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(पृ0 413)
प्राणायाम करने से उन्माद भी होता है । एक साधक ने एक बार मुझसे कहा कि मैंने इतना अधिक प्राणायाम किया कि मेरे रोम-रोम से प्रणव की ध्वनि होने लगी; किन्तु कोई आन्तरिक अनुभव या लाभ नहीं हुआ । सच तो यह है कि योग के प्रथम और द्वितीय अंग यम-नियम की प्राप्ति और आसनसिद्धि के बिना प्राणायाम विशेष लाभदायक नहीं होता । शास्त्रें में प्राणायाम की बहुत प्रशंसा की गई है; किन्तु यह भी कहा गया है कि जैसा कि श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है, कि वायु जीतने पर भी मन न जीतने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती । मन प्राण-वायु से उच्च है; क्योंकि प्राण-वायु मन का अनुसरण करता है, परन्तु मन प्राण-वायु का अनुसरण नहीं करता । काम-क्रोध से उत्तेजित होने पर श्वास की गति तीव्र हो जाती है और मन शान्त होने पर प्राण भी शान्त हो जाता है । किन्तु प्राण का निरोध करने पर भी मन की चंचलता पूरी दूर नहीं होती । इस कारण राजयेाग में प्राण-निग्रह न करके सीधे मन का निरोध किया जाता है, जिससे प्राण का निरोध हठ के बिना स्वयं हो जाता है । हठयोग का भी सिद्धांत है कि राजयोग ही हठयोग का लक्ष्य है; किन्तु भेद यह है कि हठयोग के ग्रन्थ का कथन है कि हठयोग-बिना राजयोग की प्राप्ति नहीं होगी और हठ भी राजयोग के बिना व्यर्थ है । परन्तु राजयोग का सिद्धांत है कि हठयोग राजयोग की प्राप्ति के लिए आवश्यक नहीं, वरं किंचित् बाधक है ।
वेदान्त अंक 1993 संवत् वि0
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