स्वात्मारामजी महाराज का वचन

[गोरखनाथजी महाराज के शिष्य ]

*********************
(हठयोग प्रदीपिका से उद्धृत )

महति श्रूयमाणोऽपि मेघभेर्यादिके ध्वनौ ।
तत्र सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरं नादमेव परामृशेत् ।।87।।

 *********************

*********************
(हठयोग प्रदीपिका से उद्धृत )

श्लोक- महति श्रूयमाणोऽपि मेघभेर्यादिके ध्वनौ ।
तत्र सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरं नादमेव परामृशेत् ।।87।।
अर्थ-मेघ, भेरी आदि का जो महान् शब्द है, उसके तुल्य शब्द के सुनने पर भी उन शब्दों में सूक्ष्म से भी सूक्ष्म जो नाद है, उसका चिन्तन करे; क्योंकि सूक्ष्म नाद चिरकाल तक रहता है, उसमें आसक्त हुआ है चित्त जिसका, ऐसा मनुष्य भी चिरकाल तक स्थिरमति हो जाता है।।87।।

********************* 

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.

कॉपीराइट अखिल भरतीय संतमत-सत्संग प्रकाशन के पास सुरक्षित