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।। कल्याण योगांक, संवत् 1992, पृ0 27 ।।
सिद्धासन और शाम्भवी मुद्रा के द्वारा पूर्ण स्थिति प्राप्त की जा सकती है। यह मार्ग सर्वथा सरल और निरापद है ।
शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करने के लिए इस श्लोक द्वारा श्री महाराज ने उपदेश दिया-
तिर्यग्दृष्टिमधोदृष्टिं विहाय च महामतिः ।
स्थिरस्थायी च निष्कम्पो योगमेव समभ्यसेत् ।।
अर्थात् ‘मतिमान साधक को इधर-उधर और ऊपर-नीचे देखना छोड़कर निश्चल भाव से स्थिरतापूर्वक स्थित होकर योग का अभ्यास करना चाहिए ।’
(प्रेषक-मुनिलाल)
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