राग बिलावल
श्रीगणेश-स्तुति
गाइये गनपति जगबंदन।
संकर-सुवन भवानी नंदन ॥ १ ॥
सिद्धि-सदन, गज बदन, बिनायक।
कृपा-सिंधु,सुंदर सब-लायक ॥ २ ॥
मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।
बिद्या-बारिधि,बुद्धि बिधाता ॥ ३ ॥
माँगत तुलसिदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥ ४ ॥
सूर्य-स्तुति
दीन-दयालु दिवाकर देवा।
दीन-दयालु दिवाकर देवा। कर मुनि,मनुज,सुरासुर सेवा ॥ १ ॥
हिम-तम-करि केहरि करमाली। दहन दोष-दुख-दुरित-रुजाली ॥ २ ॥
कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी। तेज-प्रताप-रूप-रस-रासी ॥ ३ ॥
सारथि-पंगु,दिब्य रथ-गामी। हरि-संकर-बिधि-मूरति स्वामी ॥ ४ ॥
बेद पुरान प्रगट जस जागै। तुलसी राम-भगति बर माँगै ॥ ५ ॥
शिव स्तुति
को जाँचिये संभु तजि आन।
दीनदयालु भगत-आरति-हर,सब प्रकार समरथ भगवान ॥ १ ॥
कालकूट-जुर जरत सुरासुर,निज पन लागि किये बिष पान।
दारुन दनुज,जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान ॥ २ ॥
जो गति अगम महामुनि दुर्लभ,कहत संत,श्रुति,सकल पुरान।
सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान ॥ ३ ॥
सेवत सुलभ,उदार कलपतरु,पारबती-पति परम सुजान।
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति,तुलसिदास कहँ कृपानिधान ॥ ४ ॥
राग धनाश्री
दानी कहुँ संकर-सम नाहीं।
दीन-दयालु दिबोई भावै,जाचक सदा सोहाहीं ॥ १ ॥
मारिकै मार थप्यौ जगमें,जाकी प्रथम रेख भट माहीं।
ता ठाकुरकौ रीझि निवाजिबौ,कह्यौ क्यों परत मो पाहीं ॥ २ ॥
जोग कोटि करि जो गति हरिसों,मुनि माँगत सकुचाहीं।
बेद-बिदित तेहि पद पुरारि-पुर,कीट पंतग समाहीं ॥ ३ ॥
ईस उदार उमापति परिहरि,अनत जे जाचन जाहीं।
तुलसिदास ते मूढ़ माँगने,कबहुँ न पेट अघाहीं ॥ ४ ॥
बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बड़ो दिन देत दये बिनु,बेद-बडाई भानी ॥ १ ॥
निज घरकी बरबात बिलोकहु,हौ तुम परम सयानी।
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी ॥ २ ॥
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
तिन रंकनकौ नाक सँवारत,हौं आयो नकबानी ॥ ३ ॥
दुख-दीनता दुखी इनके दुख,जाचकता अकुलानी।
यह अधिकार सौपिये औरहिं,भीख भली मैं जानी ॥ ४ ॥
प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत,सुनि बिधिकी बर बानी।
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन,जगत-मातु मुसुकानी ॥ ५ ॥
राग रामकली
जाँचिये गिरिजापति कासी। जासु भवन अनिमादिक दासी ॥ १ ॥
औढर-दानि द्रवत पुनि थोरें। सकत न देखि दीन करजोरे ॥ २ ॥
सुख-संपति,मति-सुगति सुहाई। सकल सुलभ संकर-सेवकाई ॥ ३ ॥
गये सरन आरतिकै लीन्हे। निरखि निहाल निमिषमहँ कीन्हे ॥ ४ ॥
तुलसिदास जाचक जस गावै। बिमल भगति रघुपतिकी पावै ॥ ५ ॥
कस न दीनपर द्रवहु उमाबर। दारुन बिपति हरन करुनाकर ॥ १ ॥
बेद-पुरान कहत उदार हर। हमरि बेर कस भयेहु कृपिनतर ॥ २ ॥
कवनि भगति कीन्ही गुननिधि द्विज। होइ प्रसन्न दीन्हेहु सिव पद निज ॥ ३ ॥
जो गति अगम महामुनि गावहिं। तव पुर कीट पतंगहु पावहिं ॥ ४ ॥
देहु काम-रिपु ! राम -चरन-रति। तुलसिदास प्रभु ! हरहु भेद-मति ॥ ५ ॥
देव बड़े,दाता बड़े, संकर बड़े भोरे।
किये दूर दुख सबनिके, जिन्ह-जिन्ह कर जोरे ॥ १ ॥
सेवा, सुमिरन, पूजिबौ, पात आखत थोरे।
दिये जगत जहँ लगि सबै,सुख,गज,रथ,घोरे ॥ २ ॥
गावँ बसत बामदेव, मैं कबहूँ न निहोरे।
अधिभौतिक बाधा भई, ते किंकर तोरे ॥ ३ ॥
बेगि बोलि बलि बरजिये, करतूति कठोरे।
तुलसी दलि, रूँध्यो चहैं सठ साखि सिहोरे ॥ ४ ॥
सिव! सिव! होइ प्रसन्न करु दाया।
करुनामय उदार कीरति,बलि जाउँ हरहु निज माया ॥ १ ॥
जलज-नयन,गुन-अयन,मयन-रिपु,महिमा जान न कोई।
बिनु तव कृपा राम-पद-पंकज, सपनेहुँ भगति न होई ॥ २ ॥
रिषय,सिद्ध,मुनि,मनुज,दनुज,सुर,अपर जीव जग माहीं।
तव पद बिमुख न पार पाव कोउ, कलप कोटि चलि जाहीं ॥ ३ ॥
अहिभूषन,दूषन-रिपु-सेवक, देव-देव, त्रिपुरारी।
मोह-निहार-दिवाकर संकर, सरन सोक-भयहारी ॥ ४ ॥
गिरिजा-मन-मानस-मराल, कासीस, मसान-निवासी।
तुलसिदास हरि-चरन-कमल-बर, देहु भगति अबिनासी ॥ ५ ॥
राग धनाश्री
देव,
मोह-तम-तरणि,हर,रुद्र,संकर,शरण,हरण,मम शोक लोकाभिरामं।
बाल-शशि-भाल,सुविशाल लोचन-कमल, काम-सतकोटि-लावण्य-धामं ॥ १ ॥
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-विग्रह रुचिर, तरुण-रवि-कोटि तनु तेज भ्राजै।
भस्म सर्वांग अर्धांग शैलात्मजा, व्याल-नृकपाल-माला विराजै ॥ २ ॥
मौलिसंकुल जटा-मुकुट विद्युच्छटा, तटिनि-वर-वारि हरि-चरण-पूतं।
श्रवण कुंडल,गरल कंठ, करुणाकंद,सच्चिदानंद वंदेऽवधूतं ॥ ३ ॥
शूल-शायक पिनाकासि-कर,शत्रु-वन-दहन इव धूमध्वज,वृषभ-यानं।
व्याघ्र-गज-चर्म-परिधान,विज्ञान-घन,सिद्ध-सुर-मुनि-मनुज-सेव्यमानं ॥ ४ ॥
तांडवित-नृत्यपर,डमरु डिंडिम प्रवर,अशुभ इव भाति कल्याणाराशी।
महाकल्पांत ब्रह्मांड-मंडल-दवन, भवन कैलास, आसीन काशी ॥ ५ ॥
तज्ञ,सर्वज्ञ,यज्ञेश, अच्युत,विभो,विश्व भवदंशसंभव पुरारी।
ब्रह्मेंद्र,चंद्रार्क,वरुणाग्नि,वसु,मरुत,यम,अर्चि भवदंघ्नि सर्वाधिकारी ॥
अकल, निरुपाधि,निर्गुण,निरंजन,ब्रह्म, कर्म-पथमेकमज निर्विकारं।
अखिलविग्रह,उग्ररूप,शिव,भूपसुर, सर्वगत,शर्व सर्वोपकारं ॥ ७ ॥
ज्ञान-वैराग्य,धन-धर्म,कैवल्य-सुख, सुभग सौभाग्य शिव!सानुकूलं।
तदपि नर मूढ आरूढ संसार-पथ, भ्रमत भव,विमुख तव पादमूलं ॥ ८ ॥
नष्टमति,दुष्ट अति,कष्ट-रत,खेद-गत, दास तुलसी शंभु-शरण आया।
देहि कामारि! श्रीराम-पद-पंकज भक्ति अनवरत गत-भेद-माया ॥ ९ ॥
भैरवरूप शिव-स्तुति
देव, भीषणाकार,भैरव,भयंकर,भूत-प्रेत-प्रमथाधिपति,विपति-हर्ता।
मोह-मूषक-मार्जार,संसार-भय-हरण,तारण-तरण,अभय कर्ता ॥ १ ॥
अतुल बल, विपुलविस्तार,विग्रहगौर, अमल अति धवल धरणीधराभं।
शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल शत-कोटि-विद्युच्छटाभं ॥ २ ॥
भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं।
ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर,नौमि हर धनद-मित्रं ॥ ३ ॥
इंदु-पावक-भानु-नयन,मर्दन-मयन, गुण-अयन,ज्ञान-विज्ञान-रूपं।
रमण-गिरिजा,भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल,वदनछवि अनूपं ॥ ४ ॥
चर्म-असि-शूल-धर,डमरु-शर-चाप-कर, यान वृषभेश,करुणा-निधानं।
जरत सुर-असुर,नरलोक शोकाकुलं, मृदुलचित,अजित,कृत गरलपानं ॥ ५ ॥
भस्म तनु-भूषणं,व्याघ्र-चर्माम्बरं, उरग-नर-मौलि उर मालधारी।
डाकिनी,शाकिनी,खेचरं,भूचरं, यंत्र-मंत्र-भंजन,प्रबल कल्मषारी ॥ ६ ॥
काल-अतिकाल,कलिकाल,व्यालादि-खग, त्रिपुर-मर्दन,भीम-कर्म भारी।
सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी ॥ ७ ॥
पाप-संताप-घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता।
पाहि भैरव-रूप राम-रूपी रुद्र,बंधु,गुरु,जनक,जननी,विधाता ॥ ८ ॥
यस्य गुण-गण गणति विमल मति शारधा,निगम नारद-प्रमुख ब्रह्मचारी।
शेष,सर्वेश,आसीन आनंदवन,दास टुलसी प्रणत-त्रासहारी ॥ ९ ॥
सदा-शंकरं,शंप्रदं,सज्जनानंददं,शैल-कन्या-वरं,परमरम्यं।
काम-मदमोचनं,तामरस-लोचनं,वामदेवं भजे भावगम्यं ॥ १ ॥
