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।। मूल पद्य ।।
नीके राम कहतु है बपुरा।।
घर माहैं घर निर्मल राखै, पंचौं धोवै काया कपरा।।टेक।।
सहज समरपण सुमिरण सेवा, तिरवेणी तट संयम सपरा।
सुन्दरि सन्मुख जागण लागी, तहँ मोहन मेरा मन पकरा।।1।।
बिन रसना मोहन गुण गावै, नाना वाणी अनभै अपरा।
दादू अनहद ऐसैं कहिये, भगति तत्त यहु मारग सकरा।।2।।
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।। मूल पद्य ।।
नीके राम कहतु है बपुरा।।
घर माहैं घर निर्मल राखै, पंचौं धोवै काया कपरा।।टेक।।
सहज समरपण सुमिरण सेवा, तिरवेणी तट संयम सपरा।
सुन्दरि सन्मुख जागण लागी, तहँ मोहन मेरा मन पकरा।।1।।
बिन रसना मोहन गुण गावै, नाना वाणी अनभै अपरा।
दादू अनहद ऐसैं कहिये, भगति तत्त यहु मारग सकरा।।2।।
भावार्थ-ज्ञान-बल-हीन दीन लोग अच्छा करते हैं कि वे ‘राम-राम’ कहते हैं। उन्हें चाहिए कि घर में घर को पवित्र रखें और पाँचो शरीर-रूप कपड़े को धोवैं*।। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के मिलन-स्थान पर सुरत जमाकर मन और इन्द्रियों को स्वाधीन करने में सफल होने का सहज साधन-रूप सुमिरण-सेवा परम प्रभु परमात्मा को समर्पित करनी चाहिए। इस साधन से सुरत-सुन्दरी सम्मुख में जगने** लगती है। वहाँ (उपर्युक्त संगम के स्थान पर) मेरे मन को आकृष्टकारी परमात्मा मोहन ने पकड़ लिया।।1।। निम्नकोटि की (अपरा) जड़ प्रकृति के मण्डलों की अनुभव-गम्य नाना अनहद ध्वनियों के द्वारा वह मोहन बिना जिह्वा के ही अपना गुण प्रकट# करता है। दादू दयालजी कहते हैं कि अनहद ध्वनियाँ भक्ति के सार-रूप हैं तथा यह शब्द-मार्ग सूक्ष्म है।।2।।
[* स्थूल शरीर में सूक्ष्म, सूक्ष्म में कारण, कारण में महाकारण और महाकारण में कैवल्य शरीर है-इस तरह घर में घर है। शौच से स्थूल को, सूक्ष्म के ऊपर से स्थूल, कारण के ऊपर से सूक्ष्म, महाकारण के ऊपर से कारण और कैवल्य के ऊपर से महाकारण के उतर जाने ही से घर में घर को पवित्र रखना और पाँचो काया-रूप कपड़े को धोना है।]
[** उपर्युक्त रीति से भजन करनेवाले साधक को सम्मुख जगने का बोध आप होता है। बहिर्मुख से मुड़ाव और अन्तर्मुख में संलग्नता ही जगना है।]
[#इन ध्वनियों को अवगत कर लेने पर परमात्म-स्वरूप की प्रत्यक्षता की ओर अभ्यासी का उत्तरोत्तर आरोहण होता है और परमात्मा की प्रभुता उसको प्रत्यक्ष रूप में विदित होती जाती है।]
परिचय
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