क्रम | दिनांक | स्थान |
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01 | १५-११-१९१३ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
02 | २२-०३-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
03 | २२-०३-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
04 | ०६-०५-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
05 | १७-०८-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
06 | १३-१०-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
07 | २६-११-१९१५ | मुरादाबाद, मोहल्ला अताई |
ॐ श्री सद्गुरवे नमः
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक १५-११-१९१३ ईस्वी
महाशय,
चिट्ठी आपकी आई - खैरयत मिलने से खुशी हुई जबतक संतमत को नहीं जान सकते हो तरक्की नहीं हो सकती है, एक नहीं दस गुरू और बना लो - नन्दन बन्दगी करता है।
चरणसेवक
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक २२- 0३-१९१५ ईस्वी
महाशय,
चिट्ठी आई आपके लिए हम डन्डोत करते हैं - और आपसे ज्यादह संतमत में कोई आदमी नहीं हो सकता। और तन-मन-धन से गुरू की खिदमत करना चाहिए। और आप यहाँ कबतक आवेंगे? नन्दन की डन्डोत ।
चरणसेवक
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक 0६-0५-१९१५ ईस्वी
महाशय,
चिट्ठी आई-पुस्तक भेजी जाती है असली बात यह है कि तन-मन-धन से जो शख्स गुरु की सेवा नहीं करेगा किसी मजहब में कामयाब नहीं हो सकता है वैसे चाहे जितनी किताबें पढ़ा-नन्दन हाथ जोड़कर बन्दगी करता है, महाराजा साहिब कश्मीर ने हमको बुलाया है सो अभी हमारा इरादह जाने का नहीं है -
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक १७-0८-१९१५ ईस्वी
महाशय,
चिट्ठी आपकी आई-खैरयत मिलने से खुशी हुई- जयादह बहतर है कि माह के महीने तक अभ्यास और सत्संग और उपदेश खूब दिल से करो- नन्दन हाथ जोड़कर बन्दगी करता है -
चरणसेवक
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक १३-१०-१९१५ ईस्वी
महाशय,
चाहै आपको खाना मिलै या न मिलै लेकिन आपकी बराबर मजहब में कोई नहीं हो सकता - नन्दन बन्दगी करता है।
चरणसेवक
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक २६-११-१९१५ ईस्वी
महाशय,
हम आपकी बहतरी के लिए दुआ करते हैं – जिस कदर जल्द मुमकिन हो आइये- अगर वहां आराम न हो तो यहाँ इलाज हो सकता है- नन्दन हाथ जोड़कर बन्दगी करता है।
चरणसेवक
देवी
मुरादाबाद, मोहल्ला अताई
दिनांक २७-0२-१९१६ ईस्वी
महाशय,
चिट्ठी आई- आपने जम्मू और अपने सफर का कुछ हाल नहीं लिखा- अब हमारा भी आजकल में जम्मू जाने का इरादा है- और अपने पैसे से खाना खायेंगे- भीक माँगकर खाने का हमारा काम नहीं है - नन्दन बन्दगी करता है ।
देवी