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(पृ0 95)
संसार का जो सबसे प्राचीन ग्रंथ है ऋग्वेद, उसमें यह मंत्र आया है कि ‘‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’’ अर्थात् ‘‘वह एक ही है और सद्विप्र उसे अनेक नामों से अभिहित करते हैं ।’’ यहूदी उसे जेहोवा कहते हैं, ईसाई गॉड या स्वर्गस्थ कहते हैं, मुसलमान अल्लाह कहकर पूजते हैं, बौद्ध बुद्ध, पारसी अहुरमज्द और हिन्दू ब्रह्म या ईश्वर कहते हैं । वेदान्त का विलक्षण वैलक्षण (विलक्षणता) यह है कि उसका प्रतिपाद्य ईश्वर सगुण भी है, निर्गुण भी है और निर्गुण-सगुण के परे भी है । वेदान्त के सगुण ईश्वर को सभी साम्प्रदायिक धर्मों के माननेवाले लोग भिन्न-भिन्न नामों से पूजते हैं । वेदान्त का ईश्वर एक है, पर उसके नाम अनेक हैं । वह ईसाइयों का स्वर्गस्थ पिता है, मुसलमानों का अल्लाह है, जरथुस्त्रनुयायियों (पारसियों) का अहुरमज्द है, चीनियों का तितीन है, यहूदियों का जेहोवा है और बौद्धों का बुद्ध है । यही हिन्दुओं का विष्णु, शिव, अम्बिका है । वह न स्त्री है, न पुरुष, इसलिए वह जगत का पिता, माता दोनों है । भक्त उसे पुरुष-रूप में या स्त्री-रूप में अथवा दोनों से रहित रूप में भज सकते हैं ।
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