बाबू धीरजलालजी गुप्त साहब

(गुरुजी साहब) के कुछ पद्य  

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पुरैनियाँ जिले में सन्तमत के प्रथम मुख्य प्रचारक ग्राम-जोतरामराय, जिला पुरैनियाँ-निवासी स्वर्गीय बाबू धीरजलालजी गुप्त साहब (गुरुजी साहब) के कुछ पद्य (1)
सतगुरु सरण गहो मन मूरख आवागमन मिटि जाय ।। टेक।।
संत दया कर द्वार पकड़ गुरु मूरत होय सहाय ।
नैन नगर बिच कीच के मारे धुँधुकार दिखलाय ।।1।।
गगन मैदान में फगवा खेलो आनन्द उर अधिकाय ।
साधु सन्त की प्रेम से सेवा कर सत्संग मन लाय ।।2।।
प्रेमी जन सब सखी सुन्दरि मिलि गुरु गुण मंगल गाय ।
गुरु पद रज कर कुमकुमा शब्द का इतर लगाय ।।3।।
गगन मगन होय फाग मचाओ पथ पिया का खुल जाय ।
काया शोध प्रबोध करो नहिं काल महा दुखदाय ।।4।।
जब तक जीओ नाम रस पीओ भक्ति करी सदभाय ।
बाबा देवी साहब भेद कहैं जो धीरज ध्यान लगाय ।।5।।

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पद्य (2)
राह गई है बड़ि झीनी हे साधो नैन नगर से ।।टेक।।
नैन नगर में घोर अँधियारी सतगुरु ज्ञान सफीनी ।।1।।
सहस भाग एक बाल बराबर धार धरहु लवलीनी ।।2।।
वा मग सुरत सरकि जब जावै जोति झकाझक कीनी ।।3।।
सत पथ गत यह कहत सन्त मत चढ़ि चल चाल प्रवीनी ।।4।।
बाबा देवी साहब भेद बतावें धीरज ध्यान महीनी ।।5।।

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पद्य (3)
जानेगा जो यह भेद उसी का सब सुधरेगा ।।टेक।।
लोक लाभ परलोक निभेगा परमारथ पहिचान ।
सुगम सन्तमत समझ पड़ेगा अन्त में वो उधरेगा ।।1।।
तन्दुरुस्ती इन्द्रियस्थम्भन और अध्यात्म ज्ञान ।
गुरु संग व ध्यान जान के आप उपाय करेगा ।।2।।
प्रज्ञा प्रधान विषय तब बूझी शंका नहिं लवलेश ।
दृष्टि शब्द भक्ति का भेवा जानि जरूर तरेगा ।।3।।
यह द्वादस व्याख्यान का कोई बिरले पाया अन्त ।
देवी साहब गुरु पाई धीरज सहजै काम सरैगा ।।4।।

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