प्रथम गुरु, गुरु नानक साहब की वाणी 

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(नानकशाही) गुरु ग्रन्थ साहब से संगृहीत

।। मारु, महला 1 दखणी ।। (शब्द 1)

काइआ1 नगरु नगर गड़2 अंदरि । साचा बासा पुरि गगनंदर3 ।
असथिरु4 थान5 सदा निरमाइलु6, आपे आपु7 उपाइदा8 ।
अंदरि कोट9 छजे10 हट11 नाले12 । आपे लेवै वसतु समाले ।
बजर कपाट जड़े जड़ि13 जाणै, गुरसबदी खोलाइदा ।
भीतर कोट गुफा घर जाई । नउ घर थापे14 हुकमि रजाई15 ।
दसवै पुरषु अलेखु अपारी । आपे अलखु लखाइदा ।
पउण पाणी अगनी इकि वासा । आपे कीतो16 खेलु तमासा ।
वलदी17 जलि18 निवरै19 किरपाते, आपे जलनिधि20 पाइदा21 ।
धरती उपाइ22 धरी धरमसाला । उतपति परलउ आप निराला ।
पवणै खेलु किआ सभ थाई23, कला24 खींचि ढाहाइदा25 ।
भार अठारह26 मालणि तेरी । चउर ढुलै27 पवणै लै फेरी ।
चंद सूरज दुइ दीपक राखे, ससि28 घरि सूर29 समाइदा ।
पंखी30 पंचउडर31 नहिं धावहि। सफलिउ32 विरख अंम्रित फल पावहि ।
गुरुमुखि सहजि रवै33 गुण गावै, हरि रसु चोग34 चुगाइदा35 ।
झिलमिल झिलकै चंदु न तारा। सूरज किरणि न बिजुलि गैणारा36 ।
अकथी कथहु चिहनु37 नहिं कोई, पूरि रहिआ मन भाइदा38 ।
पसरी किरणि जोति उजिआला । करि करि देखै आपि दइआला ।
अनहद रुण39 झुणकारु सदा धुनि, निरभउ कै घरि वाइदा40 ।
अनहद बाजै भ्रम भउ भाजै, सगल बिआपि रहिआ प्रभु छाजै41 ।
सभ तेरी तू गुरमुखि जाता42, दरि43 सोहै44 गुण गाइदा ।
आदि निरंजनु निरमल सोई । अवरु न जाणा दूजा कोई ।
ऐकंकार45 वसै मनि भावै, हउमैं गरबु46 गँवाइदा ।
अम्रितु पीआ सतिगुरि दीआ । अवरु न जाणा दूआ तीआ ।
ऐको ऐकु सु47 अपरपरंपरु48, परखि खजानै पाइदा49 ।
गिआनु धिआनु सच गहिर गंभीरा। कोइ न जाणै तेरा चीरा50 ।
जेती है तेती तुधु51 जाचै करमि52 मिलै सो पाइदा53 ।
करम धरमु सबु हाथि तुमारै । बेपरवाह अखुट54 भंडारै ।
तू दइआलु किरपालु सदा, प्रभु आपै मेलि मिलाइदा ।
आपे देखि दिखावै आपे । आपे थापि55 उथापे56 आपे ।
आपे जोड़ि विछोड़े करता, आपे मारि जीवाइदा ।
जेती है तेती तुधु अंदरि । देखहि आपि बैसि बिजमंदरि57 ।
नानकु साचु कहै बेनंती, हरि दरसनि सुखु पाइदा ।

(1) शरीर । (2) किला, गढ़ । (3) आकाश के भीतर । (4) स्थिर, थिर। (5) स्थान । (6) निर्माया । (7) स्वयं या खुद अपने से । (8) रचा, स्वयं बनाया, पैदा किया । (9) किला । (10) छत । (11) हाट । (12) साथ। (13) मजबूत जड़े हुए । (14) स्थापन किए । (15) मरजी । (16) किया । (17) जलती । (18) धिधोर । (19) बचे । (20) समुद्र । (21) डालना, देना । (22) रचकर । (23) जगह । (24) अंश । (25) गिराया है, ढाहा है । (26) सब प्रकार के वृक्ष और लता । (27) झुलाता है । (28) चन्द्रमा । (29) सूर्य । (30) पक्षी । (31) उड़कर, पंखी पंच = पाँच पक्षी । (यहाँ पर तात्पर्य है पाँच प्राणों से ) । (32 ) फलदार पेड़। (33) रमे । (34) दाना, आहार । (35) चुगाया, खिलाया । (36) जुगनू, तारा । (37) चिह्न, निशान । (38) पसन्द आया, भाया । (39) मीठा-मीठा शब्द । (40) बजाता है । (41) शोभा पा रहा है । (42) जानता है । (43) दरवाजा, द्वार । (44) शोभा पावे । (45) ओंकार । (46) घमंड । (47) सुन्दर, वह । (48) सबसे परे । (49) दाखिल किया । (50) हद, पसार, किनारा, अन्त । (51) तुमको । (52) दया का दान, बख्शिश। (53) प्राप्त किया । (54) नहीं घटनेवाला । (55) कायम करके । (56) मिटाता है । (57) ऊँचा महल ।

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तुखारी, महला 1 (शब्द 2)

तारा चड़िआ लंमा27 किउ नदरि28 निहालिआ राम ।
सेवक पूर करंमा29 सतिगुर सबदि दिखालिआ राम ।
गुर सबदि दिखालिआ सचु समालिआ अहिनिसि30 देखि विचारिआ ।
धावतु31 पंच32 रहे घरु जाणिआ कामु क्रोध विषु मारिआ ।
अंतरि जोति भई गुरु साखी33 चीने राम करंमा34 ।
नानक हउमै1 मारि पतीणे2 तारा चड़िया लंमा ।
गुरमुखि जागि रहे चूकी अभिमानी राम ।
अनुदिनु भोरु भइआ साचि समानी राम ।
साचि समानी गुरमुखि मनि भानी3 गुरमुखि साबुत4 जागे ।
साचु नामु अम्रित गुरि दीआ हरि चरनी लिव5 लागे ।
प्रगटी जोति जोति महि6जाता7मनमुखि भरमि भुलाणी।
नानक भोर भइआ मनु मानिआ जागत रैणि8विहाणी9।
अउगुण वीसरिआ गुणी10 घरु कीआ राम ।
एको रवि11 रहिआ अवरू न बीआ12 राम ।
रवि रहिआ सोइ अवरु न कोई मन ही ते मनु मानिआ।
जिनि जल थल त्रिभवण घटु घटु थापिआ ।
सो प्रभु गुरमुखि जानिआ ।
करण13 कारण14 समरथ अपारा त्रिविध मेटि समाई15 ।
नानक अवगण गुणह समाणे ऐसी गुरमति पाई ।
आवण जाण रहे चूका भोला16 राम ।
हउमै मारि मिलै साचा चोला राम ।
हउमै गुरि खोई परगटु होई चूके17 सोग संतापै ।
जोति अन्दरि जोत समाणी आपु पछाता18 आपै ।
पेईअडै़19 घरि सबदि पतीणी20 साहुरड़ै21पिर22 भाणी23 ।
नानक सतिगुरि मेलि मिलाई चूकी24काणि25 लोकाणी26।

(1) अहंकार । (2) विश्वास किया । (3) भाया, अच्छा लगा । (4) सोने से वा सूतने से । (5) लौ, लव । (6) में, अन्दर । (7) जाना, ज्ञान प्राप्त किया। (8) रात । (9) भोर हुआ, सबेरा हुआ । (10) गुण । (11) व्यापक हो रहा है । (12) दूसरा । (13) करनेवाला, समर्थ । (14) सबब, बीज-रूप । (15) तीनों गुणों को मेटकर समा गये । (16) निर्बुद्धि, बेवकूफ । (17) दूर हो गये । (18) पहचान । (19) नैहर । (20) विश्वास किया । (21) सासुर। (22) पिया, प्रभु । (23) भायी, पसन्द आई । (24) दूर हुई । (25) लाज। (26) लोक का । (27) फाँदकर । (28) नजर किया; किउ = किया । (29) कर्म । (30) दिन-रात । (31) चलायमान । (32) पाँच । (33) गवाह । (34) दया ।


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।। सूही, महला 1 घरु 7 (शब्द 3) ।।

