सद्गुरु - स्तुति (03-11)  

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(03)
नमामी अमित ज्ञान, रूपं कृपालं ।
अगम बोध दाता, सुबुधि निधि विशालं ।।1।।
क्षमाशील अति धीर, गम्भीर ज्ञानं ।
धरम कील दृढ़ थीर, सम धीर ध्यानं ।।2।।
जगत् त्रण कारी, अघारी उदारं ।
भगत प्राण रूपं, दया गुण अपारं ।।3।।
नमो सत्गुरुं, ज्ञान दाता सु स्वामी ।
नमामी नमामी नमामी नमामी ।।4।।
हरन भर्म भूलं, दलन पाप मूलं ।
करन धर्म पूलं, हरण सर्व शूलं ।।5।।
जलन भव विनाशन, हनन कर्म पाशन ।
तनन आस नाशन, गहन ज्ञान भाषण ।।6।।
युगल रत्न पुरुषार्थ, परमार्थ दाता ।
दया गुण सु माता, अमर रस पिलाता ।।7।।
नमो सत्गुरुं सर्व पूज्यं अकामी ।
नमामी नमामी, नमामी नमामी ।।8।।
सरब सिद्धि दाता, अनाथन को नाथा ।
सुगुण बुधि विधाता, कथक ज्ञान-गाथा ।।9।।
परम शांति दायक, सुपूज्यन को नायक ।
परम सत्सहायक, अधर कर गहायक ।।10।।
महाधीर योगी, विषय रस वियोगी ।
हृदय अति अरोगी, परम शांति भोगी।।11।।
नमो सद्गुरुं सार, पारस सु स्वामी ।
नमामी नमामी, नमामी नमामी ।।12।।
महाघोर कामादि, दोषं विनाशन ।
महाजोर मकरन्द, मन बल हरासन ।।13।।
महावेग जलधार, तृष्णा सुखायक ।
महा सुक्ख भण्डार, सन्तोष दायक ।।14।।
महा शांति दायक, सकल गुण को दाता ।
महा मोह त्रासन, दलन धर सुगाता ।।15।।
नमो सद्गुरुं, सत्य धर्मं सु धामी ।
नमामी नमामी, नमामी नमामी ।।16।।
जो दुष्टेन्द्रियन नाग, गण विष अपारी ।
हैं सद्गुरु सु गारुड़, सकल विष संघारी ।।17।।
महामोह घनघोर, रजनी निविड़ तम ।
हैं सद्गुरु वचन दिव्य, सूरज किरण सम ।।18।।
महाराज सद्गुरु हैं, राजन को राजा ।
हैं जिनकी कृपा से, सरैं सर्व काजा ।।19।।
भने ‘मेँहीँ’ सोई, परम गुरु नमामी ।
नमामी नमामी, नमामी नमामी ।।20।।

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(04)
सद्गुरु नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं ।
सदाचारि पूरण सदानन्द रूपं ।।1।।
तरुण मोह घन तम विदारण तमारी ।
तरण तारणंऽहं बिना तन विहारी ।।2।।
गुण त्रय अतीतं सु परमं पुनीतं ।
गुणागार संसार द्वन्द्वं अतीतं ।।3।।
रुज संसृतं वैद्य परमं दयालुं ।
रुलकर प्रभू मध्य प्रभू ही कृपालुं ।।4।।
मनन शील सम शील अति ही गंभीरं ।
मरुत मदन मेघं सुयोगी सुधीरं ।।5।।
हानिं रु लाभं जुगल मध समं थीर ।
हालन चलन शुभ्र इन्द्रिय दमन वीर ।।6।।
राग रोषं बिनं शुद्ध शान्तिं स्वरूपं ।
राकापतिं तुल्यं शीतल अनूपं ।।7।।
जरा जन्म मृत्यु परं पार धामी ।
जगत आत्म तुल्यं हृदय अति अकामी ।।8।।
कीरति सु भृंगं समं सो सु स्वामी ।
कीटन्ह स्वयं सम करन गुरु नमामी ।।9।।
जगत त्राण कर्त्ता रु हर्ता भौजालं ।
जरा जन्म हर्ता रु कर्ता सु भालं ।।10।।
यज्ञं जपं तप फलं हूँ न कामी ।
यक सद्गुरुं पद नमामी नमामी ।।11।।
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(05)
