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प्रसिद्ध प्रकाण्ड विद्वान
श्री देवतीर्थ स्वामीजी (श्री काष्ठ जिह्वा स्वामी) के वचन
(1)
अनगढ़ मत है पूरों का यहाँ न काम धतूरों का ।।
कचड़ा और मटमैला रस्ता झूठे कायर कूरों का ।
निर्भय साफ अमीरी रस्ता सच्चे साहब शूरों का ।।
मुश्किल अगम पंथ का चलना जैसे खाँडे़ छूरों का ।
अजगैबी यह मता बनाया भेदिया चकनाचूरों का ।।
जप तप करके स्वर्ग कमाया सो तो काम मजूरों का ।
करना सही न लेना कुछ भी बाना झाखर झूरों का ।।
बड़ो ‘देव’ गादी जब पाई तब क्या ढोना धूरों का ।
मस्त हुआ जब अनहद सुनके तब क्या सुनना तूरों का ।।
।। कल्याण, सन्त-अंक, 1994 सं0, पृ0 25 से उद्धृत ।।
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(2)
कोई सफा न देखा दिल का,
साँचा बना झिलमिल का ।।टेक।।
कोइ बिल्ली कोइ बगुला देखा,
पहिरे फकीरी खिलका1 ।
बाहर मुख से ज्ञान छाँटते,
भीतर कोरा छिलका ।।1।।
भजन करन में गजब आलसी,
जैसे थका मँजिल का ।
औरन के पीसन में सुरमा,
जैसें बट्टा सिल का ।।2।।
पढ़े लिखे कुछ ऐसेहि वैसे,
बड़ा घमण्ड अकिल का ।।
जहरी वचन यों मुख से निकले,
साँप निकलता बिल का ।।3।।
भजन बिना सब जप तप झूठा,
झूठ तवक्का फजल का ।।
क्या कहिये गुरु ‘देव’ न पाया,
महरम2 आँख के तिल का ।।4।।
(1) गुदड़ी । (2) भेद
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