free site design templates

(7) . सन्त चरणदासजी की वाणी

*********************
।। मूल पद्य ।।
*********************
ऐसा देश दिवाना रे लोगो, जाय सो माता होय।
बिना मदिरा मतवारे झूमैं, जन्म-मरण दुख खोय।।
कोटि चन्द सूरज उजियारो, रवि शशि पहुँचत नाहीं।
बिना सीप मोती अनमोलक, बहु दामिनी दमकाहीं।।
बिनु ऋतु फूले फूल रहत हैं, अमृत रस फल पागे।
पवन गवन बिन पवन बहत हैं, बिन बादर झरि लागै।।
अनहद शब्द भँवर गुंजारै, शंख पखावज बाजै।
ताल घण्ट मुरली घनघोरा, भेरि दमामै गाजै।।
सिद्धि गर्जना अति ही भारी, घुंघरु गति झनकारैं।
रम्भा नृत्य करै बिन पग सूँ, बिन पायल ठनकारैं।।
गुरु शुकदेव करै जब किरपा, ऐसे नगर दिखावैं।
चरणदास वा पग के परसैं, आवागमन नसावैं।।
*********************
।। मूल पद्य ।।

मनुवाँ राम के व्यापारी
अब की खेप भक्ति की लादी, बनिज कियो तैं भारी ।।1।।
पाँचो चोर सदा मग रोकत, इन सूँ कर छुटकारी ।
सतगुरु नायक के संग मिलि चल, लूट सकै नहिं धारी ।।2।।
दो ठग मारग माहिं मिलेंगे, एक कनक एक नारी।
सावधान हो पेंच न खैयो, रहियो आप सँभारी ।।3।।
हरि के नगर में जा पहुँचोगे, पैहो लाभ अपारी ।
चरणदास तो कूँ समझावै, रे मन बारम्बारी ।।4।।

*********************
।। मूल पद्य ।।

जीवित मर जाय, उलट आप में समाय,
कहीं नहीं जाय, मन शुद्ध दिलगीरी है।।
करै विपिन वास, इन्द्रिय जीत तजै भूख प्यास,
मेटै पर-आस, खास पूरन सबूरी है।।
परम तत्त्व को विचार, चिन्ता बिसार सबै,
टार मत बाद हरि, भज ले अमीरी है।।
कहै चरणदास दीन, दुनिया में पुकार,
सब आसान यार, मुशकिल फकीरी है।।

*********************
।। संत चरणदासजी की वाणी समाप्त ।। 
*********************  

*********************
।। मूल पद्य ।।
*********************
ऐसा देश दिवाना रे लोगो, जाय सो माता होय।
बिना मदिरा मतवारे झूमैं, जन्म-मरण दुख खोय।।
कोटि चन्द सूरज उजियारो, रवि शशि पहुँचत नाहीं।
बिना सीप मोती अनमोलक, बहु दामिनी दमकाहीं।।
बिनु ऋतु फूले फूल रहत हैं, अमृत रस फल पागे।
पवन गवन बिन पवन बहत हैं, बिन बादर झरि लागै।।
अनहद शब्द भँवर गुंजारै, शंख पखावज बाजै।
ताल घण्ट मुरली घनघोरा, भेरि दमामै गाजै।।
सिद्धि गर्जना अति ही भारी, घुंघरु गति झनकारैं।
रम्भा नृत्य करै बिन पग सूँ, बिन पायल ठनकारैं।।
गुरु शुकदेव करै जब किरपा, ऐसे नगर दिखावैं।
चरणदास वा पग के परसैं, आवागमन नसावैं।।
*********************
अर्थ-हे लोगो! वह परमात्म-धाम ऐसा पागलों का धाम है कि जो उसमें जाता है, वह मस्त हो जाता है। बिना मदिरा के (वह) मस्त होकर झूमता है और जन्म-मरण के दुःख को खो डालता है।। वहाँ करोड़ों चन्द्र-सूर्य के प्रकाश के सदृश प्रकाश है। इस (जागतिक) चन्द्र-सूर्य के प्रकाश वहाँ नहीं पहुँचते। बिना सीपी के अनमोल मोती बरसते हैं और बहुत बिजलियाँ चमचमाती हैं।। बिना वसन्त ऋतु के ही फूल फुले रहते हैं और अमृत-रस पगे रहते हैं। पवन-गति के बिना पवन बहता है। बिना मेघ के ही झड़ी लगी रहती है। भँवर गुंजार और शंख-पखावज के अनहद शब्द के बाजे बजते हैं। घण्टा और मुरली का घनघोर बाजा बजता है। भेरी और नगाड़े के गर्जन होते हैं।। सब अष्ट सिद्धियों की बहुत भारी गर्जना हैं अर्थात् उपर्युक्त अनहद ध्वनियों की अनुभूतियों को प्राप्त करनेवाला अभ्यासी अष्ट सिद्धि प्राप्त करता है। नृत्य-गति की घुँघरू की झनकार होती है। सुरत-रम्भा बिना पैर के नृत्य करती है अर्थात् चलती है और बिना पायजेब के उसकी ध्वनि होती है।। गुरु शुकदेव मुनि जब कृपा करते हैं, तब ऐसा नगर दिखलाते हैं, जैसे नगर में उपर्युक्त सब लीलाएँ होती हैं। चरणदासजी कहते हैं कि उस पद (गुरु-पद) के परसने से आवागमन का नाश हो जाता है।।
*********************
।। मूल पद्य ।।