।। चौपाई ।।
सत्य ज्ञान दायक गुरु पूरा । मैं उन चरणन को हौं धूरा ।।
तन अघ मन अघ ओघ नसावन । संशय शोक सकल दुख दावन ।।
गुरु गुण अमित अमित को जाना । संछेपहिं सब करत बखाना ।।
रुज भव नाशन सतगुरु स्वामी । बार बार पद जुगल नमामी ।।
मन्द मन्दता सकल निवारण । काम क्रोध मद लोभ सँघारन ।।
हानि लाभ सुख दुख सम कारी । हर्ष विषाद गुरू दें टारी ।।
राजत सकल सिरन गुरु स्वामी । अगम बोध दाता सुख धामी ।।
जनम मरन गुरु देहिं छोड़ाई । जयति जयति जय जय सुखदाई ।।
कीरति अमल विमल बुधि जाकी । धनि धनि सतगुरु सीम दया की ।।
जग तारन कारण सद्गति की । पथ दाता सत सरल भगति की ।।
यम नीयम सब में अति पूरन । सत्गुरु महाराज की जय भन ।।
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(06)
।। चौपाई ।।
सम दम और नियम यम दस दस ।
सतगुरु कृपा सधें सब रस रस ।।
तन मन पीर गुरू संघारत ।
तम अज्ञान गुरु सब टारत ।।
गुण त्रयफन्द कटत हैं गुरु सँगु ।
गुण निर्मल लह रटत गुरू मगु ।।
रुचत कर्म सत धर्म कथा अरु ।
रुकत मोह मद संग करत गुरु ।।
मरत आस जग हो सुख दुख सम ।
मदद गुरू की हो अवगुण कम ।।
हाजत पूरै रहै न चाहा ।
हानि न गुरु सों होवत लाहा ।।
राहत बखसनहार अपारा ।
राग द्वेष तें करें नियारा ।।
जम दुख नासैं सारैं कारज ।
जय जय जय प्रभु सत्य अचारज ।।
कीनर नर सुर असुर गुरू की ।
कीरति भनत कहत जय गुरु की ।।
जनम नसै अरु होय अमर अज ।
जय जय सद्गुरु जय सद्गुरु भज ।।
यत्न सहित करु गुरु कहते सोय ।
यम शम दम अरु नियम पूर्ण होय ।।
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(07)
मंगलाचरण
दोहा-- मंगल मूरति सतगुरू, मिलवैं सर्वाधाार ।
मंगलमय मंगल करण, विनवौं बारम्बार ।।
ज्ञान उदधि अरु ज्ञान घन, सतगुरु शंकर रूप ।
नमो नमो बहु बारहीं, सकल सुपूज्यन भूप ।।
सकल भूल नाशक प्रभू, सतगुरु परम कृपाल ।
नमो कंज पद युग पकड़ि, सुनु प्रभु नजर निहाल ।।
दया दृष्टि करि नाशिये, मेरो भूल अरु चूक ।
खरो तीक्ष्ण बुधि मोरि ना, पाणि जोड़ि कहुँ कूक ।।
नमो गुरू सतगुरु नमो, नमो नमो गुरु देव ।
नमो विघ्न हरता गुरू, निर्मल जाको भेव ।।
ब्रह्म रूप सतगुरु नमो, प्रभु सर्वेश्वर रूप ।
राम दिवाकर रूप गुरू, नाशक भ्रम तम कूप ।।
नमो सु साहब सतगुरू, विघ्न विनाशक द्याल ।
सुबुधि विगासक ज्ञानप्रद, नाशक भ्रम तम जाल ।।
नमो नमो सतगुरु नमो, जा सम कोउ न आन ।
परम पुरुषहू तें अधिक, गावें सन्त सुजान ।।
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(08)
।। छप्पय ।।
जय जय परम प्रचण्ड, तेज तम मोह विनाशन ।
जय जय तारण तरण, करन जन शुद्ध बुद्ध सन ।।
जय जय बोध महान, आन कोउ सरवर नाहीं ।
सुर नर लोकन माहिं, परम कीरति सब ठाहीं ।।
सतगुरु परम उदार हैं, सकल जयति जय जय करें ।
तम अज्ञान महान् अरु, भूल चूक भ्रम मम हरें ।।1।।
जय जय ज्ञान अखण्ड, सूर्य भव तिमिर विनाशन ।
