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मन तोर एत भावना केने। एक बार काली बले बसबे ध्याने।।
जाँक जमके कर्ले पूजा । अहंकार हय मने मने;
तूमि लूकिये ताँरे कर्बे पूजा । जानबे ना रे जगज्जने ।।
धातू पाषाण माटीर मूर्त्ति । काज की रे तोर से गठने;
तूमी मनोमय प्रतिमा करी । दे बसाऊ हृदि पद्मासने ।।
आलो चाल आर पाका कला, काज की रे तोर आयोजने;
तूमी भक्ति सुधा खाईये ताँरे, तृप्ति कर आपन मने ।।
झाड़ लण्ठन बातीर आलो, काज की रे तोर से रोस्नाइये;
तूमी मनोमय माणिक्य जेले, देउ ना जलूक निशिदिने ।।
मेष छागल महिषादि, काज की रे तोर बलिदाने;
तूमी जयकाली जयकाली बले, बलि दाउ षड़ रिपू गणे ।।
प्रसाद बले ढाके ढोले, काज की रे तोर से बाजने;
तूमी जय काली बलि, देउ कर तालि, मन राख सेई श्रीचरणे ।।
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।। भारती अनुवाद ।।
क्यों तूझे इतना सोच मन में, तू जय काली बोलकर बैठना ध्यान में ।।
करने से धूमधाम से पूजन, जो अहंकार आवे तेरे चित्त में ।
तू लुकाकर माँ की करोगे पूजा, न जानेगा कोई सारे जग में ।।
धातु पत्थर और मिट्टी की मूर्त्ति, क्या काम तेरा वह गठन में ।
तू रचि सुन्दर मनोमय प्रतिमा, स्थापित कर ले हृदय आसन में ।।
अरवा चावल और पक्का केला, क्या काम तेरा यह आयोजन में ।
तू भक्ति सुधारस पिया कर माँ को, तृप्त हो ले आपन मन में ।।
झाड़ लालटेन और मोम की बत्ती, क्या काम तेरा उस रौशन में ।
तू बार दे मनोनय उज्ज्वल हीरा, जो उज्ज्वलता रहे रातदिन में ।।
छाग भेड़ा भैंस इत्यादि, क्या काम तेरा यह बलिदान में ।
तू जयकाली जयकाली बोलकर, हो न्योयित छौ रिपु नाश में ।।
राम प्रसाद कहे ढाक ढोल, क्या काम तेरा यह बाजन में ।
तू जयकाली बोलकर दो करतारी, और लगन करो मन में माँ के ध्यान में ।।
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