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं,सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
सिद्ध-सनकादि-योगींद्र-वृंदारका,विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥ २ ॥
ब्रह्म-कुल-वल्लभं,सुलभ मति दुर्लभं,विकट-वेषं,विभुं,वेदपारं।
नौमि करुणाकरं,गरल-गंगाधरं,निर्मलं,निर्गुणं,निर्विकारं ॥ ३ ॥
लोकनाथं,शोक-शूल-निर्मूलिनं,शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
कालकालं,कलातीतमजरं हरं,कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥ ४ ॥
तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं,प्रणत-जन-रंजनं,दास तुलसी शरण सानुकूलं ॥ ५ ॥
राग वसन्त
सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु। कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनू ॥ १ ॥
कर्पूर-गौर, करुना-उदार। संसार-सार,भुजगेन्द्र-हार ॥ २ ॥
सुख-जन्मभूमि,महिमा अपार। निर्गुन, गुननायक,निराकार ॥ ३ ॥
त्रयनयन,मयन-मर्दन महेस। अहँकार निहार-उदित दिनेस ॥ ४ ॥
बर बाल निसाकर मौलि भ्राज। त्रैलोक-सोकहर प्रमथराज ॥ ५ ॥
जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल। तिन्ह की गति कासीपति कृपाल ॥ ६ ॥
उपकारी कोऽपर हर-समान। सुर-असुर जरत कृत गरल पान ॥ ७ ॥
बहु कल्प उपायन करि अनेक। बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक ॥ ८ ॥
बिग्यान-भवन,गिरिसुता-रमन। कह तुलसिदास मम त्राससमन ॥ ९ ॥
देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत। मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत ॥ १ ॥
जनु तनुदुति चंपक-कुसुम-माल। बर बसन नील नूतन तमाल ॥ २ ॥
कलकदलि जंघ, पद कमल लाल। सूचत कटि केहरि, गति मराल ॥ ३ ॥
भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग। नूपूर किंकिनि कलरव बिहंग ॥ ४ ॥
कर नवल बकुल-पल्लव रसाल। श्रीफल कुच, कंचुकिलता-जाल ॥ ५ ॥
आनन सरोज, कच मधुप गुंज। लोचन बिसाल नव नील कंज ॥ ६ ॥
पिक बचन चरित बर बर्हि कीर। सित सुमन हास,लीला समीर ॥ ७ ॥
कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान। उर बसि प्रपंच रचे पंचबान ॥ ८ ॥
करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम। जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम ॥ ९ ॥
देवी-स्तुति
राग मारू
दुसह दोष-दुख,दलनि, करु देवि दाया।
विश्व-मूलाऽसि,जन-सानुकूलाऽसि,कर शूलधारिणि महामूलमाया ॥ १ ॥
तडित गर्भाङ्ग सर्वाङ्ग सुन्दर लसत, दिव्य पट भव्य भूषण विराजैं।
बालमृग-मंजु खंजन-विलोचनि,चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं ॥ २ ॥
रूप-सुख-शील-सीमाऽसि,भीमाऽसि,रामाऽसि,वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
छमुख हेरंब-अंबासि,जगदंबिके,शंभु-जायासि जय जय भवानी ॥ ३ ॥
चंड-भुजदंड-खंडनि,बिहंडनि महिष मुंड-मद-भंग कर अंग तोरे।
शुंभ-निःशुंभ कुम्भीश रण-केशरिणि,क्रोध-वारीश अरि-वृन्द बोरे ॥ ४ ॥
निगम-आगम-अगम गुर्वि!तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहसजीहा।
देहि मा,मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा ॥ ५ ॥
राग रामकली
जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायनी,भय-हरणि कालिका।
मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि,पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरणमालिका ॥ १ ॥
वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल-धनुषबाण,
धरणि,दलनि दानव-दल,रण-करालिका।
पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनी-शाकिनी-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका ॥ २ ॥
जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
समस्त-लोक-स्वामिनी,हिमशैल-बालिका।
रघुपति-पद परम प्रेम,तुलसी यह अचल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका ॥ ३ ॥
गंगा-स्तुति
राग रामकली
जय जय भगीरथनन्दिनि,मुनि-चय चकोर-चन्दिनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जह्नु बालिका।
बिस्नु-पद-सरोजजासि,ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथगासि,पुन्यरासि,पाप-छालिका ॥ १ ॥
बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर बिभंगतर तरंग-मालिका।
पुरजन पूजोपहार,सोभित ससि धवलधार,
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका ॥ २ ॥
निज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पतंग,
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुबंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका ॥ ३ ॥
जयति जय सुरसरी जगदखिल-पावनी।
विष्णु-पदकंज-मकरंद इव अम्बुवर वहसि,दुख दहसि,अघवृन्द-विद्राविनी ॥ १ ॥
मिलितजलपात्र-अजयुक्त-हरिचरणरज,विरज-वर-वारि त्रिपुरारि शिर-धामिनी।
जह्नु-कन्या धन्य,पुण्यकृत सगर-सुत,भूधरद्रोणि-विद्दरणि,बहुनामिनी ॥ २ ॥
यक्ष,गंधर्व,मुनि,किन्नरोरग,दनुज,मनुज मज्जहिं सुकृत-पुंज युत-कामिनी।
स्वर्ग-सोपान,विज्ञान-ज्ञानप्रदे,मोह-मद-मदन-पाथोज-हिमयामिनी ॥ ३ ॥
हरित गंभीर वानीर दुहुँ तीरवर,मध्य धारा विशद,विश्व अभिरामिनी।
नील-पर्यक-कृत-शयन सर्पेश जनु,सहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी ॥ ४ ॥
अमित-महिमा,अमितरूप,भूपावली-मुकुट-मनिवंद्य त्रेलोक पथगामिनी।
देहि रघुबीर-पद-प्रीति निर्भर मातु, दासतुलसी त्रासहरणि भवभामिनी ॥ ५ ॥
हरनि पाप त्रिबिध ताप सुमिरत सुरसरित।
बिलसति महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ-फरित ॥ १ ॥
सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित ॥ २ ॥
तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित ?
घोर भव अपारसिंधु तुलसी किमि तरित ॥ ३ ॥
ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि ॥ १ ॥
देखत दुख-दोष-दुरित-दाह-दारिद-दरनि।
सगर-सुवन साँसति-समनि,जलनिधि जल भरनि ॥ २ ॥
महिमाकी अवधि करसि बहु बिधि हरि-हरनि।
तुलसी करु बानि बिमल, बिमल बारि बरनि ॥ ३ ॥
यमुना-स्तुति
राग बिलावल
जमुना यों ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न ॥ १ ॥
ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न।
तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न ॥ २ ॥
काशी-स्तुति
राग भैरव
सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक-संताप-पाप-रुज,सकल-सुमंगल-रासी ॥ १ ॥
मरजादा चहुँओर चरनबर,सेवत सुरपुर-बासी।
तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अबिनासी ॥ २ ॥
अंतराइन ऐन भल,थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
गलकंबल बरुना बिभाति जनु,लूम लसति,सरिताऽसी ॥ ३ ॥
दंडपानि भैरव बिषान, मलरुचि-खलगन-भयदा-सी।
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन,करनघंट घंटा-सी ॥ ४ ॥
मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर,सुरसरि-सुख सुखमा-सी।
स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी ॥ ५ ॥
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित,लालति नित गिरिजा-सी।
