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शान्तो दान्तोऽतिविरक्तः सुशुद्धो गुरुभक्तस्तपोनिष्ठः शिष्यो ब्रह्मनिष्ठं गुरुमासाद्य प्रदक्षिणपूर्वकं दण्डवत्प्रणम्य प्रांजलिर्भूत्वा विनयेनोपसंगम्य भगवन् गुरो मे परमतत्त्वरहस्यं विविच्य वक्तव्यमिति।
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अमित वेदान्तवेद्यं ब्रह्म।
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मूल-शान्तो दान्तोऽतिविरक्तः सुशुद्धो गुरुभक्तस्तपोनिष्ठः शिष्यो ब्रह्मनिष्ठं गुरुमासाद्य प्रदक्षिणपूर्वकं दण्डवत्प्रणम्य प्रांजलिर्भूत्वा विनयेनोपसंगम्य भगवन् गुरो मे परमतत्त्वरहस्यं विविच्य वक्तव्यमिति।
अर्थ-शान्त, दमनशील, अति विरक्त, अति शुद्ध, गुरुभक्त, तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मनिष्ठ गुरु के पास जाकर प्रदक्षिणा और दण्डवत् प्रणाम करके हाथ जोड़कर नम्रता के साथ कहे-‘हे भगवन् मेरे गुरु ! परम तत्त्व-रहस्य विवेचन के साथ मुझे बतलाइये।।’
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मूल-अमित वेदान्तवेद्यं ब्रह्म।
अर्थ-अमित वेदान्त से ही ब्रह्म जाना जाता है।
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