संत दूलनदासजी 

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।। शब्द 1 ।।

कोइ बिरला यहि विधि नाम कहै ।। टेक ।।
मंत्र अमोल नाम दुइ अच्छर, बिनु रसना रट लागि रहै ।।1।।
होठ न डोलै जीभ न बोलै, सुरति धरनी दिढ़ाइ गहै ।।2।।
दिन और राति रहै सुधि लागी, यहि माला यहि सुमिरन है ।।3।।
जन दूलन सतगुरन बतायो, ताकी नाव पार निबहै ।।4।।

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।। शब्द 2 ।।
बाजत नाम नौबति आज ।
ह्वै सावधान सुचित्त सीतल, सुनहु गैब आवाज ।
सुख कंद अनहद नाद सुनि, दुख दुरित क्रम भ्रम भाज ।
सतलोक बरसो पानि, धुनि निर्बान यहि मन बाज ।
तोहं चेत चित दै प्रेम मगन, अनंद आरति साज ।
घर राम आये जानि, भइनि सनाथ बहुरा राज ।
जगजीवन सतगुरु कृपा पूरन, सुफल भे जन काज ।
धनि भाग दूलन दास तेरे, भक्ति तिलक विराज ।

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।। शब्द 3 ।।
चलो चढ़ो मन यार महल अपने ।। टेक।।
चौक चाँदनी तारे झलकैं, बरनत बनत न जात गने ।।1।।
हीरा रतन जड़ाव जड़े जहँ, मोतिन कोटि कितान बने ।।2।।
सुखमन पलँगा सहज बिछौना, सुख सोवो को करै मने ।।3।।
दूलनदास के साईं जगजीवन, को आवै यह जग सुपने ।।4।।

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