सिद्धि सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी ॥ ६ ॥
पंचाच्छरी प्रान,मुद माधव,गब्य सुपंचनदा-सी।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग,आखर बिस्व बिकासी ॥ ७ ॥
चारितु चरति करम कुकरम करि,मरत जीवगन घासी।
लहत परमपद पय पावन ,जेहि चहत प्रपंच-उदासी ॥ ८ ॥
कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला-सी।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु,जो भयो चहै सुपासी ॥ ९ ॥
चित्रकूट-स्तुति
राग बसन्त
सब सोच-बिमोचन चित्रकूट। कलिहरन,करन कल्यान बूट ॥ १ ॥
सुचि अवनि सुहावनि आलबाल। कानन बिचित्र,बारी बिसाल ॥ २ ॥
मंदाकिनि-मालिनि सदा सींच। बर बारि,बिषम नर-नारि नीच ॥ ३ ॥
साखा सुसृंग,भूरुह-सुपात। निरझर मधुबर,मृदु मलय बात ॥ ४ ॥
सुक,पिक,मधुकर,मुनिबर बिहारु। साधन प्रसून फल चारि चारु ॥ ५ ॥
भव-घोरघाम-हर सुखद छाँह। थप्यो थिर प्रभाव जानकी-नाह ॥ ६ ॥
साधक-सुपथिक बडे भाग पाइ। पावत अनेक अभिमत अघाइ ॥ ७ ॥
रस एक,रहित-गुन-करम-काल। सिय राम लखन पालक कृपाल ॥ ८ ॥
तुलसी जो राम पद चहिय प्रेम। सेइय गिरि करि निरुपाधि नेम ॥ ९ ॥
राग कान्हरा
अब चित चेति चित्रकूटहि चलु।
कोपित कलि, लोपित मंगल मगु, बिलसत बढ़त मोह-माया-मलु ॥ १ ॥
भूमि बिलोकु राम-पद-अंकित, बन बिलोकु रघुबर-बिहारथलु।
सैल-सृंग भवभंग-हेतु लखु, दलन कपट-पाखंड-दंभ-डलु ॥ २ ॥
जहँ जनमे जग-जनक जगपति, बिधि-हरि परिहरि प्रपंच छलु।
सकृत प्रबेस करत जेहि आस्रम, बिगत-बिषाद भये पारथ नलु ॥ ३ ॥
न करु बिलंब बिचारु चारुमति, बरष पाछिले सम अगिले पलु।
मंत्र सो जाइ जपहि, जो जपि भे, अजर अमर हर अचइ हलाहलु ॥ ४ ॥
रामनाम-जप जाग करत नित, मज्जत पय पावन पीवत जलु।
करिहैं राम भावतौ मनकौ, सुख-साधन, अनयास महाफलु ॥ ५ ॥
कामदमनि कामता,कलपतरु सो जुग-जुग जागत जगतीतलु।
तुलसी तोहि बिसेषि बूझिये, एक प्रतीति प्रीति एकै बलु ॥ ६ ॥
हनुमत-स्तुति
राग धनाश्री
जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत विधु विबुध-कुल-कैरवानंदकारी।
केसरी-चारु-लोचन चकोरक-सुखद, लोकगन-शोक-संतापहारी ॥ १ ॥
जयति जय बालकपि केलि-कौतुक उदित-चंडकर-मंडल-ग्रासकर्त्ता।
राहु-रवि-शक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरण शरण-भयहरण जय भुवन-भर्ता ॥ २ ॥
जयति रणधीर, रघुवीरहित,देवमणि,रुद्र-अवतार, संसार-पाता।
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष,विमलगुण,बुद्धि-वारिधि-विधाता ॥ ३ ॥
जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण,बालि-बलशालि-बध-मुख्यहेतू।
जलधि-लंघन सिंह सिंहिंका-मद-मथन,रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू ॥ ४ ॥
जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका।
लूमलीलाऽनल-ज्वालमालाकुलित होलिकाकरण लंकेश-लंका ॥ ५ ॥
जयति सौमित्र रघुनंदनानंदकर,ऋक्ष-कपि-कटक-संघट-विधायी।
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मंगल-हेतु,भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी ॥ ६ ॥
जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट,चंड-भुजदंड तरु-शैल-पानी।
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर,पेरि डारे सुभट घालि घानी ॥ ७ ॥
जयति दशकंठ-घटकर्ण-वारिद-नाद-कदन-कारन,कालनेमि-हंता।
अघट घटना-सुघट सुघट-विघटन विकट,भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता ॥ ८ ॥
जयति विश्व-विख्यात बानैत-विरुदावली,विदुष बरनत वेद विमल बानी।
दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी ॥ ९ ॥
जयति मर्कटाधीश ,मृगराज-विक्रम,महादेव,मुद-मंगलालय,कपाली।
मोह-मद-क्रोध-कामादि-खल-संकुला,घोर संसार-निशि किरणमाली ॥ १ ॥
जयति लसदंजनाऽदितिज,कपि-केसरी-कश्यप-प्रभव,जगदार्त्तिहर्त्ता।
लोक-लोकप-कोक-कोकनद-शोकहर,हंस हनुमान कल्यानकर्ता ॥ २ ॥
जयति सुविशाल-विकराल-विग्रह,वज्रसार सर्वांग भुजदण्ड भारी।
कुलिशनख, दशनवर लसत,बालधि बृहद, वैरि-शस्त्रास्त्रधर कुधरधारी ॥ ३ ॥
जयति जानकी-शोच-संताप-मोचन,रामलक्ष्मणानंद-वारिज-विकासी।
कीस-कौतुक-केलि-लूम-लंका-दहन,दलन कानन तरुण तेजरासी ॥ ४ ॥
जयति पाथोधि-पाषाण-जलयानकर,यातुधान-प्रचुर-हर्ष-हाता।
दुष्टरावण-कुंभकर्ण-पाकारिजित-मर्मभित्,कर्म-परिपाक-दाता ॥ ५ ॥
जयति भुवननैकभूषण,विभीषणवरद,विहित कृत राम-संग्राम साका।
जयति पर-यत्रंमंत्राभिचार-ग्रसन,कारमन-कूट-कृत्यादि-हंता।
शाकिनी-डाकिनी-पूतना-प्रेत-वेताल-भूत-प्रमथ-यूथ-यंता ॥ ७ ॥
पुष्पकारूढ़ सौमित्रि-सीता-सहित,भानु-कुलभानु-कीरति-पताका ॥
जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विशद,वेद-वेदांगविद ब्रह्मवादी।
ज्ञान- विज्ञान-वैराग्य-भाजन विभो,विमल गुण गनति शुकनारदादी ॥ ८ ॥
जयति काल-गुण-कर्म-माया-मथन, निश्चलज्ञान,व्रत-सत्यरत,धर्मचारी।
सिद्ध-सुरवृंद-योगींद्र-सेवति सदा,दास तुलसी प्रणत भय-तमारी ॥ ९ ॥
जयति मंगलागार, संसारभारापहर,वानराकारविग्रह पुरारी।
राम-रोषानल-ज्वालमाला-मिष ध्वांतर-सलभ-संहारकारी ॥ १ ॥
जयति मरुदंजनामोद-मंदिर,नतग्रीव सुग्रीव-दुखःखैकबंधो।
यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर,सिद्ध-सुर-सज्जनानंद-सिंधो ॥ २ ॥
जयति रुद्राग्रणी,विश्व-वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती।
सामगाताग्रणी,कामजेताग्रणी,रामहित,रामभक्तानुवर्ती ॥ ३ ॥
जयतिसंग्रामजय, रामसंदेसहर,कौशला-कुशल-कल्याणभाषी।
राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि-नरनारि-शीतलकरण कल्पशाषी ॥ ४ ॥
जयति सिंहासनासीन सीतारमण,निरखि निर्भरहरण नृत्यकारी।
राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसिमानस-रामपुर-विहारी ॥ ५ ॥
जयति वात-संजात,विख्यात विक्रम,बृहद्बाहु,बलबिपुल,बालधिबिसाला।
जातरूपाचलाकारविग्रह,लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला ॥ १ ॥
जयति बालार्क वर-वदन,पिंगल-नयन,कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी।
विकट भृकुटी,वज् दशन नख,वैरि-मदमत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी ॥ २ ॥
जयति भीमार्जुन-व्यालसूदन-गर्वहर, धनंजय-रथ-त्राण-केतू।
भीष्म-द्रोण-कर्णादि-पालित,कालदृक सुयोधन-चमू-निधन-हेतू ॥ ३ ॥
जयति गतराजदातार,हंतार संसार-संकट,दनुज-दर्पहारी।
ईति-अति-भीति-ग्रह-प्रेत-चौरानल-व्याधिबाधा-शमन घोर मारी ॥ ४ ॥
जयति निगमागम व्याकरण करणलिपि,काव्यकौतुक-कला-कोटि-सिंधो।
सामगायक, भक्त-कामदायक,वामदेव,श्रीराम-प्रिय-प्रेम बंधो ॥ ५ ॥
जयति घर्माशु-संदग्ध-संपाति-नवपक्ष-लोचन-दिव्य-देहदाता।
कालकलि-पापसंताप-संकुल सदा,प्रणत तुलसीदास तात-माता ॥ ६ ॥
जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी,केसरी-सुवन भुवनैकभर्ता।
दिव्यभूम्यंजना-मंजुलाकर-मणे,भक्त-संताप-चिंतापहर्ता ॥ १ ॥
जयति धमार्थ-कामापवर्गद,विभो ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।
वचन-मानस-कर्म सत्य-धर्मव्रती,जानकीनाथ-चरणानुरागी ॥ २ ॥
जयति बिहगेश-बलबुद्धि-बेगाति-मद-मथन,मनमथ-मथन,ऊर्ध्वरेता।
महानाटक-निपुन,कोटि-कविकुल-तिलक,गानगुण-गर्व-गंधर्व-जेता ॥ ३ ॥