जोगु न खिंथा13 जोग न डंडै जोगु न भसम चड़ाईअै ।
जोगु न मुंदी14 मूंड़ि मूंड़ाइअै जोग न सिंञी वाईअै ।
अंजन1 माहि निरंजनि रहीअै, जोग जुगति इव पाईअै ।
गली2 जोगु न होई ।
एक द्रिसटि3 करि समसरि4 जाणै जोगी कहीअै सोई ।
जोग न बाहरि मड़ी मसाणी जोग न ताड़ी5 लाईअै ।
जोगु न देसि दिसंतरि भविअै6 जोग न तीरथि नाईअै7 ।
अंजन माहि निरंजनि रहीअै जोग जुगति इव पाईअै ।
सतिगुरु भेटै ता8 सहसा9 तूटै धावतु वरजि रहाईअै ।
निझरु10 झरै सहज11 धुनि लागै घर ही परचा पाईअै ।
अंजन माहि निरंजनि रहीअै जोग जुगति इव पाईअै ।
नानक जीवतिया मरि रहीअै अैसा जोगु कमाईअै ।
बाजे बाझहु12 सिंञी बाजे तउ निरभउ पदु पाईअै ।
अंजन माहि निरंजनि रहीअै जोग जुगति इव पाईअै ।


(1) माया । (2) गप करना । (3) दृष्टि । (4) अच्छी तरह एक करना-सम करना । (5) नकली समाधि या ध्यान । (6) भ्रमण करके । (7) स्नान करके । (8) तो । (9) संशय । (10) ज्योति । निझर झरै = अन्तर में प्रकाश-रूप चेतन की वर्षा होवै । (11) ब्रह्मनाद । (12) बजे । (13) गुदड़ी । (14) मुद्रा, गोरखपंथी साधुओं के पहनने का कर्ण-भूषण ।

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।। सिरी रागु, महला 1 ।। (शब्द 4)
सुनि मन भूले बावरे, गुरु की चरणी लागु ।
हरि जपि नाम धियाइ तू, जम डरपै दुख भागु ।
दुखु घणो दोहागणी21 किउ थिरु रहै सोहागु ।
भाई रे अवर नाहीं मैं थाउ14 ।
मैं15 धनु नाम निधानु16 है गुरि दीआ बलि जाउ ।
गुरमति पति17 साबासि तिसु तिसकै संग मिलाउ ।
तिस बिनु घड़ी न जीवऊ बिनु नावै18 मरि जाउ ।
मैं अंधुले नामु न बीसरै टेक टिकी घरि जाउ ।
गुरू जिना का अंधुला चेले नाहीं ठाउ ।
बिनु सतिगुरु नाउ19 न पाइअै बिनु नावै किया सुआउ20 ।
आइ गइआ पछुतावना जिउ सुञे1 घरि काउ2 ।
बिनु नावै दुख देहुरी3 जिउ कलर4 की भीति5 ।
तब लगु महलु न पाइअै जब लगु साचु न चीति ।
सबदि रपै6 घरु पाइअै निरवाणी पदु नीति7 ।
हउ8 गुर पूछउ आपणे गुर पूछि कार9 कमाउ ।
सबदि सलाहीऽ मनि वसै हउमै दुख जलि जाउ ।
सहजे होइ मिलावणा साचे साचि मिलाउ ।
सबदि रते10 से निरमले तजि काम क्रोध अहंकारु ।
नामु सलाहनि11 सद12 सदा हरि राखहि उर धारि ।
सो किउ मनहु विसारीअै सभ जीआ का आधारू ।
सबदि मरे सो मरि है फिरि मरै न दूजी बार ।
सबदै ही ते पाइअै हरि नामे लगै पिआरु ।
बिनु सबदै जगु भूला फिरै मरि जनमै बारोबार ।
सभ सालाहै आप कउ बडहुबडेरी13 होइ ।
गुरू बिनु आपु न चीनिअै कहे सुणे किया होइ ।
नानक सबदि पछाणीअै हउमैं करै न कोइ ।

(1) सूम, कंजूस । (2) काग । (3) देह में । (4) ऊसर मिट्टी, ऊस, रेह। (5) दीवाल । (6) विलास करै, सबदि रपै-शब्द में विलास करने से । (7) नित्य, असली, सत्य । (8) सम्बोधन (हे लोग !) । (9) कर्म ।ऽसाधन । (10) लवलीन होवे । (11) अभ्यास । (12) सदा, हमेशा । (13) बड़े-से-बड़े । (14) स्थान । (15) मुझे । (16) भरपूर । (17) प्रतिष्ठा । (18) नाम । (19) नाम । (20) सुभाग । (21) व्यभिचारिणी, कुलटा स्त्री । (यहाँ इसका अर्थ है अभक्त ) ।


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।। आसा, महला 1 पंच पदे ।। (शब्द 5)

मोहु कुटंबु मोहु सभकार । मोहु तुम तजहु सगल14 बेकार ।।1।।
मोह अरु भरमु तजहु तुम बीर। साचु नामु रिदे15 रवै16 सरीर ।।2।।
सचु नामु जा17 नव18 निधि 19 पाई । रोवै पूत न कलपै माई ।।3।।
एतु20 मोहि डूबा संसारु । गुरुमुखि कोई उतरै पारि ।।4।।
एतु मोहि फिरि जूनी पाहि । मोहे लागा जमपुरी जाहि ।।5।।
गुरु दीखिआ जपु तपु कमाहि । ना मोहु तूटै ना थाइ21 पाहि ।।6।।
नदरि करे ता22 एहु मोहु जाइ । नानक हरि सिउ रहै समाइ ।।7।।

(14) सकल, बिल्कुल, समस्त । (15) हृदय । (16) व्यापक है । (17) जिससे । (18) (नौ) 9 । (19) धन । (20) इस । (21) जगह । (22) तो ।


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।। आसा, महला 1 ।। (शब्द 6)
अनहदो अनहदु बाजै रुण झुणकारे राम ।
मेरा मनो मेरा मनु राता लाल पिआरे राम ।
अनदिनु राता मनु वैरागी सुन्न मंडलि घरु पाइआ ।
आदि पुरुष अपरंपरु पिआरा सतिगुरि अलखु लखाइआ ।
आसणि बैसणि थिरु नाराइणु तितु मनु राता बीचारे ।
नानक नाम रते वैरागी अनहद रुण झुणकारे ।
तितु अगम तितु अगम पुरे कहु कितु विधि जाइअै राम ।
सचु संजमो सारि1 गुन गुरु सबद कमाइअै राम ।
सचु सबदु कमाइअै निजु घरि जाइअै पाइअै गुणी निधाना ।
तितु साखा मूलु पतु नहीं डाली सिरि सभना परधाना ।
जपु तपु करि करि संजम थाकी हठि निग्रहि नहीं पाइअै ।
नानक सहजि मिले जगजीवन सतिगुर बूझ बुझाइअै ।
(1) सार ।

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।। सौरठि, महला 1 ।। (शब्द 7)
अलख2 अपार3 अगम4 अगोचरि5 ना तिसु काल6 न करमा ।
जाति अजाति अजोनी7 संभउ ना तिसु भाउ8 न भरमा9 ।
साचे सचिआर10 विटहु11 कुरबाणु12 ।
ना तिसु रूप बरनु नहिं रेखिआ साचे सबदि नीसाणु13 ।
ना तिसु मात पिता सुत बंधपु ना तिसु काम न नारी ।
अकुल14 निरंजन अपर-परंपरु15 सगली जोति तुमारी ।
घट घट अंतरी ब्रह्मु लुकाइआ घटि घटि जोति सबाई16 ।
बजर कपाट मुकते गुरमती निरभै ताड़ी17 लाई ।
जंत उपाइ कालु सिरिजंता बसगति18 जुगति सबाई ।
सतिगुरु सेवि पदारथु पावहि छूटहि सबदु कमाई ।

(2) देखने के बाहर । (3) असीम । (4) मन और बुद्धि की गति के परे । (5) इन्द्रियों के परे । (6) कालातीत । (7) अजन्मा । (8) संकल्प, ख्याल । (9) भूल । (10) सत्य । (11) उसके ऊपर । (12) न्योछावर। (13) चिह्न । (14) जिसका कुल नहीं । (15) सबसे परे । (16) समाई । (17) समाधि । (18) वश में आया ।

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सूचै1 भाडै2 साचु समावै बिरले सूचाचारीऽ ।
तंतै3 कउ परम तंतु4 मिलाइआ नानक सरणि तुमारी ।


(1) पवित्र । (2) बरतन (अन्तःकरण) । ऽपवित्र आचरणवाला । (3) जीवात्मा (सुरत) । (4) सारशब्द ।

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।। रामकली दखणी, महला 1 ।। (शब्द 8)

