परमहंस ध्यानानन्द साहब

(उपदेशक, सन्तमत) के शब्द

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एक अनीह अनाम प्रभु हैं, अडोल सिन्धु अपार हैं ।
सर्व जग का एक प्रभु हैं, सर्व ईश्वर नाम हैं ।।
सर्व शक्तीमान प्रभु हैं, अगुण अखण्ड अनन्त हैं ।
निर्मल अति चैतन्य प्रभु हैं, परमानंद अनाश हैं ।।
अलख अगम अद्वैत प्रभु हैं, नित्य सच्चिदानंद हैं ।
अनुपम अज अनादि प्रभु हैं, सर्वव्यापक सत्य हैं ।।
दीनबंधु कृपालु प्रभु हैं, अनाम अगोचर धाम हैं ।
ज्ञान विज्ञान निधान प्रभु हैं, सन्त के विश्राम हैं ।।
सतगुरु बाबा देवी साहब, परम भेदी सन्त हैं ।
‘ध्यानानन्द’ को वही प्रभु का, दिये निशाना ठीक हैं ।।

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मेरी आँखों में तारा नजर आवै ।।टेक।।
आँखि मुँदि के गगन निहारौं, सुन्दर दामिनि दमकि आवै ।।1।।
गगन बाट में बिजली चमकै, देखि देखि मन को भावै ।।2।।
शीतल चन्दा खील रहा है, मोहन रूप से तरसावै ।।3।।
देवी साहब की ध्यानानन्द पर, कृपा अधिक सब लखवावै ।।4।।

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तुझको झीना राह से, हरगिज न डरना चाहिये ।
आत्म-अनुभव के लिये, कष्टों को सहना चाहिये ।।1।।
आत्म-अनात्म वस्तु का, विवेक जो तू चाहता ।
जाय कर गुरु के चरण में, अर्ज करना चाहिये ।।2।।
सुष्मन के झीने राह को, गुरु कर दया देंगे बता ।
बिन्दु के उस राह में, दृढ़ दृष्टि करना चाहिये ।।3।।
कभी बादल कभी जोती, कभी तारे नजर आवें ।
दृष्टि को इनसे हटाकर, विन्दु धरना चाहिये।।4।।
दल सहस में ब्रह्म की, शोभा अनुपम देखकर ।
उस रूप में आशिक न होना, पेश चलना चाहिये ।।5।।
गुरु-कृपा से चढ़ चलो, त्रिकुटी महल में भाइयो ।
आवागमन के चक्र से, सूरत उठाना चाहिये ।।6।।
सुन महल में मानसरवर, धुन अनाहत बाजता ।
उस धुन्न द्वारा सुरत को, सतलोक जाना चाहिये ।।7।।
अलख अगम अनाम प्रभु का, गुण बखाने सन्त जन ।
वह देश अपना जानकर, तुझको न आना चाहिये ।।8।।
सतगुरु सिरताज सबके, घट में रहते सर्वदा ।
सुरत को उस रूप में, हरदम लगाना चाहिये ।।9।।
‘ध्यानानन्द’ है अर्ज करता, चरण में गुरु के यही ।
राह झीना से कभी न, दिल को हटाना चाहिये ।।10।।

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