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पृ0 137-बहुत-से लोग अनेक ऐहिक कामनाओं के वशीभूत होकर उन इच्छाओं के पूर्ण करनेवाले भिन्न-भिन्न देवताओं की उपासना में दत्तचित्त होते हैं । ऐसे पुरुषों को ईश्वर के देवाधिदेवत्व का ज्ञान नहीं होता । देवत्व और ईश्वर में वास्तव में महान अन्तर है ।
(1) वैदिक सिद्धान्त के अनुसार देवता मनुष्येतर सुख-सम्पन्न एक दूसरे ही लोक में रहनेवाले पुरुष हैं । मनुष्य-सुख से सौ गुणा अधिक सुख पितरों को होता है । पितरों के सौ गुणे सुख के समान गन्धर्व लोक का सुख है । गन्धर्वों के सुख से सौ गुणा अधिक सुख कर्म-देवों को तथा उनसे भी अधिक जन्म देवों को प्राप्त होता है । इस सिद्धांत को जानकर देवताओं के स्वरूप के सम्बंध में बहुत कुछ उत्सुकता शान्त हो जाती है । देवताओं के सुख से सौ गुणा अधिक सुख प्रजापति-लोक में तथा उससे भी अधिक ब्रह्मलोक में मिलता है । देवता मनुष्यों से बहुत उन्नत, परन्तु ब्रह्मलोक-निवासियों से वे बहुत अवनत दशा में रहनेवाले प्राणिविशेष हैं ।
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