जयति मंदोदरी-केश-कर्षण,विद्यमान दशकंठ भट-मुकुट मानी।
भूमिजा-दुःख-संजात रोषांतकृत-जातनाजंतु कृत जातुधानी ॥ ४ ॥
जयति रामायण-श्रवण-संजात-रोमांच,लोचन सजल, शिथिल वाणी।
रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर पाहि,दास तुलसी शरण,शूलपाणी ॥ ५ ॥
राग सारंग
जाके गति है हनुमानकी।
ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी ॥ १ ॥
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन,ऐसी बिरुदावलि नहिं आनकी।
सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी ॥ २ ॥
तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरु जानकी।
तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी ॥ ३ ॥
राग गौरी
ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
जाको है सब भाँति भरोसो कपि केसरी-किसोरको ॥ १ ॥
जन-रंजन अरिगिन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोरको।
बेद-पुरान-प्रगट पुरुषारथ सकल-सुभट-सिरमोर को ॥ २ ॥
उथपे-थपन,थपे उथपन पन,बिबुधबृंद बँदिछोर को।
जलधि लाँघि दहि लंक प्रबल बल दलन निसाचर घोर को ॥ ३ ॥
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको।
जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको ॥ ४ ॥
लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
सदा अभय,जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोरको ॥ ५ ॥
भगत-कामतरु नाम राम परिपूरन चंद चकोरको।
तुलसी फल चारो करतल जस गावत गईबहोर को ॥ ६ ॥
राग बिलावल
ऐसी तोही न बूझिये हनुमान हठीले।
साहेब कहूँ न रामसे , तोसे न उसीले ॥ १ ॥
तेरे देखत सिंहके सिसु मेंढक लीले।
जानत हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले ॥ २ ॥
हाँक सुनत दसकंधके भये बंधन ढीले।
सो बल गयो किधौं भये अब गरबगहीले ॥ ३ ॥
सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले ॥ ४ ॥
साँसति तुलसीदासकी सुनि सुजस तुही ले।
तिहुँकाल तिनको भलौं जे राम-रँगीले ॥ ५ ॥
समरथ सुअन समीरके,रघुबीर-पियारे।
मोपर कीबी तोहि जो करि लेहि भिया रे ॥ १ ॥
तेरी महिमा ते चलै चिंचिनी-चिया रे।
अँधियारो मेरी बार क्यो,त्रिभुवन-उजियारे ॥ २ ॥
केहि करनी जन जानिकै सनमान किया रे।
केहि अघ औगुन आपने कर डारि दिया रे ॥ ३ ॥
खाई खोंची माँगि मैं तेरो नाम लिया रे।
तेरे बल,बलि,आजु लौं जग जागि जिया रे ॥ ४ ॥
जो तोसों होतौ फिरौं मेरो हेतु हिया रे।
तौ कयों बदन देखावतो कहि बचन इयारे ॥ ५ ॥
तोसो ग्यान-निधान को सरबग्य बिया रे।
हौं समुझत साई-द्रोहकी गति छार छिया रे ॥ ६ ॥
तेरे स्वामी राम से,स्वामिनी सिया रे।
तहँ तुलसीके कौनको काको तकिया रे ॥ ७ ॥
अति आरत, अति स्वारथी, अति दीन-दुखारी।
इनको बिलगु न मानिये, बोलहिं न बिचारी ॥ १ ॥
लोक-रीति देखी सुनी, व्याकुल नर-नारी।
अति बरषे अनबरषेहूँ, देहिं दैवहिं गारी ॥ २ ॥
नाकहि आये नाथसों, साँसति भय भारी।
कहि आयो, कीबी छमा, निज ओर निहारी ॥ ३ ॥
समै साँकरे सुमिरिये, समरथ हितकारी।
सो सब बिधि ऊबर करै, अपराध बिसारी ॥ ४ ॥
बिगरी सेवककी सदा,साहेबहिं सुधारी।
तुलसीपर तेरी कृपा, निरुपाधि निरारी ॥ ५ ॥
कटु कहिये गाढे परे, सुनि समुझि सुसाईं।
करहिं अनभलेउ को भलो, आपनी भलाई ॥ १ ॥
समरथ सुभ जो पाइये, बीर पीर पराई।
ताहि तकैं सब ज्यों नदी बारिधि न बुलाई ॥ २ ॥
अपने अपनेको भलो, चहैं लोग लुगाई।
भावै जो जेहि तेहि भजै, सुभ असुभ सगाई ॥ ३ ॥
बाँह बोलि दै थापिये, जो निज बरिआई।
बिन सेवा सों पालिये, सेवककी नाईं ॥ ४ ॥
चूक-चपलता मेरियै, तू बड़ो बड़ाई।
होत आदरे ढीठ है, अति नीच निचाई ॥ ५ ॥
बंदिछोर बिरुदावली, निगमागम गाई।
नीको तुलसीदासको, तेरियै निकाई ॥ ६ ॥
राम गौरी
मंगल-मूरति मारुत-नंदन। सकल-अमंगल-मूल-निकंदन ॥ १ ॥
पवनतनय संतन हितकारी। ह्रदय बिराजत अवध-बिहारी ॥ २ ॥
मातु-पिता,गुरु,गनपति,सारद। सिवा समेत संभु,सुक,नारद ॥ ३ ॥
चरन बंदि बिनवौं सब काहू। देहु रामपद-नेह-निबाहू ॥ ४ ॥
बंदौं राम-लखन-बैदेही। जे तुलसीके परम सनेही ॥ ५ ॥
लक्ष्मण-स्तुति
दण्डक
लाल लाडिले लखन , हित हौ जनके।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी ,
पालक कृपालु अपने पनके ॥ १ ॥
धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार ,
अवतार साहसी सहसफनके ॥
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत ,
निरमल करम बचन अरु मन के ॥ २ ॥
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके ॥
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
गायक जानकीनाथ गुनगनके ॥ ३ ॥
भावते भरत के, सुमित्रा-सीताके दुलारे ,
चातक चतुर राम स्याम घनके ॥
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस ,
धनी धन तुलसीसे निरधनके ॥ ४ ॥
राग धनाश्री
जयति लक्ष्मणानंत भगवंत भूधर, भुजग-
राज, भुवनेश, भूभारहारी।
प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन,
शमन-संताप लीलावतारी ॥ १ ॥
जयति दाशरथि, समर-समरथ, सुमित्रा-
सुवन, शत्रुसूदन, राम-भरत-बंधो।
चारु-चंपक-वरन, वसन-भूषन-धरन,
दिव्यतर, भव्य, लावण्य-सिधों ॥ २ ॥
जयति गाधेय-गौतम-जनक-सुख-जनक,
विश्व-कंटक-कुटिल-कोटि-हंता।
वचन-चय-चातुरी-परशुधर-गरबहर,
सर्वदा रामभद्रानुगंता ॥ ३ ॥
जयति सीतेश-सेवासरस , बिषयरस-
निरस, निरुपाधि धुरधर्मधारी।
विपुलबलमूल शार्दूलविक्रम जलद-
नाद-मर्दन, महावीर भारी ॥ ४ ॥
जयति संग्राम-सागर-भयंकर-तरन,
रामहित-करण वरबाहु-सेतु।
उर्मिला-रवन, कल्याण-मंगल-भवन,
दासतुलसी-दोष-दवन-हेतू ॥ ५ ॥
भरत-स्तुति
जयति भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस-
रसिक-मधुकर भरत भूरिभागी।
भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल-
मनि रामचंद्रानुरागी ॥ १ ॥
जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा-
राज-संम्राज-सुख-पद-विरागी।
खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट
शुद्धमति-युवति पति-प्रेमपागी ॥ २ ॥
जयति निरुपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-ह्रदय ,
बंधु-हित चित्रकुटाद्रि-चारी।
पादुका-नृप-सचिव,पुहुमि-पालक परम
धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी ॥ ३ ॥
जयति संजीवनी-समय-संकट हनूमान
धनुबान-महिमा बखानी।
बाहुबल बिपुल परमिति पराक्रम अतुल,
गूढ गति जानकी-जानि जानी ॥ ४ ॥
जयति रण-अजिर गन्धर्व-गण-गर्वहर,
फिर किये रामगुणगाथ-गाता।
माण्डवी-चित्त-चातक-नवांबुद-बरन,
सरन तुलसीदास अभय दाता ॥ ५ ॥
शत्रुघ्न-स्तुति
राग धनाश्री
जयति जय शत्रु-करि-केसरी शत्रुहन,
शत्रुतम-तुहिनहर किरणकेतू।
देव-महिदेव-महि-धेनु-सेवक सुजन-
सिद्धि-मुनि-सकल-कल्याण-हेतू ॥ १ ॥
जयति सर्वांगसुदंर सुमित्रा-सुवन,
भुवन-विख्यात-भरतानुगामी।
वर्मचर्मासी-धनु-बाण-तूणीर-धर
शत्रु-संकट-समय यत्प्रणामी ॥ २ ॥
जयति लवणाम्बुनिधि-कुंभसंभव महा-
दनुज-दुर्जनदवन, दुरितहारि।
लक्ष्मणानुज, भरत-राम-सीता-चरण-
रेणु-भूषित-भाल-तिलकधारी ॥ ३ ॥
जयति श्रुतिकीर्ति-वल्लभ सुदुर्लभ सुलभ
नमत नर्मद भुक्तिमुक्तिदाता।
दासतुलसी चरण-शरण सीदत विभो,