जतु5 सतु6 संजमु7 साचु द्रिड़ाइआ साच सबदि रसि लीणा ।
मेरा गुरु दइआल सदा रंग लीणा ।
अहिनिसि रहै एक लिव लागी साचे देखि पतीणा8 ।
रहै गगन पुरि द्रिसटि समैसरि9 अनहद सबदि रंगीणा ।
समु बंधि कुपीन10 भरि पुरि लीणा जिहवाँ रंगि रसीणा ।
मिलै गुर साचे जिन रचु राचे11 किरतु वीचारि पतीणा ।
एक महि सरब सरब महि एका एह सतिगुर देखि दिखाई ।
जिनि कीए खंड मंडल ब्रह्मण्डा सो प्रभु लखनु न जाई ।
दीपक ते दीपकु परगासिआ त्रिभवण जोति दिखाई ।
साचै तखति सच महली बैठे निरभउ ताड़ी लाई ।
मोहि गइआ वैरागी जोगी घटि घटि किंगुरी वाई ।
नानक सरणि प्रभू की छूटै सतिगुर सचु सखाई ।


(5) यतीपन । (6) सचाई। (7) परहेजगारी । (8) विश्वास किया । (9) एक ही तरह, थिर। (10) कौपीन, लँगोटी । (11) बना दिया ।
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।। रामकली, महला 1 ।। (शब्द 9)

अउहठि20 हसत21 मड़ी घरु छाइआ धरणि गगन कल22 धारी ।
गुरमुखि केती सबदि उधारी संतहु ।
ममता मारि हऊमै सोखै23 त्रिभवणि जोति तुमारी ।
मनसा मारि मनै महि राखै सतिगुर सबदि विचारी ।
सिंञी24 सुरति अनाहदि बाजै घटि घटि जोति तुमारी ।
परपंच25 वेणु26 तही मनु राखिआ ब्रह्म अगनि परजारी27 ।
पंच ततु मिलि अहिनिसि दीपकु निरमल जोति अपारी ।
रवि ससि लउके इह तनु किंगुरी बाजै सबदु निरारी28 ।
सिव नगरी1 महि आसणु अउधू2 अलखु अगंमु अपारी ।
काइआ नगरी एहु मनु राजा पंच वसहि वीचारी ।
सबदि रबै3 आसणि घरि राजा अदलु4 करे गुणकारी5 ।
कालु विकराल6 कहे केहि बपुरे7 जीवत मूआ मनु मारी ।
ब्रह्मा बिसन महेस इक मूरति आपे करता कारी ।
काइआ सोधि8 तरै भवसागरु आतम ततु वीचारी ।
गुर सेवा ते सदा सुखु पाइआ अंतरि सबदु रविआ9 गुणकारी ।
आपे मेलि लए10 गुण दाता हउमै त्रिसना मारी ।
त्रैगुण11 मेटै चउथै12 वरतै एहा13 भगति निरारी ।
गुरमुखि जोग सबदि14 आतमु चीनै हिरदै एक मुरारी ।
मनुआँ असथिरु15 सबदे राता16 एहा करणी सारी ।
वेदु वादु17 न पाखंड अउधू गुरमुखि सबदि वीचारी ।
गुरमुखि जोग कमावै अउधू जतु सतु सबदि वीचारी ।
सबदि मरे मन मारे अउधू जोग जुगति वीचारी ।
माइआ मोह भवजलु है अवधू सबदि तरै कुल तारी ।
सबदि सूर18 जुग चारे अवधू वाणी भगति वीचारी ।
एह मनु माइआ मोहिआ अउधू निकसै सबदि वीचारी ।
आपे बखसे19 मेलि मिलाए नानक सरणि तुमारी ।

(1) कल्याण की नगरी । (2) साधु, जीव । (3) रमै । (4) हुकूमत। (5) गुणवान । (6) भयंकर । (7) तुच्छ । (8) शोधकर, मलिनता दूर कर । (9) रमकर । (10) मिला लिए । (11) तीन गुण। (12) चौथे पद, सतलोक । (13) यह । (14) शब्दयोग । (15) स्थिर, थिर । (16) अत्यन्त लवलीन होना । (17) बहस । (18) सूर्य। (19) देवे, दान करे ।
(20) छोड़कर । (21) हाथी, अहंकार । (22) कला, तेज । (23) सुखावै । (24) सींगी, सींग से बना हुआ बाजा । (25) संसार । (26) वेणु बाजा । (27) जलाई । (28) न्यारी ।

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।। मारू, महला 1 ।। (शब्द 10)
काम क्रोध परहरु20 पर निंदा ।
लबु21 लोभु तजि होहु निचिंदा22।।
भ्रम का संगलु23 तोड़ि निराला24 हरि अन्तरि हरि रस पाइआ ।।1।।
निसि दामनि25 जिउ चमकि चंदाइणु26 देखै ।
अहिनिसि जोति निरन्तरि1 पेखै2 ।
आनन्द रूपु अनूपु सरूपा गुरि पूरै देखाइआ ।।2।।
सतिगुर मिलहु आपे प्रभ तारे ।
ससि घरि सूर दीपक गैणारै3 ।।
देखि अदिसट4 रहहु लिव5 लागी सभु त्रिभवणि ब्रह्म सबाइआ6 ।।3।।
अंम्रत रस पाए त्रिसना भउ7 जाए8 ।
अनभउ पदु9 पावै आपु गवाए ।।
ऊची पदवी ऊचो ऊचा निरमल सबदु कमाइआ ।।4।।
अद्रिसटि अगोचरु नाम अपारा ।
अति रसु मीठा नामु पिआरा ।।
नानक कउ जुगि-जुगि हरि जसु दीजै हरि जपिअै अंतु न पाइआ ।।5।।
अन्तरि नामु परापति हीरा ।
हरि जपते मनु मन ते धीरा10 ।।
दुघट11 घट भउ भंजनु पाइअै बाहुड़ि जनमि न जाइआ ।।6।।
भगति हेतु गुर सबद तरंगा12।
हरि जसु नामु पदारथु मंगा ।।
हरि भावै गुर मेलि मिलाए हरि तारे जगतु सबाइआ ।।7।।
जिनि जपु जपिउ सतिगुर मति वाके ।
जम कंकर13 कालु सेवक पग ताके ।।
ऊतम संगति गति मति ऊतम जगु भउजलु पारि तराइआ ।।8।।
इहु भवजलु जगतु सबदि गुर तरीअै ।
अन्तर की दुविधा अन्तरि जरीअै ।।
पंच वाण14 ले जम कउ मारै गगनंतरि15 धणखु16 चड़ाइआ ।।9।।
साकत17 नरि सबद सुरति किउ पाइअै ।
सबद सुरति बिनु आइअै जाइअै ।।
नानक गुरमुख मुकति पराइणु18 हरि पूरे भागि मिलाइआ ।।10।।
निरभउ सतिगुरु है रखवाला ।
भगति परापति गुर गोपाल ।।
धुनि अनंदु अनाहदु बाजै गुरि सबदि निरंजनु पाइआ ।
निरभउ सो सिरी नाहीं लेखा ।
आपि अलेखु कुदरति है देखा ।।
आपि अतीतु19 अजोनी संभउ27 नानक गुरमति सो पाइआ ।
अन्तर की गति सतगुरु जाणै ।
सो निरभउ गुर सबदि पछाणै ।।
अन्तरु देखि निरंतरि28 बूझै अनत न मनु डोलाइआ ।
निरभउ सो अभअन्तरि29 बसिआ ।
अहिनिसि नामि निरंजन रसिआ ।।
नानक हरिजसु संगति पाइअै हरि सहजे सहजि मिलाइआ ।
अन्तर बाहरि सो प्रभु जाणै ।
रहै अलिपतु30 चलते31 घरि आणै ।।
ऊपरि आदि सरब तिहु लोई32 सचु नानक अंम्रित रसु पाइआ ।

(1) सर्वदा । (2) देखै । (3) सितारे, तारे । (4) देखने के परे । (5) लौ । (6) समाया । (7) डर । (8) जाता रहा । (9) आत्मपद। (10) पिण्डी मन को निजमन से धीरज मिलता है । (11) दुर्घट । (12) उमंग । (13) किंकर । (14) पाँच ध्वनियाँ । (15) अन्तर-गगन के भीतर । (16) धनुष । (17) निगुरा । (18) प्रवृत्त, लगा हुआ । (20) त्यागो । (21) लालच। (22) निश्चिन्त । (23) ज×जीर । (24) न्यारा । (25) बिजली । (26) चाँदनी । (19) न्यारा । (27) अज, अजन्मा । (28) लगातार, सघन । (29) अन्तर्गत । (30) निर्लेप । (31) चंचल (मन) । (32) लोक ।

