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अनहद अपने साथ है, अजपा ताको नाम ।
अमल करो अपनाय के, अमर नाम घर ठाम ।।
आतम में आतम लखो, आठ पहर लौलाय ।
आनन्द रस तब चाखि के, आवागमन नसाय ।।
चंचल चित्त को थीर कर, चौथी में चित लाव ।
चन्द्र सुधा रस चाखि के, चिन्तामणि पद पाव ।।
शब्द ब्रह्म साध्यो नहीं, शान्ति सील नहिं कीन ।
श्रद्धा अरु संतोष बिन, शब्द शक्ति सब हीन ।।
-आकारादि दोहावली से
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राम विमल रस औषधी, रहत सन्त के पास ।
लक्ष्मीपति अनुपान से, करत व्याधि को नास ।।
राम आदि अरु अंत है, मध्य राम परिपूर ।
लछन सन्त को लखि परत, दुर्जन को अति दूर ।।
-राम रत्नावली से
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