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योग (पृष्ठ 120)
प्राण-निरोध-जैसे पंखे का हिलना बंद होते ही हवा का चलना बन्द हो जाता है, उसी प्रकार प्राणों की गति रुक जाने पर मन भी शान्त हो जाता है। (6/1।69।41) प्राण-स्पन्दन रुकने से मन शान्त हो जाता है और मन के शान्त हो जाने पर संसार का लय हो जाता है। (5।78।15।16)
प्राण-निरोध के उपाय-प्राण क्या है ? प्राणों की प्रगति किस प्रकार होती है ? और प्राणायाम कैसे किया जाता है-इन विषयों की चर्चा ‘योगवाशिष्ठ’ में खूब विस्तार से की गई है (6/1।24।38, 6/1।25।3-60)। यहाँ पर स्थलाभाव से केवल उन उपायों की गणना मात्र कराते हैं, जिनसे कि योगवाशिष्ठानुसार प्राण का स्पन्दन रुक जाता है-वैराग्य------, संवित् को शून्य आकाश में, जहाँ पर कोई कलना (चिह्न) नहीं है, ले जाकर शान्त करना (5।78।26), नासाग्र से द्वादशांगुल पर बाहर शुद्ध आकाश में संवित् को लीन करना (5।78।27), भ्रुवों के मध्य में दृष्टि लीन करके शुद्ध चेतन में स्थित होना (5।78।29), ----- ।
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