(१०७)
चलु चलु चलू भाई, धरु गुरु पद धाई,
होउ भाई दृढ़ अनुरागी, भ्रम त्यागी हो भाई॥१॥
तन-सुख मन-सुख, इन्द्री-सुख सब दुःख,
तजि दे विषय दुखदाई, भ्रम खाई हो भाई॥२॥
तन नव द्वार हो रामा, अति ही मलीन हो ठामा,
त्यागि चढ़ु दशम दुआरे, सुख पाउ रे भाई॥३॥
भजु भाई गुरु गुरू, गुरु रूप ध्यान धरू,
सनमुख बिन्दु निरेखो, सुख देखो रे भाई॥४॥
गुरु बिनु ज्ञान नाहीं, गुरु बिनु ध्यान नाहीं,
'मेँहीँ' न गुरु बिन आने, उपकारी हो भाई॥५॥