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ज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियान्तःकरणचतुष्टयं चतुर्दशकरणयुक्तं जाग्रत्। अन्तःकरणचतुष्टयैरेव संयुक्तः स्वप्नः। चित्तैककरणा सुषुप्तिः। केवलजीवयुक्तमेव तुरीयमिति।। 5।।
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ज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियान्तःकरणचतुष्टयं चतुर्दशकरणयुक्तं जाग्रत्। अन्तःकरणचतुष्टयैरेव संयुक्तः स्वप्नः। चित्तैककरणा सुषुप्तिः। केवलजीवयुक्तमेव तुरीयमिति।। 5।।
अर्थ-पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, चार अन्तःकरण (मन, बुद्धि, अहंकार एवं चित्त)-इन्हें मिलाकर 14 इन्द्रियों से युक्त जाग्रत् अवस्था है। चारो अन्तःकरणों से युक्त स्वप्न अवस्था है। केवल चित्त से युक्त सुषुप्ति अवस्था है और केवल जीव-युक्त तुरीयावस्था है।।5।।
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