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वर्णमाला क्रमानुसार

 ( अंतस्थ )

  1. यहि मानुष देह समैया में
  2. यहि विधि जैबै भव पार
  3. योग हृदय केन्द्र बिन्दु में
  4. योग हृदय में वास ना
  5. योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु सुख

यहि मानुष देह समैया में

(१२४)
यहि मानुष देह समैया में, करु परमेश्वर में प्यार।
कर्म धर्म को जला खाक कर, देंगे तुमको तार॥टेक॥
तहँ जाओ जहँ प्रकट मिलें वे, तब जानो है स्नेह।
स्नेह बिना नहिं भक्ति होति है, कर लो साँचा नेह॥१॥
स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण, कैवल्यहु के पार।
सुष्मन तिल हो पिल तन भीतर, होंगे सबसे न्यार॥२॥
ब्रह्मज्योति ब्रह्मध्वनि कोधरि-धरि, ले चेतन आधार।
तन में पिल पाँचो तन पारा, जा पाओ प्रभु सार॥३॥
'मेँहीँ' मेँहीँ होय सकोगे, जाओगे वहि पार।
पार गमन ही सार भक्ति है, लो यहि हिय में धार॥४॥ 

यहि विधि जैबै भव पार

(६८)
यहि विधि जैबै भव पार मोर गुरु भेद दिए॥टेक॥
दृष्टि युगल कर लेवै सुखमनियाँ हो,
देखबै अजब रंग रूप॥१॥
तममा जे फुटि फुटि ऐते पँच रंगवा हो,
बिजली चमकि ऐतै तार॥२॥
सुरति जे चढ़ि चढ़ि चन्द निहारतै हो,
लखतै सुरज ब्रह्म रूप॥३॥
सुन्न धँसिये श्रुति शब्द समैतै हो,
पहूँचि मिलिये जैतै सत्त॥४॥
सन्तन केर यह भेद छिपल छल,
बाबा कयल परचार॥५॥
तोहर कृपा से बाबा आहो देवी साहब,
'मेँहीँ' जग फैली गेल भेद॥६॥

योग हृदय केन्द्र बिन्दु में

(५३)
योग हृदय केन्द्र बिन्दु में युग दृष्टियों को जोड़िकर।
मन मानसों को मोड़ि सब आशा निराशा छोड़िकर॥१॥
ब्रह्म ज्योति ब्रह्म ध्वनि धार धरि आवरण सारे तोड़िकर।
सूरत चला प्रभु मिलन को विषयों से मुख को मोड़िकर॥२॥
झूठ चोरी नशा हिंसा और जारी छोड़िकर।
गुरु-ध्यान अरु सत्संग-सेवन में स्वमति को जोड़िकर॥३॥
जीवन बिताओ स्वावलम्बी भरम भाँड़े फोड़िकर।
सन्तों की आज्ञा हैं ये 'मेँहीँ' माथ धर छल छोड़िकर॥४॥ 

योग हृदय में वास ना

(११५)
योग हृदय में वास ना, तन वास है तो क्या।
सत सरल युक्ति पास ना, और पास है तो क्या॥१॥
सद्‌गुरु कृपा की आस ना, और आस है तो क्या।
करता जो नित अभ्यास ना, विश्वास है तो क्या॥२॥
अन्तर में हो प्रकाश ना, बाहर प्रकाश क्या।
अन्तर्नाद का उपास्य ना, दीगर उपास्य क्या॥३॥
पालन हो सदाचार ना, आचार 'मेँहीँ' क्या।
गुरु-हरि चरण में प्रीति ना, रूखा विचार क्या॥४॥

योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु सुख

(७६) भैरवी
योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु सुख सिन्धु की खिड़की अति न्यारी।
स्थूल धार खिन्नहु से खिन्नहु जेहि होइ कबहुँ न हो पारी॥१॥
मन सह चेतन धार सुरत ही केवल पैठ सकै जामें।
जेहि हो गमनत छुटत पिण्ड ब्रह्माण्ड खण्ड सुधि हो जामें॥२॥
अपरा परा पर क्षर अक्षर पर सगुण अगुण पर जामें हो।
चलि पहिचानति सुरति परम प्रभु भौ दुख टरि चलि जामें हो॥३॥
जामें पैठत सुनिय अनाहत शब्द की खिड़की याते जो।
ब्रह्म ज्योति भी जामें झलकत ज्योति द्वार हू याते जो॥४॥
दृष्टि जोड़ि एक नोक बना जो ताकै देखे याको सो।
'मेँहीँ' अति मेँहीँ ले द्वारा सतगुरु कृपा पात्र हो सो॥५॥

  1. राम नाम अमर नाम भजो भाई सोई

राम नाम अमर नाम भजो भाई सोई

(८१)
राम नाम अमर नाम भजो भाई सोई।
सोई सत धुन सब घट-घट होई॥१॥
परा न पश्यन्ति न, मधिमा न बैखरि न,
वर्णात्मक हतधुन नहिं कोई॥२॥
अनहत अनाहत परसावे सत पद,
पहुँचि जहाँ पुनि, भव नहिं होई॥३॥
गुरु भेद धरि-धरि, दिव्य दृष्टि करि-करि,
तीन बन्द बन्द करि, भजो नाम सोई॥४॥
'मेँहीँ' मेँहीँ धुनि, अन्तर अन्त सुनि,
सुरत रमे गुरु आश्रित होई॥५॥