संत रैदासजी की वाणी

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(1)
अब कैसे छुटै नाम रट लागी ।। टेक।।
प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अँग अँग बास समानी ।।
प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा ।
जैसे चितवत चंद चकोरा ।।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती ।
जा की जोति बरै दिन राती ।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।
(2)
हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस ।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रैदास ।
अंतर गति राचैं नहीं, बाहर कथैं उदास ।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रैदास ।
रैदास कहे जाके हृदे, रहै रैन दिन राम ।
सो भगता भगवन्त सम, क्रोध न व्यापै काम ।
जा देखे घिन ऊपजै, नरक कुण्ड में बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।
रैदास तूँ कावँच फली, तुझे न छीपै कोइ ।
तैं निज नावँ न जानिया, भला कहाँ ते होइ ।
रैदास राति न सोइये, दिवस न करिये स्वाद ।
अह-निसि हरि जी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।

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