संत गुलाल साहिब 

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उलटि देखो घट में जोति पसार ।
बिनु बाजे तहँ धुनि सब होवै, विगसि कमल कचनार ।
पैठि पताल सूर ससि बाँधौ, साधौ त्रिकुटी द्वार ।
गंग जमुन के वारपार बिच, भरतु है अमिय करार ।
इंगला पिंगला सुखमन सोधो, बहत शिखर-मुख धार ।
सुरति निरति ले बैठ गगन पर, सहज उठै झनकार ।
सोहं डोरि मूल गहि बाँधो, मानिक बरत लिलार ।
कह गुलाल सतगुरु बर पायो, भरो है मुक्ति भंडार ।

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