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।। प्रभाती असट पदीआ महला 1 विभास ।। (शब्द 11)

1ॐ सतिगुरु प्रसादि
दुबिधा बउरी मनु बउराइआ ।
झूठे लालचि जनमु गवाँइआ ।।
लपटि रहि फुनि14 बंधनु15 पाइआ ।
सतिगुरि राखे16 नाम दिड़ाइआ ।।
ना मनु मरै न माइआ मरै ।
जिनु कीछु कीआ सोई जाणै ।।
सबदु विचारि भउसागरु तरै ।
माइआ संचि17 राचै18 अहंकारी ।।
माइआ साथि न चलै पियारी ।
माइआ ममता है बहुरंगी ।।
बिनु नावै1 को2 साथि न संगी ।
जिउ मनु देखहि पर मनु तैसा ।
जैसी मनसा तैसी दसा3 ।
जैसा करमु4 तैसी लिव लावै ।
सतिगुरु पूछि सहज घरु पावै ।
रागि5 नादि6 मनु दूजै7 भाइ8 ।
अन्तरि कपटु महा दुखु पाइ ।
सतिगुरु भेटै सोझी9 पाइ ।
सचै नामि रहै लिव लाइ ।
सचै सबदि सचु कमावै ।
सची वाणी हरि गुण गावै ।
निज घरि वासु अमर पदु पावै ।
ता दरि10 साचै सोभा पावै ।
गुर सेवा बिनु भगति न होई ।
अनेक जतनु करै जो कोई ।
हउमै मेरा सबदे खोई ।
निरमल नाम वसै मनि सोई11 ।
इसु जग महि सबदु करणी है सारु ।
बिनु सबदै होर12 मोह गुवारु ।
सबदै नाम रखै उरि धार ।
सबदे गति मति मोख दुआर ।
अवर नाहीं करि देखणहारो ।
साचा आपि अनूपु13 अपारो ।
राम नाम ऊतम गति होई ।
नानक खोजि लहै जनि कोई ।

(1) नाम । (2) कोई । (3) हालत । (4) कर्म । (5) प्रेम, अनुराग। (6) शब्द । (7) दूसरा भाव । (8) हे भाई ! (9) सूझ। (10) दरवाजा । (11) शब्द-अभ्यास करके जो अहंकार को गवाँ देता है, उसी के मन में पवित्र नाम बसता है । (12) और । (13) उपमा-रहित । (14) पुनि, फिर । (15) बन्धन । (16) रक्षा किए । (17) संग्रह कर । (18) शोभित होते ।

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।। रामकली, महला 1 ।। (शब्द 12)

सागर महि बूंद बूंद महि सागरु कवणु बुझै विधि1 जाणै ।
उतभुज2 चलत3 आपि करि चीनै आपे ततु4 पछाणै।
अैसा गिआन विचारै कोई ।
तिसते मुकति परम गति होई ।।
दिन महि रैणि रैणि महि दीनी अरु उसन5 सीति विधि सोई ।
ताकी गति6 मति अवरु न जाणै गुर बिन समझ न होई ।
पुरख महि नारि नारि महि पुरखा7 बूझहु ब्रह्म गिआनी ।
धुनि महि धिआनु धिआन महि जानिआ गुरमुखि अकथ कहानी ।
मन महि जोति जोति महि मनुआँ पंच8 मिले गुरभाई ।
नानक तिनकै सद9 बलिहारी जिन एक10 सबदि लिवलाई ।

(1) युक्ति । (2) अद्भुत । (3) चरित्र । (4) सार वस्तु । (5) दृष्टि-योग करे। दिन=उसन=उष्म=सूर्य=गंगा=पिंगला। रैणि=सीत=रात=चन्द्र= यमुना=इड़ा । (6) चाल । (7) पुरुष में प्रकृति और प्रकृति में पुरुष। (8) पंच गुरभाई=पंच नाद। (9) सदा । (10) केवल, सिर्फ ।

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।। धानासरी, महला 1 ।। (शब्द 13)

नदरि11 करे ता सिमरिआ जाई ।
आत्मा द्रवै रहै लिवलाई ।।
आतमा परातमा एकौ करै ।
अंतरि की दुविधा अंतरि मरै ।।1।।
गुर परसादी पाइआ जाइ ।
हरि सिउ चितु लागै फिरि कालु न खाइ ।।
सचि सिमरिअै होवै परगासु ।
ताते विखिया महि रहै उदासु ।।
सतिगुर की अैसी बड़ियाई ।
पुत्र कलत्र12 बिचै गति13 पाई ।।2।।
अैसी सेवकु सेवा करै ।
जिसका जीउ तिसु आगै धरै ।।
साहिब भावै सो परवाणु ।
सो सेवक दरगह14 पावै माणु15 ।।3।।
सतिगुर की मूरति हिरदै बसाए ।
जो ईछै सोई फलु पाए ।
साचा साहिबु किरपा करै ।
सो सेवक जम ते कैसा डरै ।
भनति1 नानकु करै विचारु ।
साची वाणी सिउ धरै पिआरु ।
ताको पावै मोख दुआर ।
जपु तपु सभु इहु सबदु है सारु ।


(1) कहै । (11) देखे, दृष्टि योग करे । (12) पत्नी, स्त्री । (13) मुक्ति । (14) दरबार । (15) आदर ।

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।। सलोक महला 1 ।। (शब्द 14)
घरि महि घरु देखाइ देइ सो सतगुरु परखु सुजाणु ।
पंच सबदु धुनिकार धुनि तह बाजै सबदु निसाणु2 ।
दीप लोअ3 पाताल तह4 खंड मंडल हैरानु ।
तार घोर वाजिंत्र5 तह साचि तखति सुलतान ।
सुखमन कै घरि राग सुनि सुन मंडल लिवलाइ ।
अकथ कथा वीचारीअै मनसा मनहि समाइ ।
उलटि कमलु अंम्रित भरिआ इहु मन कतहुँ न जाइ ।
अजपा जाप न बीसरै आदि जुगादि समाइ ।
सभि सखिया पंचे6 मिलै गुरमुखि निज घरि वासु ।
सबदु खोज इहु घरु लहै नानकु ताका दासु ।

(2) निशान= तीक्ष्ण = तेज । (3) लोक । (4) तहाँ । (5) बाजता । (6) पाँच नादों से ।

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रागु सूही, महला 1 छतं घरु 2 ।। (शब्द 15)

1 ॐ सतिगुरु प्रसादि
हम घरि साजन आए साचै मेलि मिलाए ।
सहजि मिलाए हरि मन भाए पंच मिले सुखु पाइआ ।
साई8 बसतु परापति होई जिसु सेती मनु लाईआ ।
अनु दिन मैलु भइआ मनु मानिआ घर मंदर सोहाए ।
पंच सबद धुनि अनहद बाजे हम घरि साजन आए ।
आवहु मीत पिआरे । मंगल गावहु नारे9।
सचु मंगल गावहु ता प्रभु भावहु सोहिलड़ा1 जुग चारे ।
अपने घरु आइआ थानि सुहाइआ कारज सबदि सवारे ।
गिआनु महा रसु नेत्री अंजनु त्रिभुवन रूप दिखाइआ ।
सखी मिलहु रसि मंगल गावहु हम घरि साजनु आइआ ।
मनु तनु अंम्रित भिंना । अंतरि प्रेमु रतंना ।
अंतरि रतनु पदारथु मेरे परम ततु वीचारो ।
जंत2 भेख तू सफलिउ दाता3 सिरि सिरि देवणहारो ।
तू जानु4 गिआनी अंतरजामी आपे कारणु कीना ।
सुनहु सखी मनु मोहनि मोहिआ तनु मनु अंम्रित भीना ।
आतम राम संसारा । साचा खेलु तुमारा ।
सचु खेलु तुम्हारा अगम अपारा तुधु बिनु कउण बुझाए ।
सिध साधिक सिआणे केते तुधु बिनु कवणु कहाए ।
काल विकाल5 भए देवाने मनु राखिआ गुरि ठाए6 ।
नानक अवगण सबदि जलाए गुण संगमि7 प्रभु पाए ।


(1) एक रागिनी । (2) जीव । (3) अच्छा फल देनेवाला । (4) ज्ञाता। (5) विकराल, भयंकर । (6) पास, स्थान में । (7) संग, साथ। (8) सोई । (9) उच्च स्वर से ।