मनुवाँ राम के व्यापारी
अब की खेप भक्ति की लादी, बनिज कियो तैं भारी ।।1।।
पाँचो चोर सदा मग रोकत, इन सूँ कर छुटकारी ।
सतगुरु नायक के संग मिलि चल, लूट सकै नहिं धारी ।।2।।
दो ठग मारग माहिं मिलेंगे, एक कनक एक नारी।
सावधान हो पेंच न खैयो, रहियो आप सँभारी ।।3।।
हरि के नगर में जा पहुँचोगे, पैहो लाभ अपारी ।
चरणदास तो कूँ समझावै, रे मन बारम्बारी ।।4।।

पद्यार्थ-हे राम-भजन के व्यापारी मन! इस बार भक्ति की लदनी तुमने की है। तुमने भारी बनिज किया है।।1।। पाँचो ज्ञान-इन्द्रिय- रूपी चोर सदा रास्ते में रोकते हैं, इनसे अपना छुटकारा करो। सद्गुरु सरदार के संग में मिलकर चलो, तो इन चोरों की धारी-पंक्ति नहीं लूट सकेगी।।2।। रास्ते में दो ठग-स्त्री और धन मिलेंगे, सचेत होकर घुमाव मत खाना और अपने को सँभालकर रखना।।3।। ईश्वर के नगर में जा पहुँचोगे और अपार लाभ प्राप्त करोगे। संत चरणदासजी कहते हैं कि रे मन! मैं तुम्हें बारम्बार समझाता हूँ।।4।।
*********************
।। मूल पद्य ।।

जीवित मर जाय, उलट आप में समाय,
कहीं नहीं जाय, मन शुद्ध दिलगीरी है।।
करै विपिन वास, इन्द्रिय जीत तजै भूख प्यास,
मेटै पर-आस, खास पूरन सबूरी है।।
परम तत्त्व को विचार, चिन्ता बिसार सबै,
टार मत बाद हरि, भज ले अमीरी है।।
कहै चरणदास दीन, दुनिया में पुकार,
सब आसान यार, मुशकिल फकीरी है।।

भावार्थ-बहिर्मुख से अन्तर्मुख उलटकर, अपने-आपमें समाकर जीते-जी मर जाय अर्थात् जीवित रहते हुए मृतक-तुल्य होकर रहे, बाह्य इन्द्रियों की चेतन-धारों को उनके केन्द्र में केन्द्रित करके रहे-बाह्य इन्द्रियों की भोगेच्छा से पूर्णरूपेण छूटकर रहे और कहीं नहीं जाय; यही मन का पवित्र विराग है। जंगल में वासा करे; इन्द्रियों को जीतकर भूख-प्यास छोड़ दे और दूसरे की आशा छोड़ें; यह अपना पूर्ण सन्तोष है। सब चिन्ताओं को छोड़कर परमात्म-स्वरूप का विचार करे और मत-मतान्तर का विवाद छोड़कर ईश्वर का भजन करे-यही अमीरी है।। संत चरणदासजी संसार के धर्मवालों को पुकारकर कहते हैं-मित्रो! और सब बातें आसान हैं, पर फकीरी मुश्किल है।।
*********************
।। संत चरणदासजी की वाणी समाप्त ।।
*********************  

परिचय

Mobirise gives you the freedom to develop as many websites as you like given the fact that it is a desktop app.

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.