free simple website templates

21. सन्त भीखा साहब की वाणी  

*********************
।। मूल पद्य ।।

उठ्यो दिल अनुमान हरि ध्यान।।
भर्म करि भूल्यो आपु समान। अब चीन्हों निज पति भगवान।।
मन वच क्रम दृढ़ मन परवान। वारो प्रभु पर तन मन प्रान।।
शब्द प्रकाश दियो गुरु दान। देखत सुनत नैन बिनु कान।।
जाको सुख सोइ जानत जान। हरि रस मधुर कियो जिन पान।।
निर्गुन ब्रह्म रूप निर्वान। ‘भीखा’ जल ओला गलतान।।

*********************
।। मूल पद्य ।।

धुनि बाजत गगन महँ वीणा। जहाँ आपु रास रस भीना ।।टेक।।
भेरी ढोल शंख शहनाई, ताल मृदंग नवीना ।
सुर जहँ बहुतै मौज सहज उठि, परत है ताल प्रवीना ।।1।।
बाजत अनहद नाद गहागह, धुधुकि धुधुकि सुर भीना ।
अँगुली फिरत तार सातहुँ पर, लय निकसत भिन भीना ।।2।।
पाँच पचीस बजावत गावत, निर्त चारु छवि दीना ।
उघरत तननन ध्रितां ध्रितां, कोउ ताथेइ थेई तत कीना ।।3।।
बाजत जल तरंग बहु मानो, जंत्री जंत्र कर लीना ।
सुनत सुनत जिव थकित भयो, मानो ह्वै गयो शब्द अधीना ।।4।।
गावत मधुर चढ़ाय उतारत, रुनझुन धीना ।
कटि किंकनी पग नूपुर की छवि, सुरति निरति लौलीना ।।5।।
आदि शब्द ॐकार उठत है, अटुट रहत सब दीना ।
लागी लगन निरन्तर प्रभु सों, ‘भीखा’ जल मन मीना ।।6।।

*********************
।। मूल पद्य ।।

करो विचार निर्धार अवराधिये, सहज समाधिऽ मन लाव भाई ।
अब जक्त की आस तें होहु नीरास, तब मोच्छ दरवार की खबर पाई ।।
न तो भर्म अरु कर्म बिच भोग भटकन लग्यो,
जरा अरु मरन तन वृथा जाई ।
‘भीखा’ मानै नहीं कोटि उपदेश शठ,
थक्यो वेदान्त युग चारि गाई ।।

*********************
।। सन्त भीखा साहब की वाणी समाप्त ।।
*********************  

*********************
।। मूल पद्य ।।

उठ्यो दिल अनुमान हरि ध्यान।।
भर्म करि भूल्यो आपु समान। अब चीन्हों निज पति भगवान।।
मन वच क्रम दृढ़ मन परवान। वारो प्रभु पर तन मन प्रान।।
शब्द प्रकाश दियो गुरु दान। देखत सुनत नैन बिनु कान।।
जाको सुख सोइ जानत जान। हरि रस मधुर कियो जिन पान।।
निर्गुन ब्रह्म रूप निर्वान। ‘भीखा’ जल ओला गलतान।।

अर्थ-भ्रम-वश मन भूला हुआ था, हरि-ध्यान के अनुमान से जगा-सचेत हुआ और अपने में समाया अर्थात् अन्तर्मुख हुआ। अब उसने प्रभु-भगवान को पहचाना। मन, वचन और कर्म से ईश्वर विषय में दृढ़ हुआ। मन को प्रमाण मिला। प्रभु परमात्मा पर तन, मन और प्राण को न्योछावर कर दिया।। शब्द और प्रकाश गुरु ने दान दिये, जिनको बिना आँख और बिना कान के देखता और सुनता हूँ।। जिसका सुख वही जानता है, जो इस रहस्य को जानता है, जिसने कि हरि के मधुर रस का पान किया है।। निर्गुण ब्रह्म निर्वाण-रूप है। भीखा साहब कहते हैं कि जैसे जल में ओला गलकर एक होता है, वैसे ही ब्रह्म से मिलाप होकर एकता होती है।।
*********************
।। मूल पद्य ।।

धुनि बाजत गगन महँ वीणा। जहाँ आपु रास रस भीना ।।टेक।।
भेरी ढोल शंख शहनाई, ताल मृदंग नवीना ।
सुर जहँ बहुतै मौज सहज उठि, परत है ताल प्रवीना ।।1।।
बाजत अनहद नाद गहागह, धुधुकि धुधुकि सुर भीना ।
अँगुली फिरत तार सातहुँ पर, लय निकसत भिन भीना ।।2।।
पाँच पचीस बजावत गावत, निर्त चारु छवि दीना ।
उघरत तननन ध्रितां ध्रितां, कोउ ताथेइ थेई तत कीना ।।3।।
बाजत जल तरंग बहु मानो, जंत्री जंत्र कर लीना ।
सुनत सुनत जिव थकित भयो, मानो ह्वै गयो शब्द अधीना ।।4।।
गावत मधुर चढ़ाय उतारत, रुनझुन धीना ।
कटि किंकनी पग नूपुर की छवि, सुरति निरति लौलीना ।।5।।
आदि शब्द ॐकार उठत है, अटुट रहत सब दीना ।
लागी लगन निरन्तर प्रभु सों, ‘भीखा’ जल मन मीना ।।6।।