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।। रामकली, महला 1, सिध गोसटि ।। (शब्द 16)

जैसे जल महि कमलु निरालमु8 मुरगाई9 नैसाणै10 ।
सुरति सबदि भवसागरु तरीअै नानक नामु बखाणै ।
रहहि एकांति एको मनि बसिआ आसा माहिं निरासो ।
अगमु अगोचरु देखि दिखाए नानक ताका दासो ।
बिनु सतिगुर सेवे जोगु न होई ।
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न कोई ।
बिनु सतिगुर भेटे नामु पाइआ न जाइ ।
बिनु सतिगुर भेटे महा दुखु पाइ ।
बिनु सतिगुर भेटे महा गरबि11 गुबारि12 ।
नानक बिनु गुर मूआ जनमु हारि ।

(8) असंग, निर्लेप । (9) पनडुब्बी मुर्गी । (10) बिना सना, निर्लेप । (11) अहंकार । (12) धुँधला ।


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प्राण-संगली1, भाग 1

।। राग रामकली, महला 1 ।। (शब्द 1)

ओअंकार निरमल सत वाणि । तांते होई सगली खाणि ।।
खाणि खाणि महिं बहु विस्तारा । आपे जाने सिरजनहारा ।।
सिरजनहारे के केते भेष । भेष भेष महि रहै अलेष ।।1।।
नाम जपहु मन माला । नानक सिमरहु गुरगोपाला ।।
ओअंकार हुआ परगास । साजे धरती धउल2 आकास ।।
साजे मेरु मंदिर कविलास3 । साजे पिंड धरे बिच सास4 ।।
साज्या काल न छोड़ै पास । छूटै पिंड उड़ावै हांस5 ।।
ओअंकार हुआ चानायल6 । तदहुँ तीने देव उपायल ।।
महादेव कीता भंडारी । ब्रह्मा चारि वेद वीचारी ।।
X बिष्नु हढ़ाउन7 दस औतारी ।।
आप निरालम करे तमासा । ज्यों ज्यों हुकम तिवैं परगासा ।।3।।
राचै शब्द सुशब्दै जेंह । गुरुमुख ताँकौ मिलै सनेह ।।पृ03।।

(1) यह ग्रन्थ गुरु नानकदेवजी ने सिंहलद्वीप (लंका-Ceylon) में राजा शिवनाभ को बख्स किया था और पाँचवें गुरु अर्जुनदेवजी ने उसको वहाँ से मँगाया था। इसका विशेष वर्णन वेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद में प्रकाशित प्राण-संगली, भाग-2 में पढ़िए । (2) स्वच्छ । (3) कैलाश । (4) श्वास। (5) हंस । (6) चाँदनी, प्रकाश । ग प्राण-संगली में भी यहाँ स्थान खाली है। (7) फिरनेवाला ।

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।। राग रामकली, महला 1 ।। (शब्द 2)

शब्द सुरति की साखी बूझै, मरमु दशाँ8 पंचाँ9 का सूझै ।
दशवै द्वारे चोवै10 भाठी, तीरथ परसै त्रैंसै साठी ।
गगनंतरि गगन गवनि करि फिरै, जाय त्रिवेणी मंजनु करै ।
सहस निरंतरि धरे ध्यानु, नानक ऐसा ब्रह्म-ज्ञानु ।।134।।

(8) दश शब्द । (9) पाँच शब्द । (10) चूता है, टपकता है ।

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।। राग रामकली, महला 1 ।। (शब्द 3)
कर्त्ता भुगता11 करने जोग । करन12 करावनहारु सभु होगु ।
आदि निरंजनु त्रिभवणु धनी । ताकी उपमा केतक गणी ।
निर्गुण-सर्गुण त्रिहुगुणते दूरि । नानक अलिप्तु रहिआ भरपिूर

(11) भोक्ता, भोगनेवाला । (12) करनेवाला।

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प्राण-संगली, भाग 2, अध्याय 8
शब्द तत्तु बीर्ज संसार । शब्दु निरालमु अपर अपार ।।
शब्द विचारि तरे बहु भेषा । नानक भेदु न शब्द अलेषा ।।
शब्दै सुरति भया प्रगासा । सभ को करै शब्द की आसा ।।
पंथी पंखी सिऊँ नित राता । नानक शब्दै शब्दु पछाता ।।
हाट बाट शब्द का खेलु । बिनु शब्दै क्यों होवै मेलु ।।
सारी स्त्रिष्टि शब्द कै पाछै । नानक शब्द घटै घटि आछै ।।
साध संगति महि ऋद्धि सिद्धी बुद्धि ज्ञानु । पंच1 मिलै तब मुक्त ध्यानु ।।
पंच मिलै पावहि प्रभु सोय। नानक गुर मिलिअै कार्य सिद्ध होय ।।
पंच मिलहि परवार2 सधार3 । मूल ध्यान धर ओअंकार ।।
सतिगुर मिलै भउभंजन गाइअै । नानक अनहद शब्द समाइअै ।।
शब्द पछान मिलै गुर ज्ञानु । नानक तारू थाहि पछानु ।।
सचु4 अस्थिरु5 पंच सागर6 मझारे । अदल7 करै अपने वीचारे ।।
पंचा का जो जाने भेउ । ओह अलष निरंजन करता देउ ।।
सो अगम8 निगम9 का जाणै जाणु10। नानक घटि घटि पुरुष सुजानु ।।


(1) पाँच (शब्द)। (2) परिवार, समूह । (3) साधार = आधार-सहित। पंच मिलहि परवार सधार-पाँच शब्दों वा नादों से आधार-रूप सर्वेश्वर के परिवार-रूप सब सृष्टि मिलती है अर्थात् सबका प्रत्यक्ष (अपरोक्ष) ज्ञान होता है । (4) सत्य, परम तत्त्व सर्वेश्वर । (5) स्थिर-अचल । (6) पाँच समुद्र वा सृष्टि के अत्यन्त बड़े-बड़े पाँच मण्डल । इन्हीें पाँच मण्डलों को ‘मण्डल बाह्मणोपनिषद्’ के चतुर्थ ब्राह्मण में आकाश, पराकाश, महाकाश, सूर्याकाश और परमाकाश; ये पाँच आकाश कहे गए जान पड़ते हैं । सारी सृष्टि पाँच आकाशों में वा स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण और कैवल्य-इन पाँच मण्डलों में समाप्त होती है। (7) हुक्म, आज्ञा । (8) आगम-तन्त्रशास्त्र । (9) वेद । (10) ज्ञान।

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।। रागु रामकली, महला 1 ।।
ज्ञान खड़ग ले मनु सिउ लूझे । मरम दशाँ3 पंचा का बूझे ।।
पंच4 मारि घर बहै5 संतोष । हउमैं दुविधा मेटै दोष ।।
पंच1 अगनि नहिं कायाँ जाले । सतवंता सती2 बहै धर्मशाले ।।
सहजि संतोष की भिक्षा लेइ । नानक जोगी सहजि मिलेइ ।।

(1) पाँच । (2 ) सत्य; सती बहै-सत्यता में वर्ते । (3) दश ध्वनियाँ । (4) पाँचो ज्ञानेन्द्रियों के स्वाद । (5) संतोष में वर्ते ।

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अध्याय 10
तदि अपना आपु आप ही उपाया1।
नाँ किछुते किछु करि दिखलाया ।।

(1) उत्पन्न किया ।

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अध्याय 11
आसा मनसा गुर शब्दि निवारि । काम क्रोध ब्रह्म अगनी जारि ।।
जरा1 मरन गतु2 गरव निवारे । निर्मल जोति अनूप उजारे3 ।।
सचे शब्दि सचि निस्तारे4।
लबु5 लोभ मिटे अभिमानु । जब सचे तषति बैठा परधानु ।।
शब्दु अनाहदु बाजे पंजतूरा6 । सतिगुर मति लै पूरौ पूरा ।।
गगनि निवासि आसणु जिसु होई । नानक कहे उदासी सोई ।।

(1) बुढ़ापा। (2) गया, नाश हुआ । (3) प्रकाश करे । (4) उद्धार करता है । (5) लालच । (6) पाँच नाद, पाँच नौबत ।
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।। अध्याय 15, राग भैरउ, महला 1 ।।
पंच1 मिलै अस्थिर मनु पावै । पंच मिलै गरभ जोनि न आवै ।।

