ब्रह्मविन्दूपनिषद् ( कृष्णयजुर्वेदः, योगोपनिषद्) 

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शब्दाक्षरं परं ब्रह्म यस्मिन्क्षीणे यदक्षरम्।
तद्विद्वानक्षरं ध्यायेद्यदीच्छेच्छान्तिमात्मनः।। 16।।
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द्वे विद्ये वेदितव्ये तु शब्दब्रह्म परं च यत्।
शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति।। 17।।
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मूल-शब्दाक्षरं परं ब्रह्म यस्मिन्क्षीणे यदक्षरम्।
तद्विद्वानक्षरं ध्यायेद्यदीच्छेच्छान्तिमात्मनः।। 16।।

अर्थ-शब्द और अक्षर परब्रह्म हैं, एक के क्षीण हो जाने पर अन्य अक्षर रहता है। उसको जाननेवाला अक्षर का ध्यान करे, यदि वह अपनी आत्मा की शान्ति चाहता हो।।16।।
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मूल-द्वे विद्ये वेदितव्ये तु शब्दब्रह्म परं च यत्।
शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति।। 17।।

अर्थ-दो विद्याएँ समझनी चाहिए, एक तो शब्दब्रह्म और दूसरा परब्रह्म। शब्दब्रह्म में जो निपुण हो जाता है, वह परब्रह्म को प्राप्त करता है।।17।।

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