परम भक्तिन मीराबाई की वाणी

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।। राग मलार, ताल कहरवा ।।

लागी मोहि राम खुमारी हो ।।
रमझम बरसै मेहड़ा, भीजै तन सारी हो ।
चहूँ दिस दमकै दामणी, गरजै घन भारी हो ।।
सतगुरु भेद बताया, खोली भरम किवारी हो ।
सब घट दीसै आत्मा, सबही सूँ न्यारी हो ।।
दीपक जोउँ ज्ञान का, चढ़ूँ अगम अटारी हो ।
मीरा दासी राम की, इमरत बलिहारी हो ।।

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।। होरी सिन्दुरा, ताल धामार ।।
फागण के दिन चार, होली खेल मना रे ।।
बिन करताल पखावज बाजै, अणहद की झनकार रे ।
बिनु सुर राग छतीसूँ गावै, रोम-रोम रणकार रे ।।
सील संतोख की केसर घोली, प्रेम प्रीत पिचकार रे ।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।।
घट के सब पट खोल दिये हैं, लोक लाज सब डार रे ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल बलिहार रे ।।

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।। राग जैजैवन्ती, ताल चर्चरी ।।
गली तो चारों बंद हुई, मैं हरि से मिलूँ कैसे जाय ।।
ऊँची नीची राह रपटीली, पाँव नहीं ठहराय ।
सोच-सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाय ।।
ऊँचा नीचा महल पिया का, म्हाँसू चढ्यो न जाय ।
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सूरत झकोला खाय ।।
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड-पैंड बटमार ।
हे विधना कैसी रच दीनी, दूर बसायो म्हारो गाँव ।।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, सतगुरु दई बताय ।
जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा, घर में लीनी लाय ।।

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।। राग जोगिया, ताल दीपचंदी ।।
हे री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरो दरद न जाणै कोय ।।
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय ।
जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय ।।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस विध होय ।
गगन मंडल पर सेज पिया की, किस विध मिलना होय ।।
दरद की मारी वन-वन डोलूँ, वैद मिल्या नहिं कोय ।
मीराँ की प्रभु पीर मिटेगी, जब वैद साँवलिया होय ।।

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।। कल्याण पत्र-‘योगांक’ से उद्धृत ।।

पृ0 499-प्रेमयोगिनी मीरा का जन्म वि0 सं0 1555 के लगभग हुआ। मेवाड़ के राणा साँगा के ज्येष्ठ कुँवर भोजराज के साथ विवाह हुआ, जो विवाह के बाद थोड़े काल में मर गया ।

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।। शब्द ।।
ऊँची अँटरिया, लाल किवड़िया, निरगुण सेज बिछी ।
पचरंगी झालर सुभ सोहै, फूलन फूल कली ।।
बाजूबन्द कड़ूला सोहै, माँग सिंदूर भरी ।
सुमिरण थाल हाथ में लीन्हा, सोभा अधिक भली ।।
सेज सुखमणाँ ‘मीराँ’ सोवै, सुभ है आज घड़ी ।

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