।। मूल पद्य ।।
ज्ञान बोलै आपै बूझै, आपै समझै आपै सूझै।
गुरु का कहिया अंक समावै, निर्मल सूचै साँचौ माने।।
गुरु सागर रतनी नहिं टोट, लाल पदारथ साँच अखोट।
गुरु कहिया सा कार कमावहु, गुरु की करनी काहे धावहु।।
नानक गुरमति साँचु कमावहु।
।। गुरु नानक साहब की वाणी समाप्त ।।
।। मूल पद्य ।।
ज्ञान बोलै आपै बूझै, आपै समझै आपै सूझै।
गुरु का कहिया अंक समावै, निर्मल सूचै साँचौ माने।।
गुरु सागर रतनी नहिं टोट, लाल पदारथ साँच अखोट।
गुरु कहिया सा कार कमावहु, गुरु की करनी काहे धावहु।।
नानक गुरमति साँचु कमावहु।
पद्यार्थ-आत्म-अनुभव-प्राप्त पुरुष ज्ञान बोलता है, उसे आप ही बूझता, आप ही समझता है और तत्सम्बन्धी तत्त्व उसको आप ही सूझता है। वह गुरु की कही हुई गोद में समाता है अर्थात् परमात्म-पद में समाता है और मल-रहित पवित्र सत्य को मानता है।। गुरु-रूपी समुद्र के रत्नों को लेने में हानि नहीं होती है। उसमें लाल पदार्थ अर्थात् बहुमूल्य रत्न या हीरा बिना किसी दोष या ओछाई के सत्य है। जो गुरु के कहे हुए कर्त्तव्य हैं, उन कर्त्तव्यों की कमाई करो। गुरु-आज्ञा की करनी में रहकर क्यों दौड़ोगे या हैरान होओगे? अर्थात् नहीं हैरान होओगे।। गुरु नानक कहते हैं कि हे गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाले! सत्य की कमाई करो।
।। गुरु नानक साहब की वाणी समाप्त ।।
परिचय
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