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।। मूल पद्य ।।
सोई जागै रे सोई जागै रे। राम नाम ल्यो लागै रे ।।
आप अलंवण नीन्द अयाणा। जागत सूता होय सयाणा ।।
तिंहि बिरिया गुरु आया। जिंनि सूता जीव जगाया ।।
थी तो रैणि घणेरी। नीन्द गई तब मेरी ।।
डरताँ पलक न लाऊँ। हूँ जग्यो और जगाऊँ ।।
सोवत सुपना माहीं। जागूँ तो कछु नाहीं ।।
सुरति की सुरति विचारी। तब नेहा नीन्द निवारी ।।
एक सबद गुरु दीया। तिहि सोवत बैठा कीया ।।
‘बखना’ साथ सभागा। जे अपने पहरे जागा ।।
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।। सन्त बखनाजी की वाणी समाप्त ।।
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।। मूल पद्य ।।
सोई जागै रे सोई जागै रे। राम नाम ल्यो लागै रे ।।
आप अलंवण नीन्द अयाणा। जागत सूता होय सयाणा ।।
तिंहि बिरिया गुरु आया। जिंनि सूता जीव जगाया ।।
थी तो रैणि घणेरी। नीन्द गई तब मेरी ।।
डरताँ पलक न लाऊँ। हूँ जग्यो और जगाऊँ ।।
सोवत सुपना माहीं। जागूँ तो कछु नाहीं ।।
सुरति की सुरति विचारी। तब नेहा नीन्द निवारी ।।
एक सबद गुरु दीया। तिहि सोवत बैठा कीया ।।
‘बखना’ साथ सभागा। जे अपने पहरे जागा ।।
व्याख्या-जो राम-नाम (वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक दोनों) में लौ लगाता है, वही जगता है-वही जगता है (जगना दो प्रकार का है-बुद्धि अर्थात् विचार-द्वारा अध्यात्म-पक्ष में सचेत होना और ध्यानयोग-द्वारा तुरीय अवस्था में पहुँचकर अध्यात्म-पक्ष की अनुभूतियों को प्राप्त करते रहना)।। अज्ञानी पुरुष अहंकार के अवलम्ब से नींद में रहता है। (न वह विचार-द्वारा अध्यात्म-पक्ष में जाग्रत रहता है और न तुरीयावस्था की अनुभूतियों को पाता है।) अध्यात्म-पक्ष में चेता हुआ पुरुष जागता हुआ सोता है।।
(वह अध्यात्म-पक्ष में जागा हुआ संसार की ओर से सोता रहता है-‘सकल दृस्य निज उदर मेलि सोवइ निद्रा तजि योगी।’)
उस समय में, जबकि जीव को जगाना चाहिए, गुरु आये, जिन्होंने सोये हुए जीव को जगाया।। रात तो बहुत थी अर्थात् अज्ञानता बहुत थी; परन्तु गुरु के जगाने से मेरी नींद तब चली गई।। अब डरता हुआ रहकर नहीं सोता हूँ। अपने जगा हुआ हूँ और दूसरों को जगाता हूँ।। जब सोता हूँ अर्थात् अज्ञानता में रहता हूँ, तो संसार-रूप स्वप्न देखने के अन्दर रहता हूँ। जब जग जाता हूँ, तो यह संसार-रूप स्वप्न कुछ नहीं रहता।। जब चेतन आत्मा के स्वरूप का विचार किया, तब सांसारिक प्रीति की नींद का निवारण किया।। गुरु ने एक शब्द दिया, उन्हीं ने सोते से जगाकर, सचेत कर बैठा दिया।। सन्त बखनाजी कहते हैं कि जिसने गुरु का साथ किया और अपने समय में अपने को जगाया, वह भाग्यवान हुआ।।
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।। सन्त बखनाजी की वाणी समाप्त ।।
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परिचय
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