पाहि दीनार्त्त-संताप-हाता ॥ ४ ॥
श्रीसीता-स्तुति
राग केदारा
कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी,कछु करुन-कथा चलाइ ॥ १ ॥
दीन, सब अँगहीन,छीन,मलीन,अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ ॥ २ ॥
बूझिहैं 'सो है कोन', कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरीऔ बनि जाइ ॥ ३ ॥
जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ।
तरै तुलसीदास भव तव नाथ-गुन-गन गाइ ॥ ४ ॥
कबहुँ समय सुधि द्ययाबी,मेरी मातु जानकी।
जन कहाइ नाम लेत हौं,किये पन चातक ज्यों,प्यास-प्रेम-पानकी ॥ १ ॥
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करुना-निधानकी।
निजगुन,अरिकृत अनहितौ,दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी ॥
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी।
तुलसीदास न बिसारिये,मन करम बचन जाके,सपनेहुँ गति न आनकी ॥
श्रीराम-स्तुति
जयति सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
विकल ब्रह्मादि,सुर,सिद्ध,संकोचवश,विमल गुण-गेह नर-देह-धारी। १।
जयति कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता,कुशल कैवल्य-फल चारु चारी।
वेद-बोधित करम-धरम-धरनीधेनु,विप्र-सेवक साधु-मोदकारी ॥ २ ॥
जयति ऋषि-मखपाल,शमन-सज्जन-साल,शापवश मुनिवधू-पापहारी।
भंजि भवचाप,दलि दाप भूपावली,सहित भृगुनाथ नतमाथ भारी ॥ ३ ॥
जयति धारमिक-धुर,धीर रघुवीर गुर-मातु-पितु-बंधु-वचनानुसारी।
चित्रकूटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन,धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी ॥ ४ ॥
जयति पाकारिसुत-काक-करतूति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा ॥ ५ ॥
जयति खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
गृध्र-शबरी-भक्ति-विवश करुणासिंधु,चरित निरुपाधि,त्रिविधार्तिहर्ता ॥ ६ ॥
जयति मद-अंध कुकबंध बधि,बालि बलशालि बधि,करन सुग्रीव राजा।
सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत,नमत पद रावणानुज निवाजा ॥ ७ ॥
जयति पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु,काल-मन अगम लई ललकि लंका।
सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण,लोक-लोकप किये रहित-शंका ॥ ८ ॥
जयति सौमित्रि-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारुढ निज राजधानी।
दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल,राम भे भूप वैदेहि रानी ॥ ९ ॥
जयति राज-राजेंद्र राजीवलोचन,राम
नाम कलि-कामतरु,साम-शाली।
अनय-अंभोधि-कुंभज,निशाचर-निकर-
तिमिर-घनघोर-खरकिरणमाली ॥ १ ॥
जयति मुनि-देव-नरदेव दसरत्थके ,
देव-मुनि-वंद्य किय अवध-वासी।
लोक नायक-कोक-शोक-संकट-शमन,
भानुकुल-कमल कानन-विकासी ॥ २ ॥
जयति शृंगार-सर तामरस-दामदुति-
देह,गुणगेह,विश्वोपकारी ॥ ।३ ॥
सकल सौभाग्य-सौंदर्य-सुषमारुप,
मनोभव कोटि गर्वापहारी ॥ ३ ॥
(जयति) सुभग सारंग सुनिखंग सायक शक्ति,
चारु चर्मासि वर वर्मधारी।
धर्मधुरधीर,रघुवीर,भुजबल अतुल,।
हेलया दलित भूभार भारी ॥ ४ ॥
जयति कलधौत मणि-मुकुट,कुंडल,तिलक-
झलक भलि भाल,विधु-वदन-शोभा।
दिव्य भूषन,बसन पीत,उपवीत,
किय ध्यान कल्यान-भाजन न को भा ॥ ५ ॥
(जयति)भरत-सौमित्रि-शत्रुघ्न-सेवित,सुमुख,
सचिव-सेवक-सुखद, सर्वदाता ॥
अधम,आरत,दीन,पतित,पातक-पीन
सकृत नतमात्र कहि 'पाहि' पाता ॥ ६ ॥
जयति जय भुवन दसचारि जस जगमगत,
पुन्यमय,धन्य जय रामराजा।
चरित-सुरसरित कवि-मुख्य गिरि निःसरित,
पिबत,मज्जत मुदित सँत-समाजा ॥ ७ ॥
जयति वर्णाश्रमाचारपर नारि-नर,
सत्य-शम-दम-दया-दानशीला।
विगत दुख-दोष,संतोस सुख सर्वदा,
सुनत,गावत राम राजलीला ॥ ८ ॥
जयति वैराग्य-विज्ञान-वारांनिधे
नमत नर्मद,पाप-ताप-हर्ता।
दास तुलसी चरण शरण संशय-हरण,
देहि अवलंब वैदेहि-भर्ता ॥ ९ ॥
राग गौरी
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
नवकंज-लोचन,कंज-मुख,कर-कंज,पद कंजारुणं ॥ १ ॥
कंदर्प अगणित अमित छवि,नवनिल नीरद सुंदरं।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ २ ॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश निकंदनं।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं ॥ ३ ॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर,संग्राम-जित-खरदूषणं ॥ ४ ॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम ह्रदय कंज निवास करु कामादि खल-दल-गंजनं ॥ ५ ॥
राग रामकली
सदा राम जपु,राम जपु,राम जपु, राम जपु, राम जपु, मूढंअन बार बारं।
सकल सौभाग्य-सुख-खानि जिय जानि शठ,मानि विश्वास वद वेदसारं ॥
कोशलेन्द्र नव-नीलकंजाभतनु,मदन-रिपु-कंजह्रदि-चंचरीकं।
जानकीरवन सुखभवन भुवनैकप्रभु,समर-भंजन,परम कारुनीकं ॥ २ ॥
दनुज-वन धूमधुज,पीन आजानुभुज,दंड-कोदंडवर चंड बानं।
अरुनकर चरण मुख नयन राजीव,गुन-अयन,बहु मयन-शोभा-निधानं ॥ ३ ॥
वासनावृंद-कैरव-दिवाकर, काम-क्रोध-मद कंज-कानन-तुषारं।
लोभ अति मत्त नागेंद्र पंचानन भक्तहित हरण संसार-भारं ॥ ४ ॥
केशवं,क्लेशहं,केश-वंदित पद-द्वंद्व मंदाकिनी-मूलभूतं।
सर्वदानंद-संदोह,मोहापहं, घोर-संसार-पाथोधि-पोतं ॥ ५ ॥
शोक-संदेह-पाथोदपटलानिलं, पाप-पर्वत-कठिन-कुलिशरूपं।
संतजन-कामधुक-धेनु,विश्रामप्रद, नाम कलि-कलुष-भंजन अनूपं ॥ ६ ॥
धर्म-कल्पद्रुमाराम, हरिधाम-पथि संबलं, मूलमिदमेव एकं।
भक्ति-वैराग्यं विज्ञान-शम-दान-दम, नाम आधीन साधन अनेकं ॥ ७ ॥
तेन तप्तं,हुतं,दत्तमेवाखिलं, तेन सर्व कृतं कर्मजालं।
येन श्रीरामनामामृतं पानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्य कालं ॥ ८ ॥
श्वपच,खल,भिल्ल,यवनादि हरिलोकगत, नामबल विपुल मति मल न परसी।
त्यागि सब आस,संत्रास,भवपास असि निसित हरिनाम जपु दासतुलसी ॥
ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन।
हरन दुखदुंद गोबिंद आनन्दघन ॥ १ ॥
अचरचर रूप हरि,सरबगत,सरबदा बसत,इति बासना धूप दीजै।
दीप निजबोधगत-कोह-मद-मोह-तम,प्रौढऽभिमान चितबृति छीजै। २।
भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम संतोषकारी।
प्रेम-तांबूल गत शूल संशय सकल,विपुल भव-बासना-बीजहारी। ३।
अशुभ-शुभकर्म-घृतपूर्ण दश वर्तिका,त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं।
भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली,अर्पि नीराजनं जगनिवासं ॥ ४ ॥
बिमल ह्रदि-भवन कृत शांति-पर्यक शुभ,शयन विश्राम श्रीरामराया।
क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका,यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया। ५।
एहि आरती-निरत सनकादि,श्रुति,शेष,शिव,देवरिषि,अखिलमुनि तत्व-दरसी
करै सोइ तरै,परिहरै कामादि मल,वदति इति अमलमति-दास तुलसी ॥ ६ ॥
हरति सब आरती आरती रामकी।
दहन दुख-दोष,निरमूलिनी कामकी ॥ १ ॥
सुरभ सौरभ धूप दीपबर मालिका।
उड़त अघ-बिहँग सुनि ताल करतालिका ॥ २ ॥
भक्त-ह्रदि-भवन, अज्ञान-तम-हारिनी।
बिमल बिग्यानमय तेज-बिस्तारिनी ॥ ३ ॥
मोह-मद-कोह-कलि-कंज-हिमजामिनी।
मुक्तिकी दूतिका,देह-दुति दामिनी ॥ ४ ॥
प्रनत-जन-कुमुद-बन-इंदु-कर-जालिका।
