वेदान्त का अर्थ और उसकी लोकमान्यता
(श्री पी0 के0 आचार्य, एम0 ए0, पी-एच0 डी0, डी0 लिट्0, आई0 ई0 एस0) 

*********************

(पृ0 187)

यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्म है, ब्रह्म से ही यह उत्पन्न होता है, ब्रह्म में ही लीन होता है, ब्रह्म में ही श्वास-प्रश्वास लेता है, और कुछ भी यथार्थ में नहीं है, केवल एक निर्गुण निराकार तत्त्व है, जिसे ब्रह्म, आत्मा, पुरुष इत्यादि नामों से पुकारते हैं । पर यह सत्ता चैतन्यरहित कही गई है, एक प्रकार की सुषुप्ति । यह सत्ता वेदान्त दर्शन के अनुसार तीन प्रकार की है । पारमार्थिक सत्ता निर्गुण निराकार अचित् सत्ता है । व्यावहारिक सत्ता सगुण ईश्वर, जीव, लोक, परलोक, नरक तथा बाकी सब पदार्थों की सत्ता है । और प्रातिभासिक केवल स्वप्नवत् भ्रम है । व्यावहारिक सत्ता ही गोचर जगत का उपादान ( कार्य के साथ मिला हुआ कारण ) कारण है । मुण्डकोपनिषद् में यह स्पष्ट ही कहा गया है कि जिस प्रकार मकड़ी अपने जाल को बनाती और उसे निगल जाती है, जैसे पृथ्वी में औषधियाँ उत्पन्न होती हैं और जैसे सजीव पुरुष के केश एवं लोम उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार उस अक्षर से यह विश्व प्रकट होता है । इस व्यावहारिक सत्ता में परम अव्यक्त अचित् ब्रह्म चैतन्य और ईश्वर भाव धारण करता है अर्थात् तब किसी पदार्थ में रहना, सोचना और आनन्दित होना (सत्-चित्-आनन्द) आरंभ करता है, और अपने अन्दर से सगुण ईश्वर या स्त्रष्टा को उत्पन्न करता है और अपने ही लिए (मौज या लीला के लिए) नाना जीवों और जड़ पदार्थों का सृजन करता है ।
*********************

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.

कॉपीराइट अखिल भरतीय संतमत-सत्संग प्रकाशन के पास सुरक्षित