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सन्त-वन्दना-हमारा पवित्र भारतवर्ष भी शून्य प्रतीत होने लगेगा, यदि व्यास-वाल्मीकि, शुकदेव-नारद, याज्ञवल्क्य-जनक, वशिष्ठ-दधीचि, बुद्ध-महावीर, शंकर-रामानुज, मध्व-चैतन्य, नानक-कबीर, सूर-तुलसी, नम्मलवार-माणिक्क वासगर, ज्ञानदेव-तुकाराम और ज्ञान संबंध-राम-कृष्ण प्रभृति सन्तों को उसके इतिहास में से निकाल दिया जाए । सन्त ही भारतवर्ष के स्मृतिकार हैं, संत ही उसके कवि हैं, सन्त ही उसके संदेशवाहक हैं और सन्त ही उसकी संतान को प्रेम, ज्ञान और शान्ति का पाठ पढ़ानेवाले हैं । उन सन्तों को हमारा बार-बार प्रणाम है ।
सन्त ही मानव-जाति के प्राण हैं, सन्त ही संसाररूपी पादप के अमृत-फल हैं, सन्त ही सभ्य समाज को प्रकाश देनेवाले प्रदीप हैं। वे ही पाप-ताप से पीड़ित मानव-जाति को ऊपर उठानेवाली शक्ति हैं । अतः सभी जातियों और सभी देशों के सन्तों को हम नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं ।
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