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।। शब्द 1 ।।
सोहं हंसा लागलि डोरि । सुरति निरति चढ़ु मनवाँ मोर ।।1।।
झिलमिल-झिलमिल त्रिकुटी ध्यान। जगमग-जगमग गगना तान ।।2।।
गहगह अनहद निसान । प्राण पुरुष तहँ रहत जान ।।3।।
लहरि लहरि उठि पछिंव घाट । फहरि फहरि चले उतर बाट ।।4।।
सेत बरन तहँ आपै आप । कह बुल्ला सोई माइ बाप ।।5।।
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।। शब्द 2 ।।
सुखमनि सुरति डोरि बनाव ।
मिटिहैं सब कर्म जिव के, बहुरि इतहि न आव ।
पैठि अंदर देखु कंदर, जहाँ जिय को वास ।
उलटि प्रान अपान मेटो, सेत सबद निवास ।
गंग जमुना मिलि सरसुति, उमँगि शिखर बहाव ।
लवकंति बिजली दामिनी, अनहद्द गरज सुनाव ।
जीति आया आपुहीं, गुरु यारि सबद सुनाव ।
तब दास बुल्ला भक्ति ठानो, सदा रामहिं गाव ।
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अरिल (1)
श्याम घटा घन घेरि चहूँ दिसि आइया ।
अनहद बाजे घोर जो गगन सुनाइया ।।
दामिनि दमकि जो चमकि त्रिवेनी न्हाइया ।
बुल्ला हृदय विचारि तहाँ मन लाइया ।।
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।। 2 ।।
सामहिं उगवै सूर भोर ससि जागई ।
गंग जमुन के संगम अनहद बाजई ।।
अजपा जापहिं जाप सोहं डोरि लागई ।
बुल्ला ता में पैठि जोति में जागई ।।
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