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।। मूल पद्य ।।
ध्यान लगावहु त्रिकुटी द्वार। गहि सुषमना बिहंगम सार ।।
पैठि पाताल में पश्चिम द्वार। चढ़ि सुमेरु भव उतरहु पार ।।
हफ्रत कमल नीके हम बूझा। अठयें बिना एको नहिं बूझा ।।
‘शाह फकीरा’ यह सब धन्द। सुरति लगाउ जहाँ वह चन्द ।।
अनहद तानहिं मनहिं लगावै। सो भूला प्रभु-लोक सिधावै ।।
सुनतहिं अनहद लागै रंग। बरि उठै दीपक बरै पतंग ।।
‘शाह फकीरा’ तहाँ समावै। चिरुवा पानी नदी मिलावै ।।
मन कच्छी असि जोर है, मानत नाहीं धीर ।
कड़ा लगाम दे के पकरु, सच्चे ‘शाह फकीर’ ।।
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।। सन्त शाह फकीरजी की वाणी समाप्त ।।
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।। मूल पद्य ।।
ध्यान लगावहु त्रिकुटी द्वार। गहि सुषमना बिहंगम सार ।।
पैठि पाताल में पश्चिम द्वार। चढ़ि सुमेरु भव उतरहु पार ।।
हफ्रत कमल नीके हम बूझा। अठयें बिना एको नहिं बूझा ।।
‘शाह फकीरा’ यह सब धन्द। सुरति लगाउ जहाँ वह चन्द ।।
अनहद तानहिं मनहिं लगावै। सो भूला प्रभु-लोक सिधावै ।।
सुनतहिं अनहद लागै रंग। बरि उठै दीपक बरै पतंग ।।
‘शाह फकीरा’ तहाँ समावै। चिरुवा पानी नदी मिलावै ।।
मन कच्छी असि जोर है, मानत नाहीं धीर ।
कड़ा लगाम दे के पकरु, सच्चे ‘शाह फकीर’ ।।
अर्थ-त्रिकुटी (इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का मिलन-स्थान) के द्वार पर ध्यान लगाओ। मध्यवर्त्ती धारा सुषुम्ना को पकड़कर पक्षी की उड़ान के असली रास्ते पर चलो।। अन्दर में प्रवेश कर प्रकाश के द्वार से चलो और सबसे ऊँचाई पर चढ़कर संसार-सागर को पार कर जाओ।। सात मण्डलों को वा कमलों (मूलाधार चक्र से सहस्त्रदल कमल तक) को हमने अच्छी तरह बूझा। आठवें मण्डल अर्थात् सहस्त्रदल कमल के ऊपर की त्रिकुटी में पहुँचे बिना, निचले मण्डल-आज्ञाचक्र और सहस्त्रदल कमल में दर्शित अनेके प्रकार की ज्योतियों के अतिरिक्त एक-ही-एक ज्योति अर्थात् सूर्य नहीं बूझने में आया।। शाह फकीर कहते हैं कि कहे हुए स्थानों के प्रकाश, मलिन माया के ही तेज हैं; अतएव धुन्ध यानी अंधकार ही हैं। मलिन माया के धुन्द-पद से आगे निर्मल माया के चन्द्रपद में सुरत लगाओ। जो कोई अनहद तान में सुरत लगाता है, वह संसार को भूलकर प्रभु-परमात्मा के लोक को जाता है। अनहद के सुनते ही ईश्वर-प्रेम का रंग लगता है। दीपक जल उठता है और सूर्य दीप्तिमान होता है।। फकीर शाह कहते हैं कि वहाँ समाइये, जहाँ चुल्लू के पानी को अर्थात् जीवात्मा को चेतन की धारा की नदी में मिलाते हैं।। मन-रूपी कच्छी घोड़ा यानी कच्छ देश का घोड़ा बड़ा जोराबर है, धीर नहीं मानता है (विषयों की ओर जोर से भागता ही रहता है) हे सच्चे साधक! उस घोड़े को विचार और साधनाभ्यास की कड़ी लगाम देकर जोर से पकड़ो।
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।। सन्त शाह फकीरजी की वाणी समाप्त ।।
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परिचय
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