTION
|
© Copyright 2019 [Murari Chandra Sinha] - All Rights Reserved