सन्त चर्चा
[पं0 श्री कृष्णदत्तजी भारद्वाज, एम0 ए0, आचार्य, शास्त्री, वेदान्त-विद्यार्णव ]

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(पृ0 84)

संस्कृत भाषा में ‘सत्’ शब्द के बहुवचन में ‘सन्तः’ पद प्रयुक्त होता है । उच्चारण में सौकर्य्य के निमित्त व्यावहारिक हिन्दी भाषा में विसर्ग का लोप कर देते हैं और ‘संत’ कहा करते हैं । ‘संत’ शब्द इस दृष्टि से स्वयं बहुवचन में है, तथापि हिन्दी में इसको एकवचन मानते हैं और बहुवचन में ‘संतों’ कहते हैं । भक्त, श्रोत्रिय, महात्मा, ऋषि, मुनि, त्यागी, संन्यासी, तपस्वी, योगी, ध्यानी, ज्ञानी-ये शब्द यद्यपि जीवों की साधनावस्था में भिन्नार्थक हैं, तथापि उनकी सिद्धावस्था में एकार्थक ही होते हैं । ये भक्तादिक सभी परिपूर्ण सुनिष्पन्न अवस्था में पहुँचकर ‘सन्त’ कहलाते हैं; क्योंकि वे ‘असत्’ से ‘सत्’ हो जाते हैं ।
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