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(ता0-1-9-1910 ई0 को एक पत्र लिखकर बाबू धीरजलालजी साहब, निवासी ग्राम-जोतरामराय, जिला-पुरैनियाँ को बाबा साहब ने फरमाया था।)
सन्तमत का बहुत छोटा सिद्धान्त है। यानी यह है-गुरु, ध्यान और सत्संग । ये तीन असूल (सिद्धांत) हैं । इन पर हर एक आदमी समझकर चल सकता है । लेकिन एखलाक सन्तमत की पहली सीढ़ी है, और यह बड़ा पुराना असूल है । जिस शख्स में एखलाक की कमी है, उसको रूहानी तरक्की हासिल नहीं हो सकती है । खुदगर्जी एखलाक का दुश्मन है, इससे होशियार रहना चाहिए ।
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