तुलसि अभिमान-महिषेस बहु कालिका ॥ ५ ॥
हरिशंकरी पद
देव-दनुज-बन-दहन,गुन-गहन,गोविंद नंदादि-आनंद-दाताऽविनाशी।
शंभु,शिव,रुद्र,शंकर,भयंकर,भीम,घोर,तेजायतन,क्रोध-राशी ॥ १ ॥
अनँत,भगवंत-जगदंत-अंतक-त्रास-शमन,श्रीरमन,भुवनाभिरामं।
भूधराधीश जगदीश ईशान,विज्ञानघन,ज्ञान-कल्यान-धामं ॥ २ ॥
वामनाव्यक्त,पावन,परावर,विभो,प्रकट परमातमा,प्रकृति-स्वामी।
चंद्रशेखर,शूलपाणि,हर,अनघ,अज,अमित,अविछिन्न,वृशभेश-गामी ॥ ३ ॥
नीलजलदाभ तनु श्याम,बहु काम छवि राम राजीवलोचन कृपाला।
कबुं-कर्पूर-वपु धवल,निर्मल मौलि जटा,सुर-तटिनि,सित सुमन माला ॥ ४ ॥
वसन किंजल्कधर,चक्र-सारंग-दर-कंज-कौमोदकी अति विशाला।
मार-करि-मत्त-मृगराज,त्रैनैन,हर,नौमि अपहरण संसार-जाला ॥ ५ ॥
कृष्ण,करुणाभवन,दवन कालीय खल,विपुल कंसादि निर्वशकारी।
त्रिपुर-मद-भंगकर,मत्तगज-चर्मधर,अन्धकोरग-ग्रसन पन्नगारी ॥ ६ ॥
ब्रह्म,व्यापक,अकल,सकल,पर,परमहित,ग्यान,गोतीत,गुण-वृत्ति-हर्त्ता।
सिंधुसुत-गर्व-गिरि-वज्र,गौरीश,भव दक्ष-मख अखिल विध्वंसकर्त्ता ॥ ७ ॥
भक्तिप्रिय,भक्तजन-कामधुक धेनु,हरि हरण दुर्घट विकट विपति भारी।
सुखद,नर्मद,वरद,विरज,अनवघ्यऽखिल,विपिन-आनंद-वीथिन-विहारी
रुचिर हरिशंकरी नाम-मंत्रावली द्वंद्वदुख हरनि,आनंदखानी।
विष्णु-शिव-लोक-सोपान-सम सर्वदा वदति तुलसीदास विशद बानी ॥ ८ ॥
देव-
भानुकुल-कमल-रवि,कोटि कंर्दप-छवि,काल-कलि-व्यालमिव वैनतेयं।
प्रबल भुजदंड परचंड-कोदंड-धर तूणवर विशिख बलमप्रमेयं ॥ १ ॥
अरुण राजीवदल-नयन,सुषमा-अयन,श्याम तन-कांति वर वारिदाभं।
तत्प कांचन-वस्त्र,शस्त्र-विद्या-निपुण,सिद्ध-सुर-सेव्य,पाथोजनाभं ॥
अखिल लावण्य-गृह,विश्व-विग्रह,परम प्रौढ,गुणगूढ़,महिमा उदारं।
दुर्धर्ष,दुस्तर,दुर्ग,स्वर्ग-अपवर्ग-पति,भग्न संसार-पादप कुठारं ॥ ३ ॥
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत,विप्रहित,यज्ञ-रक्षण-दक्ष,पक्षकर्ता।
जनक-नृप-सदसि शिवचाप-भंजन,उग्र भार्गवागर्व-गरिमापहर्ता ॥ ४ ॥
गुरु-गिरा-गौरवामर-सुदुस्त्यज राज्य त्यक्त,श्रीसहित सौमित्रि-भ्राता।
संग जनकात्मजा,मनुजमनुसृत्य अज,दुष्ट-वध-निरत,त्रैलोक्यत्राता ॥ ५ ॥
दंडकारण्य कृतपुण्य पावन चरण,हरण मारीच-मायाकुरंगं।
बालि बलमत्त गजराज इव केसरी,सुह्रद-सुग्रीव-दुख-राशि-भंगं ॥ ६ ॥
ऋक्ष,मर्कट विकट सुभट उभ्दट समर,शैल-संकाश रिपु त्रासकारी।
बद्धपाथोधि,सुर-निकर-मोचन,सकुल दलन दससीस-भुजबीस भारी ॥ ७ ॥
दुष्ट विबुधारि-संघात,अपहरण महि-भार,अवतार कारण अनूपं।
अमल,अनवद्य,अद्वैत,निर्गुण,सर्गुण,ब्रह्म सुमिरामि नरभूप-रूपं ॥ ८ ॥
शेष-श्रुति-शारदा-शंभु-नारद-सनक गनत गुन अंत नहीं तव चरित्रं।
सोइ राम कामारि-प्रिय अवधपति सर्वदा दासतुलसी-त्रास-निधि वहित्रं ॥ ९ ॥
देव
जानकीनाथ,रघुनाथ,रागादि-तम-तरणि,तारुण्यतनु,तेजधामं।
सच्चिदानंद,आनंदकंदाकरं,विश्व-विश्राम,रामाभिरामं ॥ १ ॥
नीलनव-वारिधर-सुभग-शुभकांति,कटि पीत कौशेय वर वसनधारी।
रत्न-हाटक-जटित-मुकुट-मंडित-मौलि,भानु-शत-सदृश उद्योतकारी ॥ २ ॥
श्रवण कुंडल,भाल तिलक,भूरुचिर अति,अरुण अंभोज लोचन विशालं।
वक्र-अवलोक,त्रैलोक-शोकापहं,मार-रिपु-ह्रदय-मानस-मरालं ॥ ३ ॥
नासिका चारु सुकपोल,द्विज वज्रदुति,अधर बिंबोपमा,मधुरहासं।
कंठ दर,चिबुक वर,वचन गंभीरतर,सत्य-संकल्प, सुरत्रास-नासं ॥ ४ ॥
सुमन सुविचित्र नव तुलसिकादल-युतं मृदृल वनमाल उर भ्राजमानं।
भ्रमत आमोदवश मत्त मधुकर-निकर,मधुरतर मुखर कुर्वन्ति गानं ॥ ५ ॥
सुभग श्रीवत्स,केयूर,कंकण,हार,किंकणी-रटनि कटि-तट रसालं।
वाम दिसि जनकजासीन-सिंहासनं कनक-मृदुवल्लित तरु तमालं ॥ ६ ॥
आजानु भुजदंड कोदंड-मंडित वाम बाहु, दक्षिण पाणि बाणमेकं।
अखिल मुनि-निकर,सुर,सिद्ध,गंधर्व वर नमत नर नाग अवनिप अनेकं ॥
अनघ अविछिन्न,सर्वज्ञ,सर्वेश, खलु सर्वतोभद्र-दाताऽसमाकं।
प्रणतजन-खेद-विच्छेद-विद्या-निपुण नौमि श्रीराम सौमित्रिसाकं ॥ ८ ॥
युगल पदपद्म,सुखसद्म पद्मालयं, चिन्ह कुलिशादि शोभाति भारी।
हनुमंत-ह्रदि विमल कृत परममंदिर, सदातुलसी-शरण शोकहारी ॥
देव--
कोशलाधीश,जगदीश,जगदेकहित, अमितगुण,विपुल विस्तार लीला।
गायंति तव चरित सुपवित्र श्रुति-शेष-शुक-शंभु-सनकादि मुनि मननशीला ॥ १ ॥
वारिचर-वपुष धरि भक्त-निस्तारपर, धरणिकृत नाव महिमातिगुर्वी।
सकल यज्ञांशमय उग्र विग्रह क्रोड़, मर्दि दनुजेश उद्धरण उर्वी ॥ २ ॥
कमठ अति विकट तनु कठिन पृष्ठोपरी, भ्रमत मंदर कंडु-सुख मुरारी।
प्रकटकृत अमृत,गो,इंदिरा,इंदु, वृंदारकावृंद-आनंदकारी ॥ ३ ॥
मनुज-मुनि-सिद्ध-सुर-नाग-त्रासक, दुष्ट दनुज द्विज-धर्म-मरजाद-हर्त्ता।
अतुल मृगराज-वपुधरित, विद्दरित अरि, भक्त प्रहलाद-अहलाद-कर्त्ता ॥ ४ ॥
छलन बलि कपट-वटुरूप वामन ब्रह्म, भुवन पर्यंत पद तीन करणं।
चरण-नख-नीर-त्रेलोक-पावन परम, विबुध-जननी-दुसह-शोक-हरणं ॥ ५ ॥
क्षत्रियाधीश-करिनिकर-नव-केसरी, परशुधर विप्र-सस-जलदरूपं।
बीस भुजदंड दससीस खंडन चंड वेग सायक नौमि राम भूपं ॥ ६ ॥
भूमिभर-भार-हर,प्रकट परमातमा, ब्रह्म नररूपधर भक्तहेतू।
वृष्णि-कुल-कुमुद-राकेश राधारमण, कंस-बंसाटवी-धूमकेतू ॥ ७ ॥
प्रबल पाखंड महि-मंडलाकुल देखि, निंद्यकृत अखिल मख कर्म-जालं।
शुद्ध बोधैकघन,ज्ञान-गुणधाम, अज बौद्ध-अवतार वंदे कृपालं ॥ ८ ॥
कालकलिजनित-मल-मलिनमन सर्व नर मोह निशि-निबिड़यवनांधकारं।
विष्णुयश पुत्र कलकी दिवाकर उदित दासतुलसी हरण विपतिभारं ॥ ९ ॥
देव--
सकल सौभाग्यप्रद सर्वतोभद्र-निधि, सर्व,सर्वेश,सर्वाभिरामं।
शर्व-ह्रदि-कंज-मकरंद-मधुकर रुचिर-रूप, भूपालमणि नौमि रामं ॥ १ ॥
सर्वसुख-धाम गुणग्राम, विश्रामपद, नाम सर्वसंपदमति पुनीतं।
निर्मलं शांत,सुविशुद्ध,बोधायतन, क्रोध-मद-हरण,करुणा-निकेतं ॥ २ ॥
अजित,निरुपाधि,गोतीतमव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजमद्वितीयं।
प्राकृतं,प्रकट परमातमा,परमहित, प्रेरकानंत वंदे तुरीयं ॥ ३ ॥
भूधरं सुन्दरं,श्रीवरं,मदन-मद-मथन सौन्दर्य-सीमातिरम्यं।
दुष्प्राप्य,दुष्पेक्ष्य,दुस्तर्क्य,दुष्पार, संसारहर,सुलभ,मृदुभाव-गम्यं ॥
सत्यकृत,सत्यरत,सत्यव्रत,सर्वदा, पुष्ट,संतुष्ट,संकष्टहारी।
धर्मवर्मनि ब्रह्मकर्मबोधैक,विप्रपूज्य, ब्रह्मण्यजनप्रिय,मुरारी ॥ ५ ॥
नित्य,निर्मम,नित्यमुक्त,निर्मान, हरि,ज्ञानघन,सच्चिदानंद मूलं।
सर्वरक्षक सर्वभक्षकाध्यक्ष,कूटस्थ, गूढार्चि, भक्तानुकूलं ॥ ६ ॥
सिद्ध-साधक-साध्य,वाच्य-वाचकरूप, मंत्र-जापक-जाप्य,सृष्टि-स्त्रष्टा।
परम कारण,कञ्ञनाभ,जलदाभतनु, सगुण,निर्गुण,सकल दृश्य-द्रष्टा ॥ ७ ॥
व्योम-व्यापक,विरज,ब्रह्म,वरदेश, वैकुंठ, वामन विमल ब्रह्मचारी।
सिद्ध-वृंदारकावृंदवंदित सदा, खंडि पाखंड-निर्मूलकारी ॥ ८ ॥
पूरनानंदसंदोह, अपहरन संमोह-अज्ञान, गुण-सन्निपातं।
बचन-मन-कर्म-गत शरण तुलसीदास त्रास-पाथोधि इव कुंभजातं ॥ ९ ॥
देव--
विश्व-विख्यात,विश्वेश,विश्वायतन, विश्वमरजाद,व्यालारिगामी।
ब्रह्म,वरदेश,वागीश,व्यापक,विमल विपुल,बलवान,निर्वानस्वामी ॥ १ ॥
प्रकृति,महतत्व,शब्दादि गुण,देवता व्योम,मरुदग्नि,अमलांबु,उर्वी।
बुद्धि,मन,इंद्रिय,प्राण,चित्तातमा, काल,परमाणु,चिच्छक्ति गुर्वी ॥ २ ॥
सर्वमेवात्र त्वद्रूप भूपालमणि! व्यक्तमव्यक्त, गतभेद,विष्णो।