भावार्थ-रास-नृत्य-गान, बाजाओं और उनके सुर-तान के चढ़ाव और उतार आदि में जो रत होता है, उसकी उपमा देकर अनहद नादों के अभ्यास में डूबकर उसमें रस प्राप्त करके वर्णन करते हैं कि अन्तराकाश में वीणा, ढोल, शंख, शहनाई और मृृदंग के नये-नये ताल की स्वाभाविक मौजें उठती रहती हैं।।1।। उन स्वाभाविक अनहद नाद के गहागह सुर में वे भींग गये हैं। उनकी सुरत सातो स्थान (1-आज्ञाचक्र, 2- सहस्त्रदल कमल, 3- त्रिकुटी, 4- शून्य, 5- महाशून्य, 6-भँवर गुफा और 7- सतलोक) पर फिरती रहती है, मानो सात तारवाले बाजे पर बजानेवाले की अँगुलियाँ फिरती रहती हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के सुर और लय निकलते रहते हैं।।2।। स्थूल शरीर पाँच तत्त्वों और पचीस प्रकृतियों का संघात-रूप है। [पृथ्वी तत्त्व-हाड़, मांस, बाल, त्वचा, नाड़ी। जलतत्त्व-रक्त, वीर्य, मज्जा, मूत्र, पसीना। अग्नितत्त्व-भूख, प्यास, नींद, आलस्य, जँभाई (हाफी)। वायुतत्त्व-चलना, बोलना, बल करना, पसरना, सिकुड़ना। आकाशतत्त्व-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार] इसी संघात में बहुत-सी ध्वनियाँ होती हैं। मानो पाँच-पचीस बजाते-गाते हैं और यह सुन्दर आकृति (शरीर) इसी संघात की देन है। इसी संघात में ‘तननन ध्रितां ध्रितां ताथेई थेई तत’ आदि तरंगित होते रहते हैं।।3।। बहुत-से जल-तरंग बजते हैं, जैसे कि बजानेवाले हाथ में बाजा लिये हुए हैं। अनहद नादों को सुनते-सुनते मन थक गया है, मानो वह शब्द के अधीन हो गया हो।।4।। सुरत की शब्द में विशेष लवलीनता हो गई।।5।। आदिशब्द ॐ की ध्वनि हो रही है, वह अटूट रूप से सब दिन विद्यमान रहता है। इस तरह उस शब्द के द्वारा प्रभु से निरंतर लगन लगी रहती है। मछली जिस तरह पानी में सुखी रहती है, उसी तरह भीखा भी शब्द में सुखी है।।6।।
*********************
।। मूल पद्य ।।

करो विचार निर्धार अवराधिये, सहज समाधि* मन लाव भाई ।
अब जक्त की आस तें होहु नीरास, तब मोच्छ दरवार की खबर पाई ।।
न तो भर्म अरु कर्म बिच भोग भटकन लग्यो,
जरा अरु मरन तन वृथा जाई ।
‘भीखा’ मानै नहीं कोटि उपदेश शठ,
थक्यो वेदान्त युग चारि गाई ।।

अर्थ-हे भाई! विचार निश्चय करके आराधना करो और सहज समाधि में मन लगाओ। जब सांसारिक आशाओं से निराश होओ, तब मुक्ति के दरबार की सुधि मिलेगी।। अन्यथा अज्ञानता और अशुभ कार्मों के फल-स्वरूप उससे उत्पन्न भोगों में भटकते रहोगे और बुढ़ापा एवं मृत्यु में पड़कर व्यर्थ ही शरीर नष्ट होगा। संत भीखा साहब कहते हैं कि करोड़ों उपदेश करो वा अध्यात्म-ज्ञान की शिक्षा एक युग की कौन कहे, चतुर्युग-पर्यन्त देते-देते थक जाओ; लेकिन मूर्ख उसको नहीं मानता।।


[* सहज समाधि भावना की समाधि नहीं है, यह तुरीयातीतावस्था में होती है, जिनके संबंध में कबीर साहब और पलटू साहब की वाणियाँ हैं-

साधो सहज समाधि भली---------।
शब्द निरंतर से मन लागा, मलिन वासना भागी।।
ऊठत बैठत कबहुँ न छूटै, ऐसी ताड़ी लागी।-------।। -संत कबीर साहब

‘तुरीया सेति अतीत सोधि फिर सहज समाधी।
भजन तेल की धार साधना निर्मल साधी।।’ -संत पलटू साहब]

*********************
।। सन्त भीखा साहब की वाणी समाप्त ।।
*********************  

परिचय

Mobirise gives you the freedom to develop as many websites as you like given the fact that it is a desktop app.

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.