(1) पाँच शब्द ।
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।। महला 2, पउड़ी ।। (शब्द 1)
नउ दरवाजे काइआ1 कोट2 है दसवे गुपतु रखीजै ।
बजर कपाट न खुलनी गुर सबदि खुलीजै ।।
अनहद बाजे धुनि बजदे गुर सबदि सुणीजै ।
ततु घर अंतरि चानणा3 करि भगति मिलीजै ।।
सभ महिं एकु वरत दा जिनि आपे रचन रचाई ।

(1) शरीर । (2) किला, गढ़ । (3) प्रकाश ।

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।। आसा दी वार, महला 2 ।। (शब्द 2)
जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार ।
एतै चानण होदिआ1 गुर बिनु घोर अंधार ।।

(1) होते हुए ।

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।। सारंग की वार, महला 2 ।। (शब्द 3)
गुरु कुंजी पाहू1 निबल2 मनु कोठा तनु छति।
नानक गुर बिनु मन का ताकु3 न उखड़ै अवर न कुंजी हथि ।।1।।

(1) प्राप्त करो । (2) निर्बल । (3) ताक, ताखा ।

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।। रागु माझ, महला 3, घरु 1 ।। (शब्द 1)
करमु4 होवै सतिगुरू मिलाए, सेवा सुरति सबदि चितु लाए ।
हउमै मारि सदा सुखु पाइआ माइआ मोह चुकावणिआ5 ।।1।।
हउ वारी6 जीउ वारी सतिगुर कै बलिहारणिआ ।
गुरमती परगासु होआ जी अनदिनु हरि गुण गावणिआ।
तनु मनु खोजे ता नाऊ7 पाए । धावतु8 राखै ठाकि9 रहाए ।
गुर की वाणी अनुदिनु10 गावै, सहजे भगति करावणिआ ।।2।।
इसु काइआ अंदरि वसतु असंखा11। गुरमुखि साचु मिलै ता12 वेखा13।
नउ दरवाजे दसवै मुकता14 अनहद सबद बजावणिआ ।।3।।
सचा साहिबु सची नाई7 । गुरपरसादी मंनि बसाई ।
अनुदिनु सदा रहै रंगि राता, दरि सचै सोझी15 पावणिआ ।।4।।
पाप पुन की सार न जाणी । दूजै लागी16 भरमि भुलाणी ।
अगिआनी अंधा मगु17 न जाणै । फिरि फिरि आवण जावणिआ ।।5।।
गुर सेवा ते सदा सुख पाइआ । हउमै मेरा ठाकि18 रहाइआ ।
गुर साखी मिटिआ अंधिआरा, बजर कपाट खुलावणिआ ।।6।।
हउमै मारि मंनि वसाइआ । गुरचरणी सदा चितु लाइआ ।
गुर किरपा ते मनु तनु निरमलु, निरमल नाम धिआवणिआ ।।7।।
जीवणु मरण सभु तुधै19 भाई20 । जिसु बखसे तिसु21 दे बडिआई ।
नानक नाम धिआइ सदा तूं, जंमणु मरणु सवारणिआ22 ।।8।।

(4) दया । (5) नाश किया । (6) न्योछावर । (7) नाम । (8) चंचलता । (9) ठहरा । (10) दिन-रात । (11) असंख्य । (12) तिसको । (13) देखा । (14) दसवाँ द्वार खोलकर । (15) सूझ । (16) द्वैत में लगकर । (17) रास्ता। (18) ठहरा । (19) तुझको । (20) भाना, पसंद आना । (21) तिसको । (22) सम्हाल ले ।


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।। माझ, महला 3 ।। (शब्द 2)

इस गुफा1 महि अखुट2 भंडारा। तिसु बिचि बसै हरि अलख अपारा।
आपे गुपतु परगट है आपे गुर सबदि आप वंञावणिआ3 ।।
हउ वारी जीउ वारी अंम्रित नामु मंनि वसावणिआ ।
अंम्रित नामु महा रसु मीठा गुरमती अंम्रितु पिआवणिआ।।1।।रहाउ।।
हउमैं मारि बजर कपाट खुलाइआ। नाम अमोलकु4 गुर परसादी पाइआ ।
बिनु सबदै नामु5 न पाए कोई गुर किरपा मंनि वसावणिआ ।।2।।
गुर गिआन अंजन सचु नेत्री पाइआ अंतरि चानणु अगिआनु अंधेरु गवाइ ।
जोती जोति मिली मनु मानिआ हरि दरि सोभा पावणिआ ।।3।।
सरीरहु भालणि6 को बाहरि जाए। नामु न लहै बहुतु बेगारि7 दुखु पाए ।
मनमुख अंधे सूझै नाहीं फिरि घरि8 आइ गुरमुखि वथु9 पावणिआ ।।4।।
गुर परसादी सचा हरि पाए । मनि तनि वेखै10 हउमैं मैलु जाए ।
वैसि11 सुथानी12 सद13 हरिगुण गावै सचै सबदि समावणिआ ।।5।।
नउ दरि ठाके धावतु रहाए । दसवै निज घरि वासा पाए ।
उथै अनहद सबद बजहि दिन राती गुरमति शबदु सुणावणिआ ।।6।।
बिनु शबदै अंतरि आनेरा14। न बसतु लहै न चूकै फेरा ।
सतिगुर हथिकुंजी होरतु15दरु16खुलै नाहीं गुर पूरै भागि मिलावणिआ ।।7।।
गुपतु परगटु सभनी थाई । गुर परसादी17 मिली सोझी18 पाई ।
नानक नाम सलाहि19 सदा तूं गुरमुखि मंनि वसावणिआ।।8।24।25।।

(1) इस शरीररूपी गुफा। (2) अघट। (3) बजाया है, गँवाया। (4) अनमोल। (5) सारशब्द अथवा सत्यनाम से भिन्न दूसरे शब्दों के बिना कोई नाम नहीं पाए। (6) देखना। (7) बिना मजदूरी के। (8) घर। (9) वस्तु। (10) देखै। (11) बैठकर। (12) अच्छी जगह। (13) सदा। (14) अंधेरा। (15) और से। (16) दरवाजा। (17) गुरु की कृपा। (18) सूझ। (19) साधन करना।

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।। गउड़ी महला 3।। (शब्द 3)

गुर की सेवा करि पिरा8 जीउ हरि नाम धिआए ।
मंञहु9 दूरि न जाहि पिरा जीउ धरि बैठिआ हरि पाए ।।
घरि बैठिआ हरि पाए सदा चितु लाए सहजे सति सुभाए1 ।
गुर की सेव खरी2 सुखाली3 जिसनो4 आपि कराए ।।
नामो बीजे5 नामो जंमै6 नामो मंनि बसाए7।
नानक सचि नाम बडिआई पूरबि लिखिआ पाए ।।

(1) सोहाया । (2) अच्छी । (3) सुखदायी । (4) जिसकी (5) बीज से । (6) पैदा होता है । (7) स्थिर किए । (8) प्यारे। (9) माँगने को।

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।। राग सोरठि वार महले 4 की सलोक महला 3।। (शब्द 4)

घर ही महि अंम्रित भरपूर है मनुखा सादु1 न पाइआ ।
जिउ कस्तूरी मिरगु न जाणै भ्रमदा2 भरम भुलाइआ ।।
अंम्रितु तजि विखु संग्रहै करतै3 आपि खुआइआ ।
गुरमुखि विरले सोझी4 पाई तिना अंदरि ब्रह्मु दिखाइआ ।।
तनु मनु सीतलु होइआ रसना हरि सादु आइआ ।
शबदे ही नाऊ ऊपजै शबद मेलि मिलाइआ ।।
बिनु शबदै सभु जगु बउराना बिरथा जनमु गवाइआ ।
अंम्रित एको शबदु है नानक गुरमुखि पाइआ ।।2।।

(1) स्वाद। (2) भरमता। (3) प्रभु । (4) सूझ ।

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।। रामकली, महला 2, अनंदु ।। (शब्द 5)

बाजे पंच शबद तितु घरि सभागै।
घरि सभागै शबद बाजे कला1 जितु घरि धारिआ ।
पंच दूत तुधु2 वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ।।
धुरि3 करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागै ।
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु4 घरि अनहद बाजे ।।

(1) शक्ति, तेज । (2) उसने, वह । (3) आदि । (4) उसके ।

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।। रामकली, महला 3, अनंदु ।। (शब्द 6)
भगता की चाल निराली ।
चाल निराली भगताह केरी विखम मारगि चलणा ।
लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाहीं बोलणा ।।
खंनिअहु1 तीखी बालहु नीकी2 एतु मारगि जाणा ।।
गुर परसादी जिनि आपु तजिआ हरि वासना समाणी ।।
कहै नानक चाल भगताह केरी जुगहु जुग निराली ।।

