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।। भाग 1, शब्द 1 ।।
मन रे प्रभु सों चित्त लाव ।
छाड़ि दे जंजाल को, गुरु मारग माँ आव ।
गुरु के वचन हृदय धरु मूरख, ज्ञान ध्यान मन लाव ।
अष्ट कमल दल भीतर राजा, पाँच तत्त को राव ।
त्रिकुटी मध्य दृष्टि करु नैनन, ताड़ी तहाँ लगाव ।
मनि समान दीपक करु मनसा, जोति में जोति मिलाव ।
मन औ पवन होत जब इकतर, नाहीं बीच बराव ।
जगजीवन के प्रभु सिर नायक, आनंद मंगल गाव ।
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।। शब्द 2 ।।
साधो सुमिरन भजन करो ।
मन महँ दुविधा आनहु नाहीं, सहजहिं ध्यान धरो ।
धीरज धरि संसय नहीं राखहु, नाम भरोसे रहो ।
जगजीवन सतगुरु को भेंटो, भवजल पार तरो ।
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।। शब्द 3 ।।
महिमा प्रभु मो सो बरनि न जाय ।।टेक ।।
अनहद बानी मूरति बोलै, सुनहु संत चित लाय ।
अनहद ताल पखावज बाजै, तहाँ सुरति चलि जाय ।।1।।
अबरन रूप कहाँ लगि बरनौं, सब छवि रहे समाय ।
जगजीवन साईं कहँ लहि बरनौं, रहै चरन चित लाय ।
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।। भाग 2, शब्द 1 ।।
मन गुरु चरण धरि रहु ध्यान ।।टेक।।
अमर अहै अडोल अचलं मानि ले परमान ।।1।।
लाइ संकर रहै तारी कहत वेद पुरान ।।2।।
तत्त्व सारं इहै आहै अवर नाहीं जान ।।3।।
निराकारं निराधारं निर्गुनं निर्वान ।।4।।
जगजीवन तू निरखि सूरति चरन रहु लपटान ।।5।।
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।। शब्द 1 ।।
जाके लगी अनहद तान हो, निरवान निरगुन नाम की ।।1।।
जिकर करके सिखर हेरे, फिकर रारंकार की ।।2।।
जाके लगी अजपा झलकै, जोत देख निसान की ।।3।।
मद्ध मुरली मधुर बाजै, बाएँ किंगरी सारंगी ।।4।।
दाहिने जो घंटा संख बाजै, गैब धुन झनकार की ।।5।।
अकह को यह कथा न्यारी, सीखा नहीं आन है ।।6।।
जगजीवन प्रान सोध के, मिल रहे सतनाम है ।।7।।
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