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मदिया मैं पियबौं बनाइ, मैं कलबारिन होयबौं ।।1।।
मन महुआ गुरुज्ञान जवर कर, तन को भठी बनइबौं ।
ब्रह्म अग्नि को प्रगट कियो है, मदुए नाम चुएबौं ।।2।।
यह तन बोतल नीके साफ करि, निर्मल ज्ञान भरैबौं ।
प्रेम प्याला ढारि ढारि पियबौं, तब हरि के दास कहैबौं ।।3।।
ये मद पियलें सुर नर माते, सन्त भये मतवाले ।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मा ले, पियते प्रेम पियाले ।।4।।
पियत पियत मन मगन भयो है, प्रगटे ज्ञान लखैबौं ।
‘किनाराम’ गुरु के सत महिमा, फिर ना यह तन पैबौं ।।5।।
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