ॐ मात्रा बाबा श्रीचन्दजी की 

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कहो जी बाले किसने मूँड़ा, किसने मुँड़ाया । किसका भेजा नगरी आया ।।
सतगुर ने मूँड़ा, लेख मुँड़ाया । गुरु का भेजा नगरी आया ।।
चेतो नगरी तारो गाम । अलख पुरुष का सुमिरो नाम ।।
गुरु अविनाशी खेल रचाया । अगम निगम का पंथ बताया ।।
ज्ञान की गोदड़ी, छेमा की टोपी। जत का आड़बंद, सील लंगोटी ।।
अकाल खिंथा निरास झोली । जुगत का टोप गुरमुखी बोली ।।
धरम का चोला सत की सेली। मरजादा मेखली ले गले में मेली ।।
ध्यान का बटूआँ निरत का सूईदान। ब्रह्म अंचला लै पहिरे सुजान ।।
बहुरंग मोरछड़ निरलेप बिसटी। निरभो जंग डोरा ना को द्विसटी ।।
जाप जंगोटा सिफट उड़ानी । सिंगी सबद अनाहद गुरु बानी ।।
सरम किया मुंद्रा सिव विभूता। हरि भगति म्रिगानी ले पहिरे गुर पूता ।।
संतोष सूत विवेक धागे । अनेक टली तहाँ पर लागे ।।
सुरति की सूई ले सतिगुरु सीवे । जो राखे सो निरभौ थीवे ।।
सयाह सुपैद जरद सुरखाई । जो लै पहिरे सो गुर भाई ।।
त्रैगुण चकमक अगन मत पाई । दुख सुख धूनी देह जलाई ।।
संयम क्रिपाली सोभाधारी । चरण कवल महि सुरत हमारी ।।
भाउ भोजन अंम्रित करि पाइआ । भला बुरा मन नाहीं बसाइआ ।।
पात्र विचार फरुआ बहु गुणा । कर मंडल तूंबा किसती घणा ।।
अंम्रित पियाला उदक मनि दइआ । जो पीवै सो सीतलु भइआ ।।
इड़ा में आवे पिंगला में धिआवै । सुखमना के घरि सहिज समावै ।।
निरास मठ निरन्तर ध्यान । निरभै नगरी गुर दीपक गिआन ।।
असथिर रिधि अमर पद डंडा । धीरज फहुड़ी तप करि खंडा ।।
बस करि आसा सम द्रिसट चौगान। हरष सोग मन महिं नहिं आन ।।
सहिज विरागी करे विराग । माया मोहणी सगल तिआग ।।
नाम की पाषर पौन का घोरा । निहकरम जीन तत का जोड़ा ।।
निरगुण ढाल गुर सबद कमान । अकल संयोग प्रीती के बान ।।
अकल की बरछी गुण की कटारी । मन के मार करो असवारी ।।
विषम गढ़ तोड़ निरभौ घर आइआ । नउवत संख नगारा वाइआ ।।
गुर अविनासी सूछम वेद । निरवाण विद्या अपार भेद ।।
अखण्ड जनेऊ निरमल धोती । सोहं जाप सच माल परोती ।।
सिषिया गुर मंत्र गाइत्री हर नाम । निसचल आसण कर विसराम ।।
तिलक सम्पूरण तरपणि जस । पूजा प्रेम भोग महा रस ।।
निरवैर संध्या द्रसन छापा । वाद विवाद मिटावे आपा ।।
प्रीत पितंबर मन मृगछाला । चीत चितंबर रुणझुण माला ।।
बुध बाघंवर कुला पुसतीन । षउस षड़ावा ऐ मति लीन ।।
तोड़ा चूड़ा अवर जंजीर । ले पहिरे नानक साहि फकीर ।।
जटा जूट मुकत सिर होइ । मुकता फिरे बंधन नहिं कोइ ।।
नानक पूता श्रीचंद बोले । जुगत पछाणे तत विरोले ।।
ऐसी मात्र लै पहिरे कोइ । आवा गमन मिटावै सोइ ।।

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