भुवन भवदंग,कामारि-वंदित, पदद्वंद्व मंदाकिनी-जनक, जिष्णो ॥ ३ ॥
आदिमध्यांत,भगवंत! त्वं सर्वगतमीश, पश्यन्ति ये ब्रह्मवादी।
यथा पट-तंतु,घट-मृतिका, सर्प-स्त्रग,दारुकरि,कनक-कटकांगदादी ॥ ४ ॥
गूढ़,गंभीर,गर्वघ्न,गूढार्थवित,गुप्त,गोतीत,गुरु,ग्यान-ग्याता।
ग्येय,ग्यानप्रिय,प्रचुर गरिमागार, घोर-संसार-पर, पार दाता ॥ ५ ॥
सत्यसंकल्प,अतिकल्प,कल्पांतकृत,कल्पनातीत,अहि-तल्पवासी।
वनज-लोचन,वनज-नाभ, वनदाभ-वपु, वनचरध्वज-कोटि-लावण्यरासी ॥ ६ ॥
सुकर,दुःकर,दुराराध्य,दुर्व्यसनहर,दुर्ग,दुर्द्धर्ष,दुर्गार्त्तिहर्त्ता।
वेदगर्भार्भकादर्भ-गुनगर्व, अर्वांगपर-गर्व-निर्वाप-कर्त्ता ॥ ७ ॥
भक्त-अनुकूल,भवशूल-निर्मूलकर, तूल-अघ-नाम पावक-समानं।
तरलतृष्णा-तमी-तरणि,धरणीधरण, शरण-भयहरण,करुणानिधानं ॥ ८ ॥
बहुल वृंदारकावृंद-वंदारु-पद-द्वंद्व मंदार-मालोर-धारी।
पाहि मामीश संताप-संकुल सदा दास तुलसी प्रणत रावणारी ॥ ९ ॥
देव--
संत-संतापहर,विश्व-विश्रामकर, रामकामारि,अभिरामकारी।
शुद्ध बोधायतन,सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद-वर्धन,खरारी ॥ १ ॥
शील-समता-भवन,विषमता-मति-शमन,राम,रमारमन,रावनारी।
खड्ग,कर चर्मवर,वर्मधर,रुचिरल कटि तूण,शर-शक्ति-सारंगधारी ॥ २ ॥
सत्यसंधान,निर्वानप्रद,सर्वहित, सर्वगुण-ज्ञान-विज्ञानशाली।
सघन-तम-घोर-संसार-भर-शर्वरी नाम दिवसेष खर-किरणमाली ॥ ३ ॥
तपन तीच्छन तरुन तीव्र तापघ्न, तपरूप,तनभूप,तमपर,तपस्वी।
मान-मद-मदन-मत्सर-मनोरथ-मथन, मोह-अंभोधि-मंदर,मनस्वी ॥ ४ ॥
वेद विख्यात,वरदेश,वामन,विरज,विमल,वागीश,वैकुंठस्वामी।
काम-क्रोधादिमर्दन,विवर्धन,छमा-शांति-विग्रह,विहगराज-गामी ॥ ५ ॥
परम पावन,पाप-पुंज-मुंजावटी-अनल इव निमिष निर्मूलकर्त्ता।
भुवन-भूषण,दूषणारि-भुवनेश,भूनाथ,श्रुतिमाथ जय भुवनभर्ता ॥ ६ ॥
अमल,अविचल,अकल,सकल,संतप्त-कलि-विकलता-भंजनानंदरासी।
उरगनायक-शयन,तरुणपंकज-नयन,छीरसागर-अयन,सर्ववासी ॥ ७ ॥
सिद्ध-कवि-कोविकानंद-दायक पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं।
यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं ॥ ८ ॥
नित्य निर्मुक्त,संयुक्तगुण,निर्गुणानंद,भगवंत,न्यामक,नियंता।
विश्व-पोषण-भरण,विश्व-कारण-करण, शरण तुलसीदास त्रास-हंता ॥ ९ ॥
देव--
दनुजसूदन दयासिंधु,दंभापहन दहन दुर्दोष,दर्पापहर्त्ता।
दुष्टतादमन,दमभवन,दुःखौघहर दुर्ग दुर्वासना नाश कर्त्ता ॥ १ ॥
भूरिभूषण,भानुमंत,भगवंत, भवभंजनाभयद,भुवनेश भारी।
भावनातीत,भववंद्य,भवभक्तहित, भूमिउद्धरण,भूधरण-धारी ॥ २ ॥
वरद,वनदाभ,वागीश,विश्वात्मा, विरज,वैकुण्ठ-मन्दिर-विहारी।
व्यापक व्योम,वंदारु,वामन,विभो,ब्रह्मविद,ब्रह्म,चिंतापहारी ॥ ३ ॥
सहज सुन्दर,सुमुख,सुमन,शुभ सर्वदा, शुद्धसर्वज्ञ,स्वछन्दचारी।
सर्वकृत,सर्वभृत,सर्वजित,सर्वहित, सत्य-संकल्प,कल्पांतकारी ॥ ४ ॥
नित्य,निर्मोह,निर्गुण,निरंजन, निजानंद,निर्वाण,निर्वाणदाता।
निर्भरानंद,निःकंप,निःसीम,निर्मुक्त, निरुपाधि,निर्मम,विधाता ॥ ५ ॥
महामंगलमूल,मोद-महिमायतन,मुग्ध-मधु-मथन,मानद,अमानी।
मदनमर्दन,मदातीत,मायारहित, मंजु मानाथ,पाथोजपानी ॥ ६ ॥
कमल-लोचन,कलाकोश,कोदंडधर,कोशलाधीश,कल्याणराशी।
यातुधान प्रचुर मत्तकरि-केसरी, भक्तमन-पुण्य-आरण्यवासी ॥ ७ ॥
अनघ,अद्वैत,अनवद्य,अव्यक्त,अज, अमित अविकार,आनंदसिंधो।
अचल,अनिकेत,अविरल,अनामय, अनारंभ,अंभोदनादहन-बंधो ॥ ८ ॥
दासतुलसी खेदखिन्न,आपन्न इह, शोकसंपन्न अतिशय सभीतं।
प्रणतपालक राम, परम करुणाधाम, पाहि मामुर्विपति,दुर्विनीतं ॥ ९ ॥
देव--
देहि सतसंग निज-अंग श्रीरंग! भवभंग-कारण शरण-शोकहारी।
ये तु भवदघ्रिपल्लव-समाश्रित सदा, भक्तिरत,विगतसंशय,मुरारी ॥ १ ॥
असुर,सुर,नाग,नर,यक्ष,गंधर्व,खग,रजनिचर,सिद्ध,ये चापि अन्ने।
संत-संसर्ग त्रेवर्गपर,परमपद,प्राप्य निप्राप्यगति त्वयि प्रसन्ने ॥ २ ॥
वृत्र,बलि,बाण,प्रहलाद,मय,व्याध,गज,गृध्र,द्विजबन्धु निजधर्मत्यागी।
साधुपद-सलिल-निर्धूत-कल्मष सकल,श्वपच-यवनादि कैवल्य-भागी ॥ ३ ॥
शांत,निरपेक्ष,निर्मम,निरामय,अगुण,शब्दब्रह्मैकपर,ब्रह्मज्ञानी।
दक्ष,समदृक,स्वदृक,विगत अति स्वपरमति,परमरतिविरति तव चक्रपानी ॥ ४ ॥
विश्व-उपकारहित व्यग्रचित सर्वदा,त्यक्तमदमन्यु,कृत पुण्यरासी।
यत्र तिष्ठन्ति,तत्रेव अज शर्व हरि सहित गच्छन्ति क्षीराब्धिवासी ॥ ५ ॥
वेद-पयसिंधु,सुविचार मंदरमहा, अखिल-मुनिवृंद निमर्थनकर्ता।
सार सतसंगमुद् धृत्य इति निश्चिंतं वदति श्रीकृष्ण वैदर्भिभर्ता ॥ ६ ॥
शोक-संदेह,भय-हर्ष,तम-तर्षगण,साधु-सद्युक्ति विच्छेदकारी।
यथा रघुनाथ-सायक निशाचर-चमू-निचय-निर्दलन-पटु-वेग-भारी ॥ ७ ॥
यत्र कुत्रापि मम जन्म निजकर्मवश भ्रमत जगजोनि संकट अनेकं।
तत्र त्वद्भक्ति,सज्जन-समागम, सदा भवतु मे राम विश्राममेकं ॥ ८ ॥
प्रबल भव-जनित त्रैव्याधि-भैषज भगति, भक्त भैषज्यमद्वैतदरसी।
संत-भगवंत अंतर निरंतर नहीं, किमपि मति मलिन कह दासतुलसी ॥ ९ ॥
देव--
देहि अवलंब कर कमल,कमलारमन,दमन-दुख,शमन-संताप भारी।
अज्ञान-राकेश-ग्रासन विंधुतुद,गर्व-काम-करिमत्त-हरि,दूषणारी ॥ १ ॥
वपुष ब्रह्माण्ड सुप्रवृत्ति लंका-दुर्ग, रचित मन दनुज मय-रूपधारी।
विविध कोशौघ, अति रुचिर-मंदिर-निकर,सत्वगुण प्रमुख त्रेकटककारी ॥ २ ॥
कुणप-अभिमान सागर भंयकर घोर, विपुल अवगाह,दुस्तर अपारं।
नक्र रागादि-संकुल मनोरथ सकल, संग-संकल्प वीची-विकारं ॥ ३ ॥
मोह दशमौलि, तद्भ्रात अहँकार, पाकारिजित काम विश्रामहारी।
लोभ अतिकाय,मत्सर महोदर दुष्ट,क्रोध पापिष्ठ-विबुधांतकारी ॥ ४ ॥
द्वेष दुर्मुख,दंभ खर अकंपन कपट, दर्प मनुजाद मद शूलपानी।
अमितबल परम दुर्जय निशाचर-निकर सहित षडवर्ग गो-यातुधानी ॥ ५ ॥
जीव भवदंघ्रि-सेवक विभीषण बसत मध्य दुष्टाटवी ग्रसितचिंता।
नियम-यम-सकल सुरलोक-लोकेश लंकेश-वश नाथ! अत्यंत भीता ॥ ६ ॥
ज्ञान-अवधेश-गृह गेहिनी भक्ति शुभ,तत्र अवतार भूभार-हर्ता।
भक्त-संकष्ट अवलोकि पितु-वाक्य कृत गमन किय गहन वैदेहि-भर्ता ॥ ७ ॥
कैवल्य-साधन अखिल भालु मर्कट विपुल ज्ञान-सुग्रीवकृत जलधिसेतू।
प्रबल वैराग्य दारुण प्रभंजन-तनय, विषय वन भवनमिव धूमकेतू ॥ ८ ॥
दुष्ट दनुजेश निर्वशकृत दासहित, विश्वदुख-हरण बोधैकरासी।
अनुज निज जानकी सहित हरि सर्वदा दासतुलसी ह्रदय कमलवासी ॥ ९ ॥
देव--
दीन-उद्धरण रघुवर्य करुणाभवन शमन-संताप पापौघहारी।
विमल विज्ञान-विग्रह,अनुग्रहरूप,भूपवर, विबुध,नर्मद,खरारी ॥ १ ॥
संसार-कांतार अति घोर,गंभीर,घन,गहन तरुकर्मसंकुल,मुरारी।
वासना वल्लि खर-कंटकाकुल विपुल, निबिड़ विटपाटवी कठिन भारी ॥ २ ॥
विविध चितवृति-खग निकर श्येनोलूक,काक वक गृध्र आमिष-अहारी।
अखिल खल,निपुण छल,छिद्र निरखत सदा, जीवजनपथिकमन-खेदकारी ॥ ३ ॥
क्रोध करिमत्त,मृगराज,कंदर्प,मद-दर्प वृक-भालु अति उग्रकर्मा।
महिष मत्सर क्रूर,लोभ शूकररूप,फेरु छल,दंभ मार्जारधर्मा ॥ ४ ॥
कपट मर्कट विकट,व्याघ्र पाखण्डमुख,दुखद मृगव्रात,उत्पातकर्ता।
ह्रदय अवलोकि यह शोक शरणागतं,पाहि मां पाहि भो विश्वभर्ता ॥ ५ ॥
प्रबल अहँकार दुरघट महीधर,महामोह गिरि-गुहा निबिड़ांधकारं।
चित्त वेताल,मनुजाद मन,प्रेतगनरोग,भोगौघ वृश्चिक-विकारं ॥ ६ ॥
