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(6) . संत दादू दयालजी की वाणी
[आरती जग जीवन तेरी]

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।। मूल पद्य ।।

आरती जग जीवन तेरी। तेरे चरन कँवल पर वारी फेरी ।।टेक।।
चित चाँवरी हेत हरि ढारै। दीपक ज्ञान जोति विचारै ।।1।।
घण्टा शब्द अनाहद बाजै। आनन्द आरति गगना गाजै ।।2।।
धूप ध्यान हरि सेती कीजै। पुहुप प्रीति हरि भाँवरि लीजै ।।3।।
सेवा सार आतमा पूजा। देव निरंजन और न दूजा ।।4।।
भाग भगति सौं आरति कीजै। इहि विधि दादू जुग-जुग जीजै ।।5।।
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।। मूल पद्य ।।

आरती जग जीवन तेरी। तेरे चरन कँवल पर वारी फेरी ।।टेक।।
चित चाँवरी हेत हरि ढारै। दीपक ज्ञान जोति विचारै ।।1।।
घण्टा शब्द अनाहद बाजै। आनन्द आरति गगना गाजै ।।2।।
धूप ध्यान हरि सेती कीजै। पुहुप प्रीति हरि भाँवरि लीजै ।।3।।
सेवा सार आतमा पूजा। देव निरंजन और न दूजा ।।4।।
भाग भगति सौं आरति कीजै। इहि विधि दादू जुग-जुग जीजै ।।5।।

भावार्थ-हे संसार के जीवन परमात्मन्! तेरी आरती हो। तेरे चरण-कमल पर मैं अपने को न्योछावर करता हूँ। हे हरि! आपके हेतु मैं चित्त का चँवर डुलाता हूँ और सत्य-असत्य-निर्णयकारी ज्ञान की दीपक-ज्योति अर्पित करता हूँ।।1।। अनहद घण्टा शब्द बजता है और इस तरह यह आनन्द-आरती गगन में ध्वनित होती है।।2।। हरि-ध्यान-अभ्यास-रूप धूप अर्पित कीजिए और प्रेम का फूल अर्पित कर हरि-प्रेम में तल्लीन रहना-रूप परिक्रमा कीजिए।।3।। और दूसरे किसी का नहीं, केवल मायातीत देव का सार पूजन आत्म-समर्पण है।।4।। दादू दयालजी कहते हैं कि प्रेम-भक्ति से आरती कीजिए और इस तरह युग-युग जीते रहिए।।5।।  

परिचय

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