(1) तलवार से भी । (2) महीन ।

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।। मारु, महला 3 ।। (शब्द 7)

निहचल एक सदा सचु सोई, पूरे गुर ते सोझी होई ।
हरि रसि भीने सदा धिआइनि गुरमति सीलु1 संनाहा2 हे ।।1।।
अंदरि रंगु सदा सचिआरा3, गुरु कै शबदि हरि नामि पिआरा ।
नउ निधि नामु वसिआ घट अंतरि छोड़िआ माइआ का लाहा4 हे ।।2।।
रईअति राजे दुरमति दोई, बिनु सतिगुर सेवे एकु न होई ।
एकु धिआइनि सदा सुख पाइनि निहचलु राज तिनाहा हे ।।3।।
आवणु जाणा रखे न कोई, जंमणु मरणु तिसै ते होई ।
गुरमिुख साचा सदा धिआवहु गति मुकुति तिसै तै पाहा5 हे ।।4।।
सचु संजमु सतिगुरू दुआरै, हउमै क्रोधु सबदि निवारै ।
सतिगुरु सेवि सदा सुख पाइअै सीलु संतोख सभु ताहा हे ।।5।।
हउमैं मोह उपजै संसारा सभु जगु विनसै नामु विसारा ।
बिनु सतिगुर सेवे नामु न पाइअै नामु सचा जगि लाहा हे ।।6।।
सचा अमरु सबदि सुहाइआ, पंच शबद मिलि बाजा वाइआ ।
सदा कारज सचि नामि सुहेला6 बिनु शबदै कारजु केहा हे ।।7।।
खिन महि हसै खिन महि रोवै, दूजी दुरमति कारजु न होवै ।
संजोगु विजोगु करतैं लिखि पाए किरतु न चलै चलाहा हे ।।8।।
जीवन मुकति गुरु शबदु कमाए, हरि सिउ सदही रहै समाए ।
गुर किरपा ते मिलै बडिआई, हउमै रोगु न ताहा हे ।।9।।
रस7 कस8 खाए पिंडु बधाए9, भेख10 करै गुर शबदु न कमाए ।
अंतरि रोग महा दुखु भारी, बिसटा माहि समाहा11 हे ।।10।।
वेद पड़हि पड़ि बादु बखाणहि। घट महि ब्रह्म तिसु शबदि न पछाणहि ।
गुरमुख होवै सु ततु बिलोवै12 । रसना हरि रसु ताहा हे ।।11।।
घरि वथु13 छोड़हि बाहरि धावहि । मनमुख अन्धे सादु न पावहि ।
अन रस राती रसना फीकी बोले हरि रसु मूलि न ताहा हे ।।12।।
मनमुख देही भरमु भतारो14 । दुरमति मरै नित होइ खुआरो15।।
कामि क्रोधि मनु दूजै लाइआ । सुपने सुखु न ताहा हे ।।
कंचन देही सबदु भतारो । अन दिनु भोग भोगे हरि सिउ पिआरो ।।
महला16 अंदरि गैर17 महलु पाए भाणा18 बूझि समाहा19 हे ।।
आपे देवै देवणहारा । तिसु आगे नहीं किसै का चारा ।।
आपे बखसे सबदि मिलाए तिसदा शबदु अथाहा हे ।।
जीउ पिंडु सभु है तिसु केरा । साचा साहिब ठाकुर मेरा ।।
नानक गुरुवाणी हरि पाइआ हरि जपु जापि समाहा हे ।।16।।5।।14।।

(1) उत्तम स्वभाव। (2) सनाह, कवच। (3) सत्य, सच्चा। (4) लाभ। (5) प्राप्त किया। (6) अच्छा। (7, 8) स्वादिष्ट भोजन । (9) बढ़ाए। (10) भेष, वेश । (11) समाए । (12) मथै । (13) वस्तु । (14) भरा हुआ । (15) लज्जित । (16) मंदिर । (17) दूसरा । (18) बरतन । (19) समाया ।

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।। सलोक, महला 3 ।। (शब्द 8)
जीआ अंदरि जीउ शबदु है जितु महि मेलावा होई।
बिनु शबदै जगि आनेरु1 है शबदै परगटु होई ।।
पंडति मौन पड़ि पड़ि थके भेख थके तनु धोइ ।
बिनु शबदै किनै न पाइउ दुखिए चले रोइ ।।
नानक नदरी पाइए करमि परापति होइ ।।

(1) अँधेरा ।
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।। पउड़ी, महला 4 ।। (शब्द 1)
पंचे शबद बजे मति गुरमति बड़ भागी अनहदु बजिआ ।
आनंद मूलु रामु सभु देखिआ गुर शबदी गोबिंदु गजिआ1।।
आदि जुगादि वेसु हरि एको मति गुरमति हरि प्रभ भजिआ।
हरि देबहु दानु दइयाल प्रभ जन राखहु हरि प्रभ लजिआ।।
सभि धनु कहहु गुरु सतिगुरू गुरु सतिगुरू ।
जितु मिलि हरि पड़दा कजिआ2 ।

(1) गर्जना । (2) खुल गया ।

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।। रागु कलिआन, महला 4, असट पदिआ ।। (शब्द 2)

1 ॐ सतिगुर प्रसादि
रामा रम1 रामो सुनि मनु भीजै ।।
हरि हरि नामु अंम्रितु रसु मीठा गुरमति सहिजे पीजै ।।1।।रहाउ।।
कासट2 महि जिउ है बैसंतरु3 मथि4 संजमि5 काढ़ि कढ़ीजै।
राम नामु है जोति सबाई6 ततु गुरमति काढ़ि लईजै ।।
नउ दरवाजे नवै दर7 फीके रसु अंम्रितु दसवै चुईजै ।।
क्रिपा क्रिपा किरपा करि पिआरे गुर शबदी हरि रसु पीजै ।।
काइआ नगरु नगरु है नीको बिचि सउदा हरि रसु कीजै ।।
रतन लाल अमोल अमोलक सतिगुर सेवा लीजै ।।
सतिगुर अगमु अगमु है ठाकुर भरि सागर8 भगति करीजै ।।
क्रिपा क्रिपा करि दीन हम सारिंग9 इक बूँद नामु मुख दीजै ।।
लालनु10 लालु लालु है रंगनु11 मनु रंगन कउ गुर दीजै ।।
राम राम राम रंगि राते रस रसिक गटक12 नित पीजै ।।
बसुधा सपत दीप है सागर कढ़ि कंचनु काढ़ि धरीजै ।।
मेरे ठाकुर के जन इनहु न बांछहि13 हरि मांगहि हरि रसु दीजै ।।
साकत नर प्रानी सद भूखे नित भूखन14 भूख करीजै ।।
धावतु धाइ धावहि प्रीति माइआ लख कोसन15 कउ बिथिदीजै ।।
हरि हरि हरि हरि हरिजन ऊतम किआ उपमा तिन्ह दीजै ।।
राम नामु तुलि अउरु न उपमा जन नानक क्रिपा करीजै ।।

(1) रमो । (2) काठ । (3) अग्नि । (4) रगड़कर । (5) तरीके से, साधन कर । (6) सब में । (7) दरवाजा । (8) समुद्र भर के अर्थात् बहुत-सी । (9) पपीहा । (10) लालरंग-प्रकाश । (11) रंग । (12) गटगट करके, बड़े- बड़े घोंट भरकर । (13) चाहते । (14) भूख-ही-भूख । (15) कोसों ।

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।। राग गुजरी वार सलोक, महला 5 ।। (शब्द 1)

1 ॐ सतिगुर प्रसादि
अंतरि गुरु आराधणा जिह्वा जपि गुर नाउ ।।
नेत्री सतिगुरु पेखणा स्त्रवणी सुनणा गुर नाउ ।।
सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाइअै ठाउ ।।
कहु नानक किरपा करे जिसनो एह वथु1 देइ ।।
जग महि ऊतम काढ़ीअहि2 बिरले केई केइ ।।

(1) चीज । (2) निकालना ।

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।। सलोक, महला 5 ।। (शब्द 2)
नानक सतिगुरु भेटिअै पूरी होवै जुगती ।
हसं दिआ खेलं दिआ पैनं दिआ खावं दिआ बिचे होवै मुकती ।।2।।