जय जय जय सुख रूप, सकल भव त्रास हरासन ।।
जय जय संसृति रोग सोग, को वैद्य श्रेष्ठतर ।
जय जय परम कृपाल, सकल अज्ञान चूक हर ।।
जय जय सतगुरु परम गुरु, अमित अमित परणाम मैं ।
नित्य करूँ, सुमिरत रहूँ, प्रेम सहित गुरू नाम मैं ।।2।।
जयति भक्ति भण्डार, ध्यान अरु ज्ञान निकेतन ।
योग बतावनिहार, सरल जय जय अति चेतन ।।
करनहार बुधि तीव्र, जयति जय जय गुरु पूरे ।
जय जय गुरु महाराज, उक्ति दाता अति रूरे ।।
जयति जयति श्री सतगुरू, जोड़ि पाणि युग पद धरौं ।
चुक से रक्षा कीजिये, बार बार विनती करौं ।।3।।
भक्ति योग अरु ध्यान को, भेद बतावनिहारे ।
श्रवण मनन निदिध्यास, सकल दरसावनिहारे ।।
सतसंगति अरु सूक्ष्म वारता, देहिं बताई ।
अकपट परमोदार न कछु, गुरु धरें छिपाई ।।
जय जय जय सतगुरु सुखद, ज्ञान सम्पूरण अंग सम ।
कृपा दृष्टि करि हेरिये, हरिय युक्ति बेढंग मम ।।4।।
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(09)
।। चौपाई ।।
सतगुरु सत परमारथ रूपा । अतिहि दयामय दया सरूपा ।।1।।
अधम उधारन अमृत खानी। पर हित रत जाकी सतबानी ।।2।।
सतगुरु ज्ञान सिंधु अति निर्मल । सेवत मन इन्द्रिन हों निर्बल ।।3।।
धरम धुरन्धर सतगुरु स्वामी। सत्य धरम मत संत को हामी ।।4।।
सुरत शब्द मारग सुखदाई । सतगुरु यहि पथ देहिं बताई ।।5।।
बन्ध मोक्ष सब देहिं बताई । आत्म अनात्महु देहिं जनाई ।।6।।
विषय भोग तें लेहिं छोड़ाई । भव निधि बूड़त लेहिं बचाई ।।7।।
काउ न कृपावन्त सतगुरु सम । पद सेवा महँ मन पल पल रम ।।8।।
दोहा- धन्य धन्य सतगुरु सुखद । महिमा कही न जाय ।
जो कछु कहुँ तुम्हरी कृपा । मोतें कछु न बसाय ।।
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(10)
।। छन्द ।।
जय जयति सद्गुरु जयति जय जय, जयति श्री कोमल तनुं ।
मुनि वेष धारण करण मुनिवर, जयति कलिमल दल हनं ।।
जय जयति जीवन्मुक्त मुनिवर, शीलवन्त कृपालु जो ।
सो कृपा करिकै करिय आपन, दास प्रभु जी मोहि को ।।
जय जयति सद्गुरु जयति जय जय, सत्य सत् वक्ता प्रभू ।
हरि कुमति भर्महिं सुमति सत्य को, पाहि1 मोहि दीजै अभू2 ।।
यह रोग संसृति व्यथा शूलन्ह, मोह के जाये सभै ।
अति विषम शर बहु होय बेध्यो, मोहि अब कीजै अभै ।।
प्रभु ! कोटि कोटिन्ह बार इन्ह दुख, मोहि आनि सतायेऊ ।
यहु बार जहु एक वचन आशा, आय तहु में समायेऊ ।।
बिनु तुव कृपा को बचि सकै, तिहु काल तीनहु लोक में ।
प्रभु शरण तुव आरत जना तू, सहाय जन के शोक में ।।
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(11)
सतगुरु सुख के सागर शुभ गुण आगर ज्ञान उजागर हैं ।।टेक।।
अन्तर पथ गामी अति निःकामी अन्तर्यामी हैं ।
त्रय गुण पर योगी हरि रस भोगी अति निःसोगी हैं ।।1।।
थिर बुद्धि सुजाना यती सयाना धरि ध्वनि ध्याना हैं ।
सो ध्वनि सारा ‘मेँहीँ’ न्यारा सतगुरु धारे हैं ।।2।।    
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