परम पूज्यपाद श्रीउड़िया स्वामीजी महाराज के विचार

*********************

।। कल्याण योगांक, संवत् 1992, पृ0 27 ।।

सिद्धासन और शाम्भवी मुद्रा के द्वारा पूर्ण स्थिति प्राप्त की जा सकती है। यह मार्ग सर्वथा सरल और निरापद है ।

शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करने के लिए इस श्लोक द्वारा श्री महाराज ने उपदेश दिया-

तिर्यग्दृष्टिमधोदृष्टिं विहाय च महामतिः ।
स्थिरस्थायी च निष्कम्पो योगमेव समभ्यसेत् ।।

अर्थात् ‘मतिमान साधक को इधर-उधर और ऊपर-नीचे देखना छोड़कर निश्चल भाव से स्थिरतापूर्वक स्थित होकर योग का अभ्यास करना चाहिए ।’
(प्रेषक-मुनिलाल)
*********************

*********************


*********************

==================================================

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.

कॉपीराइट अखिल भरतीय संतमत-सत्संग प्रकाशन के पास सुरक्षित