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टिप्पणियाँ

पंचम सोपान-सुन्दरकाण्ड

दोहा-जाके बल लवलेस तेँ, जितेहु चराचर झारि ।
तासु दूत मैं जा करि, हरि आनेहु प्रिय नारि ।।81।।* 

001

[चौ0 सं0 564 में राम को हरि से भी बड़ा बतलाया गया है। रामचरितमानस में ‘हरि’ शब्द बारम्बार राम के लिए और उसके अधीनस्थ विष्णु भगवान के लिए भी लिखा गया है। प्रथम से चतुर्थ सोपान तक अनेक स्थानों पर यह सिद्ध कर दिया गया है कि राम क्षीर-समुद्र-निवासी विष्णु भगवान ही थे। जहाँ-जहाँ यह बतलाया जाता है कि राम विष्णु के रूप हैं, वहाँ-वहाँ जानना चाहिए कि विष्णु भी एक के ऊपर एक बहुत हैं और ‘हरि’ शब्द सब विष्णुओं के लिए प्रयोग किया जाता है।] 

रिषि पुलस्ति जस बिमल मयंका । तेहि ससि महँ जनि होहु कलंका ।। 569।।*

002

[विमल ब्राह्मण-कुल-दीपक परम यशस्वी पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्वश्रवा मुनि का पुत्र रावण यदि हिंसा और पर-नारी-हरणादि दुष्ट कर्म करे, तो पुलस्त्य ऋषि के यश में कलंक लगेगा।] 

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