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अगर मनुष्य शंका दूर करने में खुश होता है, सदा विचार करता है और ऐसी वस्तु का ध्यान करता है, जो शरीर-संबंधी नहीं है, तो वह अवश्य काल की बेड़ी को काट डालेगा।
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सब दानों में धर्म का दान उत्तम है; सारे रसों में धर्म का रस मीठा है; सारे आनन्दों में धर्म का आनन्द श्रेष्ठ है; तृष्णा को मारने से सब दुःख नष्ट होते हैं।
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जो कभी अपने को नाम और रूप की वस्तु नहीं समझता और बीते हुए का शोक नहीं करता, वह बेशक भिक्षु कहलाता है। हे भिक्षु! ध्यान कर और सावधान रह, अपने चित्त को खुशी की तरफ न ले जा, ताकि तुझे बेपरवाही के बदले नरक में लोहे का गोला न निगलना पड़े और जलते समय न चिल्लाना पड़े कि हाय ! यह दुःख है।
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ज्ञान-बिना ध्यान नहीं और ध्यान-बिना ज्ञान नहीं है; जो ज्ञान और ध्यान दोनों रखता है, निर्वाण के समीप है। भिक्षु जो अपने शून्य हृदय में पहुँच गया है, जिसका चित्त स्थिर है, वह जो धर्म को साफ तौर से देखता है, अलौकिक आनन्द पाता है। पाप मत करो, भलाई करो, अपना चित्त शुद्ध करो, यही कुल बुद्धों का उपदेश है।
जैसे तीर बनानेवाला अपने तीर को सीधा करता है, उसी प्रकार बुद्धिमान आदमी अपने चंचल और चलायमान चित्त को स्थिर करता है, जिसको काबू करना कठिन है, जिसका रोकना कठिन है।
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हंस सूर्य के रास्ते पर जाते हैं, वह अद्भुत रीति से आकाश में चलते हैं; बुद्धिमान लोग दुनिया से निकलने का मार्ग पा जाते हैं, जब वह मार और उसकी सेना को जीत लेते हैं। मनुष्य जिससे बुद्ध का बताया हुआ धर्म सीखे तो उसे परिश्रम से उसकी सेवा करनी चाहिए, जैसे ब्राह्मण यज्ञ-अग्नि की पूजा करता है। जो उनकी सेवा करता है, जो पूजने योग्य हैं, चाहे वह बुद्ध हों या उनके चेले हों, जिन्होंने पापों के समूह को जीत लिया हो और दुःख की नदी को पार कर लिया हो, जो उनका सम्मान करता है, जिन्होंने आजादी पा ली हो और जो भयभीत न हो, उसके पुण्य का कोई अन्दाजा नहीं कर सकता।
(ग्रन्थ-धम्मपद)
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