विषय-सुख-लालसा दंश-मशकादि,खल झिल्लि रूपादि सब सर्प,स्वामी।
तत्र आक्षिप्त तव विषम माया नाथ,अंध मैं मंद,व्यालादगामी ॥ ७ ॥
घोर अवगाह भव आपगा पापजलपूर,दुष्प्रेक्ष्य,दुस्तर,अपारा।
मकर षड्वर्ग,गो नक्र चक्राकुला,कूल शुभ-अशुभ,दुख तीव्र धारा ॥ ८ ॥
सकल संघट पोच शोचवश सर्वदा दासतुलसी विषम गहनग्रस्तं।
त्राहि रघुवंशभूषण कृपा कर,कठिन काल विकराल-कलित्रास-त्रस्तं ॥ ९ ॥
देव--
नौमि नारायणं नरं करुणायनं, ध्यान-पारायणं,ज्ञान-मूलं।
अखिल संसार-उपकार-कारण, सदयह्रदय,तपनिरत,प्रणतानुकूलं ॥ १ ॥
श्याम नव तामरस-दामद्युति वपुष, छवि कोटि मदनार्क अगणित प्रकाशं।
तरुण रमणीय राजीव-लोचन ललित, वदन राकेश,कर-निकस-हासं ॥ २ ॥
सकल सौंदर्य-निधि,विपुल गुणधाम, विधि-वेद-बुध-शंभु-सेवित,अमानं।
अरुण पदकंज-मकरंद मंदाकिनी मधुप-मुनिवृंद कुर्वन्ति पानं ॥ ३ ॥
शक्र-प्रेरित घोर मदन मद-भृगंकृत, क्रोधगत,बोधरत,ब्रह्मचारी।
मार्केण्डय मुनिवर्यहित कौतुकी बिनहि कल्पांत प्रभु प्रलयकारी ॥ ४ ॥
पुण्य वन शैलसरि बद्रिकाश्रम सदासीन पद्मासनं,एक रूपं।
सिद्ध-योगीन्द्र-वृंदारकानंदप्रद,भद्रदायक दरस अति अनूपं ॥ ५ ॥
मान मनभंग,चितभंग,मद,क्रोधा लोभादि पर्वतदुर्ग,भुवन-भर्त्ता।
द्वेष-मत्सर-राग प्रबल प्रत्यूह प्रति,भूरि निर्दय,क्रूर कर्म कर्त्ता ॥ ६ ॥
विकटतर वक्र क्षुरधार प्रमदा,तीव्र दर्प कंदर्प खर खड्गधारा।
धीर-गंभीर-मन-पीर-कारक,तत्र के वराका वयं विगतसारा ॥ ७ ॥
परम दुर्घट पथं खल-असंगत साथ,नाथ! नहिं हाथ वर विरति-यष्टी।
दर्शनारत दास,त्रसित माया-पाश,त्राहि हरि,त्राहि हरि,दास कष्टी ॥ ८ ॥
दासतुलसी दीन धर्म-संबलहीन,श्रमित अति,खेद,मति मोह नाशी।
देहि अवलंब न विलंब अंभोज-कर,चक्रधर-तेजबल शर्मराशी ॥ ९ ॥
देव--
सकल सुखकंद, आनंदवन-पुण्यकृत,बिंदुमाधव द्वंद्व-विपतिहारी।
यस्यांघ्रिपाथोज अज-शंभु-सनकादि-शुक-शेष-मुनिवृंद-अलि-निलयकारी ॥ १ ॥
अमल मरकत श्याम,काम शतकोटि छवि,पीतपट तड़ित इव जलदनीलं।
अरुण शतपत्र लोचन,विलोकनि चारू,प्रणतजन-सुखद,करुणार्द्रशीलं ॥ २ ॥
काल-गजराज-मृगराज,दनुजेश-वन-दहन पावक,मोह-निशि-दिनेशं।
चारिभुज चक्र-कौमोदकी-जलज-दर, सरसिजोपरि यथा राजहंस ॥ ३ ॥
मुकुट,कुंडल,तिलक,अलक अलिव्रातइव,भृकुटि,द्विज,अधरवर,चारुनासा।
रुचिर सुकपोल,दर ग्रीव सुखसीव,हरि,इंदुकर-कुंदमिव मधुरहासा ॥ ४ ॥
उरसि वनमाल सुविशाल नवमंजरी, भ्राज श्रीवत्स-लांछन उदारं।
परम ब्रह्मन्य,अतिधन्य,गतमन्यु,अज,अमितबल,विपुल महिमा अपारं ॥ ५ ॥
हार-केयूर,कर कनक कंकन रतन-जटित मणि-मेखला कटिप्रदेशं।
युगल पद नूपुरामुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग सौन्दर्य वेशं ॥ ६ ॥
सकल सौभाग्य-संयुक्त त्रेलोक्य-श्री दक्षि दिशि रुचिर वारीश-कन्या।
बसत विबुधापगा निकट तट सदनवर, नयन निरखंति नर तेऽति धन्या ॥ ७ ॥
अखिल मंगल-भवन,निबिड़ संशय-शमन दमन-वृजिनाटवी,कष्टहर्त्ता।
विश्वधृत,विश्वहित,अजित,गोतीत,शिव,विश्वपालन,हरण,विश्वकर्त्ता ॥ ८ ॥
ज्ञान-विज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य-निधि,सिद्धि अणिमादि दे भूरिदानं।
ग्रसित-भव-व्याल अतित्रास तुलसीदास,त्राहि श्रीराम उरगारि-यानं ॥ ९ ॥
इहै परम फलु,परम बड़ाई।
नखसिख रुचिर बिंदुमाधव छबि निरखहिं नयन अघाई ॥ १ ॥
बिसद किसोर पीन सुंदर बपु,श्याम सुरुचि अधिकाई।
नीलकंज,बारिद,तमाल,मनि,इन्ह तनुते दुति पाई ॥ २ ॥
मृदुल चरन शुभ चिन्ह,पदज,नख अति अभूत उपमाई।
अरुन नील पाथोज प्रसव जनु, मनिजुत दल-समुदाई ॥ ३ ॥
जातरूप मनि-जटित-मनोहर, नूपुर जन-सुखदाई।
जनु हर-उर हरि बिबिध रूप धरि, रहे बर भवन बनाई ॥ ४ ॥
कटितट रटति चारु किंकिनि-रव,अनुपम,बरनि न जाई।
हेम जलज कल कलित मध्य जनु,मधुकर मुखर सुहाई ॥ ५ ॥
उर बिसाल भृगुचरन चारु अति,सूचत कोमलताई।
कंकन चारु बिबिध भूषन बिधि,रचि निज कर मन लाई ॥ ६ ॥
गज-मनिमाल बीच भ्राजत कहि जाति न पदक निकाई।
जनु उडुगन-मंडल बारिदपर,नवग्रह रची अथाई ॥ ७ ॥
भुजगभोग-भुजदंड कंज दर चक्र गदा बनि आई।
सोभासीव ग्रीव,चिबुकाधर,बदन अमित छबि छाई ॥ ८ ॥
कुलिस,कुंद-कुडमल,दामिनि-दुति,दसनन देखि लजाई।
नासा-नयन-कपोल,ललित श्रुति कुंडल भ्रू मोहि भाई ॥ ९ ॥
कुंचित कच सिर मुकुट,भाल पर,तिलक कहौं समुझाई।
अलप तड़ित जुग रेख इंदु महँ,रहि तजि चंचलताई ॥ १० ॥
निरमल पीत दुकुल अनूपम,उपमा हिय न समाई।
बहु मनिजुत गिरि नील सिखरपर कनक-बसन रुचिराई ॥ ११ ॥
दच्छ भाग अनुराग-सहित इंदिरा अधिक ललिताई।
हेमलता जनु तरु तमाल ढिग,नील निचोल ओढ़ाई ॥ १२ ॥
सत सारदा सेष श्रुति मिलिकै,सोभा कहि न सिराई।
तुलसिदास मतिमंद द्वंदरत कहै कौन बिधि गाई ॥ १३ ॥
राग जैतश्री
मन इतनोई या तनुको परम फलु।
सब अँग सुभग बिंदुमाधव-छबि,तजि सुभाव,अवलोकु एक पलु ॥ १ ॥
तरुन अरुन अंभोज चरन मृदु,नख-दुति ह्रदय-तिमिर-हारी।
कुलिस-केतु-जव-जलज रेख बर,अंकुस मन-गज-बसकारी ॥ २ ॥
कनक-जटित मनि नूपुर,मेखल,कटि-तट रटति मधुर बानी।
त्रिबली उदर,गँभीर नाभि सर,जहँ उपजे बिरंचि ग्यानी ॥ ३ ॥
उर बनमाल,पदिक अति सोभित,बिप्र-चरन चित कहँ करषै।
स्याम तामरस-दाम-बरन बपु पीत बसन सोभा बरषै ॥ ४ ॥
कर कंकन केयूर मनोहर,देति मोद मुद्रिक न्यारी।
गदा कंज दर चारु चक्रधर,नाग-सुंड-सम भुज चारी ॥ ५ ॥
कंबुग्रीव,छबिसीव चिबुक द्विज,अधर अरुन,उन्नत नासा।
नव राजीव नयन,ससि आनन,सेवक-सुखद बिसद हासा ॥ ६ ॥
रुचिर कपोल,श्रवन कुंडल,सिर मुकुट,सुतिलक भाल भ्राजै।
ललित भृकुटि,सुंदर चितवनि,कच निरखि मधुप-अवली लाजे ॥ ७ ॥
रूप-सील-गुन-खानि दच्छ दिसि,सिंधु-सुता रत-पद-सेवा।
जाकी कृपा-कटाच्छ चहत सिव,बिधि,मुनि,मनुज,दनुज,देवा ॥ ८ ॥
तुलसिदास भव-त्रास मिटै तब,जब मति येहि सरूप अटकै।
नाहिंत दीन मलीन हीनसुख,कोटि जनम भ्रमि भ्रमि भटकै ॥ ९ ॥
राग बसन्त
बंदौ रघुपति करुना-निधान। जाते छूटै भव-भेद-ग्यान ॥ १ ॥
रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसेस। सेवत पद-पंकज अज महेस ॥ २ ॥
निज भक्त-ह्रदय-पाथोज-भृंग। लावन्य बपुष अगनित अनंग ॥ ३ ॥
अति प्रबल मोह-तम-मारतंड। अग्यान-गहन-पावक प्रचंड ॥ ४ ॥
अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार। सुररंजन,भंजन भूमिभार ॥ ५ ॥
रागादि-सर्पगन-पन्नगारि। कंदर्प-नाग-मृगपति,मुरारि ॥ ६ ॥
भव-जलधि-पोत चरनारबिंद। जानकी-रवन आनंद-कंद ॥ ७ ॥
हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल। निष्काम कामधुक गो दयाल ॥ ८ ॥
त्रेलोक-तिलक,गुनगहन राम। कह तुलसिदास बिश्राम-धाम ॥ ९ ॥
राग भैरव
राम राम रमु,राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-नवनेह-मेहको,मन! हठि होहि पपीहा ॥ १ ॥
सब साधन-फल कूप-सरित-सर,सागर-सलिल-निरासा।
रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा ॥ २ ॥
गरजि,तरजि,पाषान बरषि पवि,प्रीति परखि जिय जानै।
अधिक अधिक अनुराग उमँग उर, पर परमिति पहिचानै ॥ ३ ॥
रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम-अनुरागी।
ल्है गये,है,जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी ॥ ४ ॥
एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं।
तुलसी हित अपनो अपनी दिसि,निरुपधि नेम निबाहैं ॥ ५ ॥