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(11) अपरा (जड़) और परा (चेतन); दोनों प्रकृतियों के पार में अगुण और सगुण पर, अनादि-अनंतस्वरूपी, अपरम्पार शक्तियुक्त, देशकालातीत, शब्दातीत, नाम-रूपातीत, अद्वितीय; मन, बुद्धि और इन्द्रियों के परे जिस परम सत्ता पर यह सारा प्रकृतिमण्डल एक महान् यंत्र की नाईं परिचालित होता रहता है; जो न व्यक्ति है और न व्यक्त है, जो मायिक विस्तृतत्व-विहीन है, जो अपने से बाहर कुछ भी अवकाश नहीं रखता है, जो परम सनातन, परम पुरातन एवं सर्वप्रथम से विद्यमान है, संतमत में उसे ही परम अध्यात्म-पद वा परम अध्यात्म-स्वरूपी परम प्रभु सर्वेश्वर (कुल्ल मालिक) मानते हैं।
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(12) परा प्रकृति वा चेतन प्रकृति वा कैवल्य पद त्रय गुण-रहित और सच्चिदानन्दमय है और अपरा प्रकृति वा जड़ात्मक प्रकृति त्रय गुणमयी है।
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(13) त्रयगुण के सम्मिश्रण-रूप (सम-मिश्रण-रूप) को जड़ात्मक मूल प्रकृति कहते हैं ।
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(14) परम प्रभु सर्वेश्वर व्याप्य अर्थात् समस्त प्रकृति- मण्डल में व्यापक हैं; परन्तु व्याप्य को भरकर ही वे मर्यादित नहीं हो जाते हैं। वे व्याप्य के बाहर और कितने अधिक हैं, इसकी कल्पना भी नहीं हो सकती; क्योंकि वे अनन्त हैं।
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(15) परम प्रभु सर्वेश्वर अंशी हैं और (सच्चिदानन्द ब्रह्म, ॐ ब्रह्म और पूर्ण ब्रह्म, अगुण एवं सगुण आदि) ब्रह्म, ईश्वर तथा जीव, उसके अटूट अंश हैं; जैसे मठाकाश, घटाकाश और पटाकाश महदाकाश के अटूट अंश हैं।
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(16) प्रकृति के भेद-रूप सारे व्याप्यों के पार में, सारे नाम-रूपों के पार में और वर्णात्मक, ध्वन्यात्मक, आहत, अनाहत आदि सब शब्दों के परे आच्छादन-विहीन शान्ति का पद है, वही परम प्रभु सर्वेश्वर का जड़ातीत, चैतन्यातीत निज अचिन्त्य स्वरूप है, और उसका यही स्वरूप सारे आच्छादनों में भी अंश-रूपों में व्यापक है, जहाँ आच्छादनों के भेदों के अनुसार परम प्रभु के अंशों के ब्रह्म और जीवादि नाम हैं। अंश और अंशी, तत्त्व-रूप में निश्चय ही एक हैं; परन्तु अणुता और विभुता का भेद उनमें अवश्य है, जो आच्छादनों के नहीं रहने पर नहीं रहेगा।
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(17) परम प्रभु के निज स्वरूप को ही आत्मा वा आत्मतत्त्व कहते हैं; और इस तत्त्व के अतिरिक्त सभी अनात्मतत्त्व हैं।
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(18) आत्मा सब शरीरों में शरीरी वा सब देहों में देही वा सब क्षेत्रें में क्षेत्रज्ञ है ।
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(19) शरीर वा देह वा क्षेत्र, इसके सब विकार और इसके बाहर और अन्तर के सब स्थूल-सूक्ष्म अंग-प्रत्यंग अनात्मा हैं।
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(20) परा प्रकृति, अपरा प्रकृति और इनसे बने हुए सब नाम-रूप-पिण्ड, ब्रह्माण्ड, स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण और कैवल्य (जड़-रहित चेतन वा निर्मल चेतन); सब-के-सब अनात्मा हैं।
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