01. सत्संग करते रहना चाहिए

प्यारे सत्संगी लोगो!
 आपलोग बहुत अच्छा करते हैं कि प्रत्येक रविवार को यहाँ आकर सत्संग करते हैं। जबतक लोग जीवन-धारण करें, तबतक यदि सत्संग किया करें, तो अवश्य ही मरने के बाद अगर कोई शरीर पावेंगे, तो मनुष्य का शरीर पावेंगे, दूसरा शरीर नहीं होगा। अभी यहाँ केवल हमलोग ही सत्संग करते हैं, ऐसी बात नहीं है; परन्तु वे भी हैं, जो लोग गये हैं, और हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है-
‘विश्व उपकार हित व्यग्रचित सर्वदा, त्यक्त मवमन्यु कृत पुण्य राशी ।
 यत्र तिष्ठन्ति तत्रैव अज सर्व हरि, सहित गच्छन्ति क्षीराब्धि वासी ।।’
 हमलोग अपने शरीर को लेकर यहाँ सत्संग करते है और वे लोग विश्व-ब्रह्माण्ड को अपने अन्दर देखते हैं तथा विश्व-ब्रह्माण्ड में अपने को देखते हैं। जो लोग बहुत दिनों से सत्संग करते आ रहे हैं, अभी कर रहे हैं और आगे भी करेंगे, वे सभी महामुख के भागी होंगे। भक्ति पूरी किए बिना जब वे मर जाएँगे यानी उनका शरीर छूट जाएगा, तब उनके साथ ऐसा होगा जैसा कि देह में रहने के समय में अच्छा या बुरा-कर्म किया है। वैसा फल भोगने के बाद फिर मनुष्य-शरीर मिलेगा। इस सत्संग में सम्मिलित होने का सभी को अधिकार है, चाहे वे ईसाई हों, मुसलमान हों या वैदिक हों। (वैदिक तो हमलोग हैं ही) सत्संग करनेवाले का संसार में यश बढ़ता है। मरने के पीछे भी उनका नाम रह जाता है। लोग कहते हैं-फलाने ऐसे थे; फलाने वैसे थे।
 यह जो इतना बड़ा सत्संग का दालान बना है, यह एक ही दिन में नहीं बना है। बनते-बनते बन गया है। इन्जीनियर लगे
रहते थे, तब बना है। मेरे कहने का मतलब यह है कि आप सत्संग-भजन करें और सदाचार का पालन भी करते रहें, तो आपका भी इसी तरह से बनते-बनते जीवन बन जायगा और नाम बढ़ेगा, घटेगा नहीं। सत्संग बराबर करते-करते जब आदत पड़ जाएगी, तो बिना सत्संग किए रहा नहीं जाएगा और कभी-न-कभी आप जीवन्मुक्त हो जाएँगे। फिर संसार में नहीं आना पड़ेगा और संसार के दुःखों में नहीं पड़ना होगा। एक जन्म में सत्संग का लसंग पड़ जाएगा, तो अनेक जन्मों तक संग-संग लगा रहेगा और किसी एक जन्म में अवश्य परम मोक्ष मिल जायगा। यदि कोई यह कहे कि सबको परम मोक्ष हो जायगा, तो फिर संसार कैसे रहेगा? अरे भाई! संसार तो रहेगा ही। जो सत्संग और ध्यान करते हैं और करेंगे उनके लिए यह बात है। सन्त कबीर साहब की वाणी में है-
‘भक्ति बीज बिनसै नहीं, जौं जुग जाय अनन्त ।
 ऊँच नीच घर जन्म ले, तऊ सन्त को सन्त ।।
 भक्ति बीज पलटै नहीं, आय पड़े जो चोल ।
 कंचन जो विष्ठा पड़ै, घटै न ताको मोल ।।’
 मैं भी यह जानकर सत्संग करता हूँ और आपलोगों को भी सत्संग करने की सलाह देता हूँ। सत्संग कभी नहीं छोड़ेंगे, तो होते-होते एक दिन जरूर परम मोक्ष मिलेगा। संसार रहेगा और ईश्वर को कौन हटाएगा? ईश्वर भी रहेंगे। इसके लिए कोई अन्देशा नहीं कि परम मोक्ष होते-होते सब कोई मुक्त हो जाएँगे, तो संसार नहीं रहेगा। यदि संसार नहीं रहेगा, तो आपको अन्देशा किस बात का? पहले सृष्टि नहीं थी, तो उन्होंने सृष्टि की और जब संसार नहीं रहेगा, तो क्या वे फिर संसार नहीं बना सकते हैं? ईश्वर सब कुछ कर सकते हैं। सब कुछ बनाते हैं और सब कुछ को बिगाड़ भी सकते हैं। उनकी जो इच्छा होगी, वे करेंगे। आपको चिन्ता किस बात की? इन बातों को जानकर सत्संग कीजिए। मैं भी करता हूँ। सब लोगों के परम मोक्ष हो जाने के बाद भी संसार रहेगा। संसार का होना, रहना या समाप्त करना ईश्वर की लीला है-खेल है। हमलोगों को सत्संग करते रहना चाहिए। जबतक संसार में हमलोग रहें और बहुत-से लोग भी रहें, तो उनमें सत्संग का प्रचार होता रहे, यह बहुत अच्छी बात है। बस आज इतना ही कहा।
महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट, भागलपुर (24.01.1982 ई0)