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(1)
आसरा एक करतार का रख तू,
बीच मैदान के बाँध ताटी ।
रहेगा वोही जिन्हें खलक पैदा किया,
और सब होयगा खाक माटी ।।
अमीर उमराव दिन चार के पाहुने,
घूमता है दरबार हाथी ।
कहत कमाल कबीर का बालका,
राम नाम संग तेरा साथी ।।
(2)
इतना जोग कमाय के साधू, क्या तूने फल पाया ।
जंगल जाके खाक लगाये, फेर चौरासी आया ।
राम भजन है अच्छा रे, दिल में राखो सच्चा रे ।
जोग जुगत की गत है न्यारी, जोग जहर का प्याला ।
जीने पावे उने छुपावे, वो ही रहे मतवाला ।
जोग कमाय के बाबू होना, ये तो बड़ा मुस्कल है ।
दोनों हात जब निकल गये, फेर सुधरन भी मुस्कल है ।
सुख से बैठो आपने मेहल में, राम भजन अच्छा है ।
कछु काया छीजे नहीं खरचै, ध्यान धरो सोइ सच्चा है ।
कहत कमाल सुनो भाई साधू, सबसे पंथ न्यारा है ।
वेद शास्तर की बात ये ही, जम के माथे पथरा है ।
(3)
ये तनु किसो की किसो की, आखर बस्ती जंगल की ।
काहे कूँ दिवाने सोच करे, मेरी माता और पुत्री ।
ये तो सब झूठ पसारा, राम करो अपना साथी ।
खाये पिये सुख से बैठे, फेर उठके चले जाती ।
विरख की छाया, सुख की मीठी, एक घड़ी का साथी ।
कहत कमाल सुनो भाई साधू, सपन भया राती ।
खिन में राजा खिन में रंक, ऐसी राह चलाती ।
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