।। मूल पद्य ।।
जैसे जल महि कमलु निरालमु, मुरगाई नैसाणै।
सुरति सबदि भवसागरु तरीअै, नानक नामु बखाणै।।
रहहिं एकान्ति एको मनि बसिआ, आसा माहिं निरासो।
अगमु अगोचरु देखि दिखाए, नानक ताका दासो।।
।। मूल पद्य ।।
जैसे जल महि कमलु निरालमु, मुरगाई नैसाणै।
सुरति सबदि भवसागरु तरीअै, नानक नामु बखाणै।।
रहहिं एकान्ति एको मनि बसिआ, आसा माहिं निरासो।
अगमु अगोचरु देखि दिखाए, नानक ताका दासो।।
भावार्थ-जैसे जल में कमल और पनडुब्बी चिड़िया निर्लेप रहते हैं, उसी तरह संसार में रहकर सुरत-शब्द (नादानुसन्धान) का अभ्यास करके संसार-सागर को तरना चाहिए। गुरु नानक साहब कहते हैं कि मैं नाम-भजन का वर्णन करता हूँ अर्थात् गुरु नानक साहब के अनुकूल सुरत-शब्द का अभ्यास करना नाम-भजन करना है।। केवल परमात्म-चिन्तन ही एक मन में रखकर जो एकान्त रहते हैं, आशा में निराश रहते हैं और बुद्धि तथा इन्द्रियों की पहुँच से परे को आत्मा से देखते हैं, और दिखलाते हैं, गुरु नानक साहब कहते हैं कि मैं उनका दास हूँ।
परिचय
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