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।। राग गोंड, महला 5 ।। द्धशब्द 3ऋ
गुर की मूरति मन महि धिआनु । गुर कै शबदि मंत्र मनु मानु ।।
गुरु के चरन रिदै1 लै धारउ । गुरु पारब्रह्म सदा नमसकारउ ।।1।।
मत को2 भरमि भूलै संसारि । गुर बिनु कोई न उतरसि पारि ।।1।।
भूलै कउ गुरि मारगि पाइआ । अवरि तिआगि हरि भगति लाइआ ।।
जनम मरण की त्रास मिटाई । गुर पूरे की बेअंत बड़ाई ।।
गुर प्रसादि ऊरध3 कमल विगास । अंधकार महि भइआ प्रगास ।।
जिनि किआ सो गुरते जानिआ। गुर किरपा ते मुगध4 मनु मानिआ ।।
गुरु करता गुरु करणै जोगु । गुरु परमेसुर है भी5 होगु6 ।।
कहु नानक प्रभि इहै जनाई । बिनु गुरु मुकति न पाइअै भाई।।4।।5।।7।।

(1) हृदय । (2) कोई । (3) ऊपर । (4) मोह प्राप्त, मुग्ध । (5) है भी । (6) होगा भी ।

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।। राग रामकली, महला 5 ।। (शब्द 4)

पंच शबद तह पूरन नाद । अनहद बाजे अचरज बिसमाद1 ।।
केल2 करहि संत हरि लोग । पार ब्रह्म पूरन निरजोग3 ।।
सूख सहज आनंद भवन । साध संगि बैस गुण गावह तह रोग सोग नहिं जनम मरन ।।1।।रहाउ।।
ऊहा4 सिमरहि केवल नामु । बिरले पावहिं उहू विस्त्राम ।।
भोजन भाउ कीरतन आधारु । निहचल आसन बेसुमारु ।।
डिगि न डोलै कतहु न धावै । गुर प्रसादि को इहु महलु पावै ।।
भ्रम भै मोह न माइआ जाल । सुंन समाधि प्रभू किरपाल ।।
ता का अंतु न पारावारु । आपे गुपतु आप पासारु ।।
जाके अंतरि हरि हरि सुआदु। कहनु न जाइ नानक बिसमादु । ।4।।9।।20।।

(1) आश्चर्य । (2) आनंद । (3) कैवल्य । (4) वह ।

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।। राग माझ, महला 5 ।। (शब्द 5)
सब किछु घर महि बाहरि नाहीं । बाहरि टोलै1 सो भरमि भुलाहीं ।।
गुर परसादी जिनि अंतरि पाइआ । सो अंतरि बाहरि सुहेला2 जीउ ।।
झिमि झिमि बरसै अंम्रित धारा । मनु पीवै सुनि शबदु विचारा ।।
अनद विनोद करे दिन राती । सदा सदा हरि केला3 जीउ ।।
जनम जनम का बिछुड़िआ मिलिआ। साध क्रिपा ते सूका4 हरिआ ।।
सुमति पाए नामु धिआए । गुरमुखि होए मेला जीउ ।।3।।
जल तरंग जिउ जलहि समाइआ । तिउ जोती संगि जोति मिलाइआ ।।
कहु नानक भ्रम कटे किवाड़ा बहुरि न होइअै जउला5 जीउ।

(1) टटोले । (2) सुखी । (3) आनंद । (4) सूखा हुआ । (5) बंधन ।

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।। धानासरी, महला 9 ।। (शब्द 1)

1 ॐ सतिगुर प्रसादि
काहे रे वन खोजन जाई।
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संग समाई ।।1।।
पुहप मधि जिउ बासु वसतु है मुकर माहिं जैसे छाई ।।
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घटि ही खोजहु भाई ।।
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआन बताई ।।
जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई ।।

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।। जैतसरी, महला 9 ।। (शब्द 2)

1 ॐ सतिगुर प्रसादि ।
जो जो करम कीउ लालच लगि तिह तिह आपु बंधाइउ ।।
समझ न परी बिखै रस रचिउ जसु हरि को बिसराइउ ।।
संगि सुआमि सो जानिउ नाहिन वनु खोजन कउ धाइउ ।।
रतनु राम घट ही के भीतरि ताको गिआनु न पाइउ ।।
जन नानक भगवन्त भजन बिनु बिरथा जनमु गवाइउ ।।

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1 ॐ वाह गुरुजी की फ़ते
( श्री मुख वाक पातिशाही 10 अकाल ऊसतत बिचों ) त्व प्रसादि । चउपई
प्रणवो आदि ऐकंकारा । जल थल महीअल कीउं पसारा ।।
आदि पुरुष अवगत अविनासी । लोक चत्रुदस जोति प्रकासी ।।
हसत कीट के बीच समाना । राव रंक जिह इक सर जाना ।।
अद्वै अलख पुरुष अविगामी । सभ घट घट के अंतरजामी ।।
अलख रूप अछै अन भेषा । राग रंग जिह रूप न रेखा ।।
वरन चिहन सभहूँ ते निआरा । आदि पुरुष अद्वै अविकारा ।।
वरन चिहन जिह जात न पाता । सँत्र मित्र जिह तात न माता ।।
सभते दूर सभन ते नेरा । जल थल महीअल जाह बसेरा ।।
अनहद रूप अनाहद बानी । चरन सरन जिह बसत भवानी ।।
ब्रह्मा बिसन अन्तु नहिं पाइउ । नेत नेत मुख चार बताइउ ।।
कोट इन्द्र उपइन्द्र बनाए । ब्रह्मा इन्द्र उपाइ खपाए ।।
लोक चत्रदस खेल रचाइउ । बहुर आपही बीच मिलाइउ ।।
सवैया-काहू लै पाहन पूज धरो सिर काहू लै लिंगु गरे लटकाइउ ।।
काहू लखिऊँ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को शीश निवाइउ ।।
कोउ बुतान कौ पूजत है पसु कोउ मृतान कउ पूजन धाइउ ।।
कूर क्रिया उरझिउ सबही जगु श्री भगवान को भेद न पाइउ ।।

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।। रामकली, पातशाही 10 ।।
रे मन ऐसो करि संनिआसा ।
वन से सदन सभै करि समझहु मन ही माहिं उदासा ।।रहाउ।।
जत की जटा जोग को मज्जन नेम के नखन बढ़ाउ ।।
गिआन गुरू आतम उपदेसहु नाम विभूत लगाउ ।।
अलप अहार सुलप सी निद्रा दया छिमा तन प्रीति ।।
सील संतोष सदा निरवाहबो ह्वैवो त्रिगुन अतीत ।।
काम क्रोध हंकार लोभ हठ मोह न मन सिऊ लयावै ।।
तबही आतम तत को दरसै परम पुरुष कह पावै ।।

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।। रामकली, पातशाही 10।।
रे मन इहि विधि जोग कमाउ ।
सिंगी साँच अकपट कंठला धिआन विभूत चढ़ाउ ।।रहाउ ।।
ताती गहु आतम बसि कर की भिँछा नाम अधारं ।
बाजे परम तार तत हरि को उपजै राग रसारं ।।
उघटै तान तरंग रंगि अति गिआन गीत बंधान ।।
चकि चकि रहे देव दानव मुनि छकि छकि व्योम विवान ।।
आतम उपदेश भेष संयम को जाप सु अजपा जापै ।
सदा रहै कंचन सी काया काल न कबहूँ व्यापै ।।

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हैदराबाद सिन्ध निवासी स्वर्गीय सेठ चिमनदास रूपचंदजी के सुपुत्र भाई गोविन्दराम चिमनदासजी ने अपने पूज्य पिता की पाठ्य पुस्तक को सर्व उदासीन साधु (नानक शाही बाबा श्रीचन्दजी के अनुयायी) मात्र के पाठ करने के लिए परमार्थ रूप में छपवाकर दान दिया, उसी पुस्तक में से संकलित ।

अथ बीज मंत्र श्री गुरु नानकजी का लिख्यते--
ओअंकार सबदि ओअंकार बानी । ओअंकार ने गति ओअंकार की जानी। सबदे धरती सबदे आकास । सबदे सबदि भया प्रकास । नीचे धरती ऊपर आकास । ओअं सोहं आपे आप । आप जपाये सोहं का जाप । ओअं अमर पिण्ड अखण्ड काइआ । गिआन सरूप सतिगुरु सुनाइआ । मरै न पिण्ड छीजै न काइआ । सतिगुरु का सबदि उलट हिरदै में समाइआ । पुहपव अलीलं बार बार जाउ असीलं अकोकं अथेबं बीज मंत्र अनंत गुटका श्री नानक देवजी श्रीचंद को सबद करम कर सुनाइआ ।

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