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(5) . गुरु नानक साहब की वाणी
[13. नदरि करे ता सिमरिआ जाई।
आत्मा द्रवै रहै लिवलाई।]


।। मूल पद्य ।।

नदरि करे ता सिमरिआ जाई। आत्मा द्रवै रहै लिवलाई।।
आतमा परातमा एको करै। अन्तरि की दुविधा अन्तरि मरै।।
गुरु परसादी पाइआ जाइ। हरि सिउ चितु लागै फिरि कालु न खाइ।।1।। रहाउ।।
सचि सिमरिअै होवै परगासु। ताते विखिआ महि रहै उदासु।।
सतिगुर की अैसी बड़िआई। पुत्र कलत्र बिचै गति पाई।।2।।
अैसी सेवकु सेवा करै। जिसका जीउ तिसु आगै धरै।।
साहिब भावै सो परवाणु। सो सेवक दरगह पावै माणु।।3।।
सतिगुर की मूरति हिरदै बसाए। जो ईछै सोई फलु पाए।।
साचा साहिबु किरपा करै। सो सेवक जम ते कैसा डरै।।4।।
भनति नानकु करै विचारु। साची वाणी सिउ धरै पिआरु।।
ताको पावै मोख दुआर। जपु तपु सभु इहु सबदु है सारु।।5।।



।। मूल पद्य ।।

नदरि करे ता सिमरिआ जाई। आत्मा द्रवै रहै लिवलाई।।
आतमा परातमा एको करै। अन्तरि की दुविधा अन्तरि मरै।।
गुरु परसादी पाइआ जाइ। हरि सिउ चितु लागै फिरि कालु न खाइ।।1।। रहाउ।।
सचि सिमरिअै होवै परगासु। ताते विखिआ महि रहै उदासु।।
सतिगुर की अैसी बड़िआई। पुत्र कलत्र बिचै गति पाई।।2।।
अैसी सेवकु सेवा करै। जिसका जीउ तिसु आगै धरै।।
साहिब भावै सो परवाणु। सो सेवक दरगह पावै माणु।।3।।
सतिगुर की मूरति हिरदै बसाए। जो ईछै सोई फलु पाए।।
साचा साहिबु किरपा करै। सो सेवक जम ते कैसा डरै।।4।।
भनति नानकु करै विचारु। साची वाणी सिउ धरै पिआरु।।
ताको पावै मोख दुआर। जपु तपु सभु इहु सबदु है सारु।।5।।

शब्दार्थ-नदरि=देखे, दृष्टि-योग करे। कलत्र=पत्नी, स्त्री। गति=मुक्ति। दरगह=दरबार। माणु=आदर। भनति=कहता है।

भावार्थ-दृष्टि-योग के द्वारा उस (परमात्मा) का भजन किया जाता है। लौ लगाये रहे, तो (चेतन) आत्मा अर्थात् सुरत परमात्मा की ओर बहे अर्थात् चले। आत्मा और परमात्मा को एक कर दे, तो अन्तर की सब दुविधाएँ अन्तर ही में विनष्ट हो जायँ।। उपर्युक्त मिलाप की प्राप्ति गुरु के प्रसाद से होती है। परमात्मा हरि से चित्त लग जाय, तो काल फिर विनाश को नहीं पहुँचावेगा।।1।।रहाउ।। सत्यता से भजन करो, प्रकाश होता है। इसलिए भक्त विषयों में उदासीन रहता है। सद्गुरु की ऐसी बड़ाई है कि उनकी शिक्षा के अनुकूल चलनेवाला भक्त स्त्री-पुत्र आदि के संग में रहते हुए मोक्ष पाता है।।2।। सेवक को ऐसी सेवा करनी चाहिए कि वह जिसका जीव है, उसके आगे अपने को समर्पित* कर दे। जिस भक्त को प्रभु (परमात्मा) भावें, सुहावें, प्रिय लगें, वही भक्त ठीक है और वही भक्त प्रभु के दरबार में आदर पाता है।।3।। सद्गुरु की मूर्ति को हृदय में बसावे, तो जो इच्छा हो, सो फल प्राप्त करे। जिस सेवक पर सच्चा-असली प्रभु कृपा करें, तो वह सेवक यम से क्यों डरेगा? अर्थात् नहीं डरेगा।।4।। गुरु नानक कहते हैं कि जो विचार करता है और सत्य वचन से प्रेम करता है, वह मोक्ष-द्वार पाता है। शब्द-अभ्यास करना ही सब जप-तप में सार है।।5।।  

[* अन्तर-साधन-द्वारा अपने को सब मायिक आवरणों से पार करके कैवल्य दशा में होकर अपने को समर्पित किया जा सकेगा।]

परिचय

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