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।। विनय-पत्रिका-सार सटीक।।

(3)
जागु जागु जागु जीव जो है जग जामिनी।
देह गेह नेह जानि जैसे घन दामिनी।।
सोये सपने को सहइ संसृति सन्ताप रे।
बूड़ो मृग बारि खायो जेँवरी को साँप रे।।1।।
कहैं वेद बुध तू तो बूझ मन माहिँ रे।
दोष दुख सपने को जागे ही पै जाहिँ रे।।
‘तुलसी’ जागे तेँ जाइ तिहूँ ताप ताय रे।
राम नाम सुचि रुचि सहज सुभाय रे।।2।। 

(3)
जागु जागु जागु जीव जो है जग जामिनी।
देह गेह नेह जानि जैसे घन दामिनी।।
सोये सपने को सहइ संसृति सन्ताप रे।
बूड़ो मृग बारि खायो जेँवरी को साँप रे।।1।।
संसार-रूपी रात में (सोया हुआ) जीव ! जग, जग, जग; चेत, चेत, चेत ! देह और घर के स्नेह को ऐसा जान, जैसे बादल में बिजली। तू सोते हुए स्वप्न में जन्म-मरण का दुःख सहता है और मृग-तृष्णा के जल (भ्रम-जल) में डूबता है और रस्सी का साँप (भ्रम का साँप) तुझे खाए जाता है।।1।।
कहैं वेद बुध तू तो बूझ मन माहिँ रे।
दोष दुख सपने को जागे ही पै जाहिँ रे।।
‘तुलसी’ जागे तेँ जाइ तिहूँ ताप ताय रे।
राम नाम सुचि रुचि सहज सुभाय रे।।2।।
वेद और बुद्धिमान कहते हैं कि सपने के दोष-दुःख जागने पर ही दूर होते हैं, इसे तू भी तो मन में बूझ। तुलसीदासजी कहते हैं कि जगने पर तीनों तापों की जलन दूर होती है। रामनाम में सहज ही पवित्र रुचि और सुन्दर प्रेम कर।।2।।
भावार्थ-सांसारिक विषयों में मग्न मत रह। देह और घर बहुत शीघ्र छूटनेवाले हैं। सांसारिक विषयों में मग्न रहना, जन्म-मरण के दुःखों का कारण है। ये जन्म-मरण के दुःख स्वप्नवत् असत्य हैं। संसार और सांसारिक विषयों में सुख नहीं है। इनमें सुख मानना भ्रम है। इसी भ्रम में जीव गोता खा रहा है और दुःख भोग रहा है। स्वप्न के दोष और दुःख जगने पर ही दूर होते हैं। सुरुचि और सुन्दर प्रेम से रामनाम का भजन करने से तीनों तापों की जलन दूर हो जाएगी।
विचार-इस पद्य के भावों से प्रगट होता है कि प्रेम-सहित रामनाम को भजने से जीव चेतेगा और उसके सब दुःख दूर होंगे। रामनाम के विषय में रा0 च0 मा0 सा0 स0 की चौपाई सं0 79 के अर्थ और अर्थ के नीचे लिखित विचारों को पढ़िए। परम पुरुष सर्वेश्वर को लोग बहुत-से वर्णात्मक नामों से पुकारते हैं। उनमें से किसी एक को गुरु से पाई हुई युक्ति द्वारा जपने का एक ही फल यह होता है कि पिण्ड में सुरत वा चैतन्य वृत्ति का इतना सिमटाव होता है, जितना सिमटाव होने से मानस ध्यानाभ्यास की योग्यता भक्त में हो जाती है। सद्गुरु से जो मन्त्र (नाम) प्राप्त हो, उसी को श्रद्धा से जपना चाहिए। केवल वर्णात्मक नाम जपने से ही नाम-भजन समाप्त नहीं होगा। वर्णात्मक नाम-भजन के बाद मानस ध्यान से और इसके बाद दृष्टियोग से योग्यता प्राप्त करके ध्वन्यात्मक नाम-भजन करने पर नाम-भजन पूर्ण होगा। इस प्रकार नाम-भजन किए बिना, पद में कथित लाभ नहीं होता। स्थूल माया-जनित, सूक्ष्म माया-जनित और कारण माया-जनित; तीनों तापों की जलन तभी दूर होनी संभव है, जब भजन करते हुए जीव कथित तीनों परदों वा वर्गों वा दर्जों से बाहर हो जाए। ऊपर कहे अनुसार वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाम के दोनों रूपों का पूरा-पूरा भजन करने पर भक्त कथित तीनों परदों को अवश्य ही पार कर जाता है। क्योंकि इस प्रकार भजन करने से सुरत स्थूल से सूक्ष्म में, सूक्ष्म से कारण में उत्तरोत्तर सिमटते-सिमटते, परदों को भेदते-भेदते त्रयवर्ग-पर या चतुर्थवर्ग में पहुँच जाती है और परम प्रभु से जा मिलती है। जीव का पूरा जगना यही है।
दोहा-‘माया मुख जागे सभे, सो सूता कर जान।
दरिया जागे ब्रह्म दिसि, सो जागा परमान।।’ 

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