नादानुसंधान
(स्वामी श्रीएकरसानन्दजी सरस्वती महाराज)

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 (पृ0 271)

भगवान शंकराचार्यजी ने मन के लय का सर्वोत्तम साधन नादानुसंधान अपने ‘योगतारावलि’ ग्रन्थ में नीचे के श्लोकों में बताया है-

सदा शिवोक्तानि सपादलक्षलयावधानानि वसन्ति लोके ।
नादानुसंधानसमाधिमेकं मन्यामहे मान्यतमं लयानाम् ।
नादानुसंधान नमोऽस्तु तुभ्यं त्वां मन्महे तत्त्वपदं लयानाम् ।
भवत्प्रसादात् पवनेन साकं विलीयते विष्णु पदे मनो मे ।।

सर्वचिन्तां परित्यज्य सावधानेन चेतसा ।
नाद एवानुसन्धेयो योगसाम्राज्यमिच्छता ।।

‘‘योग-शास्त्र के प्रवर्त्तक भगवान शिवजी ने मन के लय होने के सवा लक्ष साधन बतलाए हैं, उन सबमें नादानुसंधान सुलभ और श्रेष्ठ है । हे नादानुसन्धान! आपको नमस्कार है, आप परमपद में स्थित कराते हैं, आपके ही प्रसाद से मेरा प्राण-वायु और मन, ये दोनों विष्णु के परम पद में लय हो जाएँगे । योग-साम्राज्य में स्थित होने की इच्छा हो, तो सब चिन्ताओं को छोड़कर सावधान हो एकाग्र मन से अनहद नादों को सुनो ।’’
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