स्वामी श्रीदयानन्द सरस्वतीजी की वाणी
(आर्य-समाज के प्रसिद्ध प्रवर्त्तक) 

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परमेश्वर की नित्य प्रति प्रार्थना और उपासना, सबको अनन्यचित्त होकर अवश्य करनी चाहिए; क्योंकि जो मनुष्य नित्य प्रेम-भक्ति से परमेश्वर की उपासना करते हैं, उन्हीं उपासकों को परम करुणामय अन्तर्यामी परमेश्वर मोक्षरूपी सुख प्रदानकर सदा के लिए आनन्द का भागी बनाते हैं ।

परमेश्वर की उपासना अर्थात् योग-वृत्ति ही सब क्लेशों का विनाश करनेवाली और सब शान्ति आदि गुणों को प्रदान करनेवाली है ।

वही एक परमेश्वर हम सब मनुष्यों का उपास्य देव है। जो मनुष्य उसको छोड़कर दूसरे की उपासना करता है, वह पशु के समान बनकर सब दिन दुःख भोगता रहता है--------।


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सत्संग-योग, तृतीय भाग, समाप्त
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